- आजादी के बाद से शुरू हुई जनगणना में केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति की ही जातियों के रुप में अलग से जनगणना की जाती रही है।
- असल में अगर जातिगत जनगणना होती है तो इस बात का डर है कि कहीं मौजूदा आंकलन की तुलना में ओबीसी की संख्या में बढ़ोतरी या कमी न हो जाय। अगर ऐसा हुआ तो यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।
- मंडल कमीशन की रिपोर्ट (1979 में पेश की गई थी) के अनुसार देश में 52 फीसदी ओबीसी जातियां थी।
नई दिल्ली: "अगर 2021 जनगणना में जातियों की गणना नहीं होगी तो बिहार के अलावा देश के सभी पिछड़े-अतिपिछड़ों के साथ दलित और अल्पसंख्यक भी गणना का बहिष्कार कर सकते हैं। जनगणना के जिन आंकड़ों से देश की बहुसंख्यक आबादी का भला नहीं होता हो, तो फिर जानवरों की गणना वाले आंकड़ों का क्या हम अचार डालेंगे?" राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव का यह ट्वीट देश की राजनीति में एक नए मुद्दे के परवान चढ़ने का संकेत हैं। क्योंकि लालू प्रसाद यादव की तरह इस तरह की मांग एनडीए का हिस्सा जनता दल (यू) ने भी कर डाली है।
पार्टी के मुखिया और बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने तो इसके लिए बकायदा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिख दिया है। इसी तरह की मांग एनडीए के एक और साथी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के प्रमुख और मोदी सरकार में मंत्री राम दास अठावले ने भी कर डाली है। चौंकाने वाली बात है कि भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक इस संबंध में अपना कोई रुख नहीं प्रकट किया है लेकिन पार्टी के अंदर से भी यह मांग उठने लगी है कि जातिगत जनगणना होनी चाहिए।
सरकार ने बता दिए हैं अपने इरादे
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने 20 जुलाई 2021 को लोकसभा में दिए जवाब में कह चुके हैं "फिलहाल केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा किसी और जाति की गिनती का कोई आदेश नहीं दिया है। पिछली बार की तरह ही इस बार भी जनगणना में एससी और एसटी को ही शामिल किया गया है।" सााफ है कि सरकार फिलहाल इस तरह की कोई जनगणना नहीं कराना चाहती है।
क्या है जातिगत जनगणना
देश में वैसे तो 1860 से जनगणना की जा रही है। और 1931 तक जातिगत जनगणना की जाती थी। लेकिन आजादी के बाद से शुरू हुई जनगणना में केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति की ही जातियों के रुप में अलग से जनगणना की जाती रही है। उसमें ओबीसी जातियों की जनगणना नहीं होती रही है। लेकिन अब यह मांग उठने लगी है कि देश में ओबीसी की भी गणना की जाय। जिससे कि सही स्थिति का अंदाजा लग सके। ऐसे में सवाल उठता है कि भाजपा क्यों जातिगत जनगणना नहीं करा रही है
इस पर ओबीसी आयोग के पूर्व चेयरमैन और भाजपा नेता गणेश सिंह ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहा "देखिए ओबीसी के लिए जितना कुछ भाजपा सरकार ने किया है, वह किसी और राजनीतिक दल ने नहीं किया। पहली बार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा मिला। इसी तरह नीट की परीक्षा में भी केंद्र के कोटे में ओबीसी आरक्षण लागू किया गया है। अब नया ओबीसी विधेयक भी पारित हो रहा है। इसके जरिए राज्यों को यह अधिकार मिल जाएगा कि वह अपने अनुसार ओबीसी जातियों की सूची में बदलाव कर सकेंगे। यह ऐसे कदम हैं जो ऐतिहासिक है, जिस तरह डॉ भीमराव अंबेडकर ने अनुसूचित जाति और जनजातियों को उनका अधिकार दिलाया है। उसी तरह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ओबीसी को उनका हक दिलाया है।"
अब सवाल उठता है तो फिर भाजपा जातिगत जनगणना का ऐलान क्यों नहीं कर रही है। इस पर पार्टी के ही एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पार्टी ने अभी तक यह नहीं कहा है कि जातिगत जनगणना नहीं होनी चाहिए। हो सकता है कि बाद दिनों में सरकार इसका ऐलान कर दे। लेकिन एक बात जरूर है कि आज यह लोगों की मांग है कि जातिगत जनगणना की जानी चाहिए।
किस बात का है डर
असल में अगर जातिगत जनगणना होती है तो इस बात का डर है कि कहीं मौजूदा आंकलन की तुलना में ओबीसी की संख्या में बढ़ोतरी या कमी न हो जाय। तो यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। और आरक्षण की नई मांग खड़ी हो सकती है। जिस तरह अगले कुछ महीनों में 5 राज्यों में विधान सभा चुनाव और 2024 में लोक सभा चुनाव है। भारतीय जनता पार्टी किसी हालत में नहीं चाहती है कि चुनाव में जाति का मुद्दा खड़ा हो जाय। क्योंकि 1990 में तत्कालीन प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़ा वर्ग पर गठित बी.पी.मंडल आयोग की कुल 40 सिफारिशों में से एक सिफारिश को जब लागू किया और उसके बाद अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 प्रतिशत आरक्षण मिलने की व्यवस्था हुई । मंडल कमीशन की रिपोर्ट (1979 में पेश की गई थी) के अनुसार देश में 52 फीसदी ओबीसी जातियां थी। उस एक फैसले ने पूरे भारत, खासकर उत्तर भारत की राजनीति को ही बदल कर रख दिया।
इस तरह का डर ओबीसी जातिगत जनगणना से भी दिखता है। इसीलिए कोई राजनीतिक दल जो सत्ता में रहता है वह जोखिम नहीं लेना चाहता है। क्योंकि उसका सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में दिख सकता है। और फिलहाल इस जोखिम को भाजपा नहीं लेना चाहती है। जीबी पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर बद्री नारायण का कहना है "नया ओबीसी विधेयक बहुत ही अच्छा कदम है, इसका ओबीसी वर्ग को बड़ा फायदा मिलेगा लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि इसके जरिए जो ओबीसी वर्ग में सबसे निचले पायदान पर जातियां हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ मिल सके।"
नीतीश और लालू क्यों चाहते हैं जातिगत जनगणना
नीतीश कुमार ने पटना में एक कार्यक्रम के दौरान कहा है कि जाति जनगणना के लिए आखिरी फैसला केंद्र को करना है। इसमें कोई राजनीतिक रंग नहीं है। क्योंकि अगर जातिगत जनगणना होती है तो सरकारों के लिए ओबीसी वर्ग के लिए नीतियां बनाना कहीं ज्यादा आसान हो जाएगा। यह पूरी तरह से सामाजिक मुद्दा है। कुछ इसी तरह की बात लालू प्रसाद यादव भी करते हैं। लेकिन एक बात साफ है कि नेता ऊपर से कुछ भी कहे लेकिन सबको इस मुद्दे में राजनीतिक फायदा ही दिख रहा है।