- नागरिकों के कर्तव्य पर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर है।
- प्रधानमंत्री ने अपने 5 प्रण में भी नागरिकों के कर्तव्य की बात कही हैं।
- उन्होंने यह भी कहा था कि नागिरकों के कर्तव्य के दायरे में प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री भी आते हैं।
Rajpath to Kartavya Path :देश की राजधानी दिल्ली में ऐतिहासिक राजपथ (Rajpath)और सेंट्रल विस्टा लॉन्स (Central Vista Lawns) को नई पहचान मिलने जा रही है। ऐसी खबरें है कि सरकार , ऐतिहासिक राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ (Kartavya Path)करने जा रही है। और नए रूप में तैयार इस इलाके को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 सितंबर को देश के समर्पित कर सकते हैं। राजपथ का नाम कर्तव्य पथ करने की योजना अगर अमल में लाई जाती है तो नए नाम का बेहद महत्व होगा। क्योंकि कर्तव्य शब्द कही न कहीं देश के सर्वोच्च पद पर बैठे नागरिक से लेकर आम आदमी को उसके देश के प्रति कर्तव्य की भी याद दिलाएगा।
मोदी सरकार बार-बार कर्तव्य की दिला रही है याद
ऐसा नहीं है कि कर्तव्य पथ के जरिए ही मोदी सरकार कर्तव्य की याद दिलाने की तैयारी में हैं। इसके पहले भी कई ऐसे मौके आए हैं, जब सरकार नागरिकों के कर्तव्य की बात करती आई है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 जनवरी को आजादी के अमृत महोत्सव कार्यक्रम के दौरान मूल कर्तव्यों को लेकर अहम बात कही थी..
उन्होंने कहा था कि हमें ये भी मानना होगा कि आजादी के बाद के 75 वर्षों में, हमारे समाज में, हमारे राष्ट्र में, एक बुराई सबके भीतर घर कर गई है। ये बुराई है, अपने कर्तव्यों से विमुख होना, अपने कर्तव्यों को सर्वोपरि नहीं रखना। उन्होंने कहा कि बीते 75 वर्षों में हमने सिर्फ अधिकारों की बात की, अधिकारों के लिए झगड़े, जूझे, समय खपाते रहे। अधिकार की बात, कुछ हद तक, कुछ समय के लिए, किसी एक परिस्थिति में सही हो सकती है लेकिन अपने कर्तव्यों को पूरी तरह भूल जाना, इस बात ने भारत को कमजोर रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री ने सभी का आह्वान करते हुए कहा, "हम सभी को, देश के हर नागरिक के हृदय में एक दीया जलाना है- कर्तव्य का दीया। हम सभी मिलकर, देश को कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ाएंगे, तो समाज में व्याप्त बुराइयां भी दूर होंगी और देश नई ऊंचाई पर भी पहुंचेगा।
इसके बाद उन्होंने 26 जनवरी को लाल किले से विकासशील भारत को विकसित भारत बनाने की बात कही। इसी मौके पर उन्होंने 5 प्रण लेने का भी आह्वाहन किया। उन्होंने इन 5 प्रण में आखिरी प्रण नागरिकों के कर्तव्य की बात की थी। उनका कहना था कि नागरिकों के कर्तव्य से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री भी बाहर नहीं हैं। देश तभी आगे बढ़ सकता है, जब हम अपने कर्तव्यों का पालन करें। यदि सरकार का कर्तव्य है कि वह हर समय बिजली की आपूर्ति करें तो यह नागरिक का कर्तव्य है कि वह कम से कम बिजली खर्च करे। यदि सरकार सिंचाई के लिए पानी दे तो नागरिक का कर्तव्य है कि वह पानी की ज्यादा से ज्यादा बचत करे।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी है दायर
नागरिकों के कर्तव्य पर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। जिस पर सुनवाई चल रही है। इस याचिका में कहा गया है कि मौलिक कर्तव्यों का पालन सुनिश्चित की जाय। याचिका के अनुसार बिना कर्तव्यों का पालन किए एक आदर्श राष्ट्र की कल्पना नहीं की सकती। इसके पहले साल 1998 में केंद्र सरकार द्वारा गठित जे.एस.वर्मा कमेटी ने मौलिक कर्तव्यों का पालन सुनिश्चित करने के लिए कानूनी आधार तैयार करने की बात कही थी। कमेटी ने स्कूल के बच्चों समेत आम नागरिकों को इन कर्तव्यों के प्रति जागरूक करने और उनके पालन के लिए प्रोत्साहित करने को कहा था।
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क्या हैं मौलिक कर्तव्य
दरअसल मूल संविधान में नागरिकों के कर्तव्य नहीं थे। उन्हें स्वर्ण सिंह कमेटी की सिफारिशों पर 42 वें संविधान संशोधन के जरिए साल 1976 में मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया था। इस समय 11 मौलिक कर्तव्य हैं। और उम्मीद की जाती है भारतीय नागरिक इन कर्तव्यों का पालन करेंगे। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 51A के भाग 4(A) में भारत के नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है..
- संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्र गान का आदर करना।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करना और उसे अक्षुण्ण रखना।
- स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखना और उनका पालन करना।
- देश की रक्षा करना और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करना।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखना और हिंसा नहीं करना।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करना। जो धर्म, भाषा व प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से ऊपर हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करना जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
- हमारी संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझना और उसकी रक्षा करना।
- पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव आते हैं की रक्षा और विकास करना। इसके अलावा प्राणी के लिये दया भाव रखना।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करना।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करना, जिससे राष्ट्र की प्रगति हो और वह निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को प्राप्त कर सके
- छह से 14 वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चे बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना (इसे 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया)