- पैंगोंग त्सो में चीन ब्रिज का निर्माण कर रहा है। इसके बाद मोल्दो और फिंगर एरिया के बीच की दूरी बहुत कम हो जाएगी।
- नए साल मे चीन ने लागू किया नया "न्यू बॉर्डर लॉ", भारत के लिए खड़ी कर सकता है परेशानी
- नए दलाई लामा की खुद नियुक्त करना चाहता है चीन, इसलिए तिब्बत में जनसांख्यिकी बदल रहा है।
नई दिल्ली: एक तरफ नए साल के आगाज पर (एक जनवरी) भारत और चीन के सैनिकों के बीच, लद्दाख सीमा पर मिठाइयां बांटने की तस्वीर सामने आई तो दूसरी तरफ चीन ने प्रोपेगेंडा के तहत गलवान घाटी में चीन का झंडा फहराते हुए एक दूसरी तस्वीर भी पोस्ट कर दी। और अब जो सेटेलाइज इमेज सामने आ रही है, उससे साफ लग रहा है कि चीन की पीएलए, पैंगोंग त्सो झील के अपने वाले हिस्से में एक पुल का निर्माण कर रही है।
चीन के इरादे साफ हैं, वह जून 2020 की झड़प को भूला नहीं है। जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और चीन के 45 सैनिकों के मारे जाने की खबर थी। हालांकि घटना के करीब डेढ़ साल बाद भी, चीन ने केवल 4 सैनिकों की मौत को स्वीकार किया था। पिछले डेढ़ साल में दोनों सेनाओं के बीच शांति बहाली के लिए कई दौर की बात-चीत हो चुकी है। लेकिन नए साल में, चीन का नया सीमा कानून लागू होने, अरूणाचल प्रदेश के 15 इलाकों के नाम चीनी अक्षरों, तिब्बती और रोमन वर्णमाला में देने और फिर गलवान पर ताजा प्रोपेगेंडा ने साफ कर दिया है कि 2022 में चीन, अपनी हरकतों से बाज नहीं आने वाला है। ऐसे में भारत को काफी सतर्क रहना होगा।
इस मसले में पर, लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल लेह-लद्धाख में सीमावर्ती गांव चुशूल के काउंसलर कोनचुक स्टेनजिन ने टाइम्स नाउ नवभरत डिजिटल को बताया " चीन जिस तरह से बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कर रहा है, उससे साफ जाहिर होता है कि चीन जहां पहले कुछ नहीं करता था, उस इलाके में निर्माण कार्य कर रहा है। इससे पता चलता है कि चीन के इरादे नेक नहीं है। हमें चीन को काउंटर के लिए अपने इलाके में तेजी से इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करना चाहिए।
अब, सुनने में आ रहा है कि पैंगोंग त्सो में वह ब्रिज का निर्माण कर रहा है। ब्रिज बनने के बाद मोल्दो और सरजबंद फिंगर एरिया के बीच की दूरी बहुत कम हो जाएगी। पहले फिंगर एरिया में पहुंचने के लिए रूदोक से काफी लंबा रास्ता, घूम कर तय करना था। लेकिन ब्रिज के बाद उसे फिंगर एरिया में सीधे पहुंचना आसान हो जाएगा। "
स्टेनजिन कहते हैं "पहले की तुलना में भारत ने भी अपने एरिया में काफी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर लिया है, लेकिन चीन की नीयत को देखते हुए, हमें और शॉर्ट कट रास्ते तैयार करने होंगे। एक बात हमें और समझने चाहिए, कि चीन की नीयत साफ नहीं है और पिछले एक साल में जिस तरह उसने भारी मात्रा में इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश किया है। उस खतरे को हमें समझ लेना चाहिए।"
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चीन के 60 हजार सैनिक तैनात
न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार चीन ने लद्धाख के अपने एरिया में करीब 60 हजार सैनिक तैनात कर रखे हैं। इसे देखते हुए भारतीय सेना ने भी चीनी के किसी दुस्साहस को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सभी तैयारियां कर रखी हैं। सेना ने सभी रास्तों को खुला रखा है, जिससे कि सेना के लिए मूवमेंट आसान रहे। भारतीय सेना ने आतंकवाद निरोधी राष्ट्रीय राइफल्स की यूनीफॉर्म फोर्स को पूर्वी मोर्चे पर लद्दाख थिएटर में तैनात कर रखा है। और भारत की ओर से भी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का काम तेजी से जारी है। इसके अलावा सीमा की ड्रोन से भी निगरानी की जा रही है।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, सेंटर ऑफ ईस्ट एशियन स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर रविप्रसाद नारायणन ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल को बताया " मेरा व्यक्तिगत रुप से मानना है कि चीन कई संकेत दे रहा है। सबसे पहले चीन, इस बात को भारतीयों में साबित करना चाहता है कि वह उनके लिए खतरा है। जैसी खबरें आ रही है कि चीन ने ब्रिज का निर्माण किया है। तो मुझे नहीं लगता है कि भारतीय सेना इस बात से अनजान रही होगी। क्योंकि यह कोई छोटा-निर्माण नहीं है। खास तौर से जब भारतीय सेना ऊंचाई पर स्थित है।
दूसरी बात जो समझनी चाहिए कि कोराना महामारी की दस्तक के बाद से ही भारत-चीन में पिछले दो साल से विवाद चल रहा है। चीन इस इलाके में लंबी अवधि की रणनीति से काम कर रहा है। उसने पहले ही यह ऐलान कर दिया है कि अगला दलाई लामा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी तय करेगी। ऐसे में तिब्बत क्षेत्र उसके लिए बेहद अहम हो जाता है। जो कि सीधे भारतीय सीमा से जुड़ा हुआ है। ऐसे में यह भी सवाल उठता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के इस अहम मुद्दे पर संसद में बहस क्यों नहीं हो रही है?"
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एक जनवरी से "लैंड बॉर्डर लॉ" लागू
चीन ने 23 अक्टूबर 2021 को नए "लैंड बॉर्डर लॉ" को मंजूरी दी थी। नए कानून के तहत अब चीन सरकार ने 14 देशों से जुड़ी अपनी जमीनी सीमा को लेकर नियम तय कर दिए हैं। इसके तहत चीन की स्वायत्ता और क्षेत्रीय अखंडता को पवित्र करार दिया गया है। इस कानून के तहत अब सीमाओं से जुड़े मामलों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और पीपुल्स आर्म पुलिस (पीएपी) को अतिक्रमण, घुसपैठ या किसी तरह के हमले से निपटने का अधिकार दिया है। नए कानून में जरुरत पड़ने पर सीमाओं को बंद करने के भी प्रावधान रखे गए हैं।
नए कानून में कहा गया है कि चीन अपनी सीमाओं पर सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास कर सकेगा। इसके अलावा सार्वजनिक सेवाओं का भी विस्तार किया जाएगा। आधिकारिक तौर पर ऐसा करने का उद्देश्य वहां पर रहने वाले चीन के नागिरकों के जीवन को बेहतर बनाना है। लेकिन इस फैसले से चीन अपनी विवादित सीमाओं पर इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास कर सकेगा। जिसका सीधा मतलब है कि वह सीमा पर डोकलाम, गलवान जैसे विवादित क्षेत्रों में भी इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर सकेगा। और उन इलाकों पर अधिकार जताएगा। ताजा घटनाक्रम उसी का परिणाम है।
चीन के नए सीमा कानून पर रविप्रसाद नारायणन ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल को 28 अक्टूबर को बताया था कि चीन के इस फैसले को दो तरह से देखना चाहिए। एक तो वहां की आतंरिक राजनीति दूसरा उसकी विस्तारवादी नीति। जहां तक आंतरिक नीति की बात है तो शी जिनपिंग की गतिविधियों को हमें माओ (Mao) से जोड़कर देखना चाहिए।
माओ जब भी अपने देश में कमजोर होते थे, तो वह पड़ोसी देशों के साथ विवाद या युद्ध की स्थिति पैदा कर देते थे। उन्हीं के समय ईस्ट तुर्कमेनिस्तान पर कब्जा कर लिया गया था, जो आज शिनचियांग कहलाता है। इसी तरह तिब्बत को कब्जे में लिया गया। अब शी जिनपिंग भी वैसा ही कर रहे हैं। आंतरिक स्तर पर शी जिनपिंग के खिलाफ ,पीएलए में नाराजगी है। इसके अलावा शी जिनपिंग का एकाधिकारवादी रवैया भी उनके खिलाफ नाराजगी की वजह बन रहा है।
दूसरी वजह उसकी विस्तारवादी नीति है। नए कानून से चीन सीमावर्ती इलाके में जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) में बदलाव करना चाहता है। जिसका सबसे ज्यादा असर तिब्बत पर पड़ेगा। इसके अलावा सीमावर्ती इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास भी करेगा। ऐसा कर,वह चीन के उन इलाकों से लोगों को सीमावर्ती इलाकों में बसाएगा, जो बेहद ठंडे इलाके में रहते हैं। जिसके बाद वह इन क्षेत्रों में अपने अधिकार को साबित करने की कोशिश करेगा। साफ है कि भारत के लिए चुनौतियां बढ़ने वाली हैं।