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Chipko Movement: क्या है चिपको आंदोलन, किसने और कब की थी शुरुआत

Updated Jun 05, 2020 | 15:37 IST

Chipko Movement: जंगलों की सुरक्षा और पेड़ों को कटने से बचाने के लिए 50 साल पहले शुरू हुए एक आंदोलन का नाम इतिहास में दर्ज हो गया,चिपको आंदोलन की शुरुआत किसने, कब और क्यों की जानते हैं इसके बारे में विस्तार से-

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चिपको आंदोलन क्या है (Source: Pixabay)
मुख्य बातें
  • चिपको आंदोलन की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी
  • जंगलों को बचाने के लिए इस मुहिम की शुरुआत की गई थी
  • उत्तराखंड के चमोली गांव से इस मुहिम की शुरुआत हुई थी

पेड़ पौधों को बचाने के लिए आज से करीब 50 साल पहले भारत में एक अनोखा आंदोलन किया गया था। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए पेड़ पौधं का इसमें बड़ा योगदान होता है और इसी पेड़ पौधों को काटने से बचाने के लिए इस अनोखे आंदोलन की शुरुआत की गई थी जिसका नाम दिया गया था चिपको आंदोलन। इसकी शुरुआत मूल रुप से 1970 में हुई थी। इस आंदोलन में आंदोलनकारी पेड़ों से लिपटकर खड़े रहते थे जैसे उन्हें आलिंगन कर रहे हों। उनका यी तरीका इस बात का संदेश देता था कि वे पेड़ों को काटने नहीं देंगे चाहे उन्हें खुद कट जाना पड़े।

जंगल की सुरक्षा की दिशा में नागरिकों की तरफ से उठाया गया ये एक बड़ा कदम था। साल 1970 में बड़ी संख्या में भारत में पेड़ काटे जा रहे थे जिससे लोगों के जीवन पर बड़ा असर पड़ रहा था। इसी का विरोध करने के लिए उत्तराखंड के चमोली गांव के लोगों ने पेड़ों के साथ चिपकना शुरू कर दिटा था ताकि वे उन्हें कटने से बचा सकें। इस आंदोलन में सबसे ज्यादा महिलाओं ने हिस्सा लिया था। 

आंदोलन की जनक

इस आंदोलन की जनक गौरा देवी, सुदेशा देवी और बचनी देवी को कहा जाता है जिसके जरिए इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी। सबसे पहले इन्हीं तीनों महिलाओं ने जंगलों को बचाने की मुहिम छेड़ी थी। इस कड़ी में इन्होंने पेड़ों से चिपककर खड़े रहना मुनासिब समझा लेकिन पेड़ों को काटने देने के लिए तैयार नहीं हुई। इन्हीं को देखकर बड़ी संख्या में महिलाओं ने इनका अनुकरण किया और वे भी पेड़ों से चिपककर आंदोलन करने लगीं। धीरे-धीरे इस आंदोलन ने बड़ा रुप ले लिया और इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया।

क्यों हुई थी शुरुआत

यह एक सरकारी आदेश के विरोध में शुरू हुआ था। जंगल की जमीन को एक स्पोर्ट्स कंपनी को दिए जाने का आदेश सरकार ने पास कर दिया था। इस आदेश के बाद कंपनी जंगल के उस हिस्से में आने वाले सारे पेड़ पौधों को काटने जा रही थी जिसके विरोध में ग्रामीणों ने ये विरोध शुरू किया था। ग्रामीणों का सब्र का बांध तब टूट गया जब जनवरी 1974 में सरकार ने अलकनंदा के ऊपर के जंगल में आने वाले ढाई हजार पेड़ों की नीलामी की घोषणा कर दी।

मार्च के महीने में जब गांव की एक लड़की ने जंगल में सरकारी अफसरों की हरकत देखी तो उसने ग्रामीणों को इस बारे में खबर कर दी। इसके बाद बड़ी संख्या में महिलाएं सहित सैकड़ों ग्रामीण अपने-अपने घरों से निकलकर जंगलों की तरफ आए और पेड़ों से चिपककर खड़े हो गए। इस तरह से वे पेड़ों के काटे जाने का शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। उन्हें इसके लिए धमकाया भी गया लेकिन उन्होंने पेड़ों से दूर हटने का फैसला नहीं किया।    

मिला था सकारात्मक परिणाम

आपको जानकर हैरानी होगी की जंगलों की रक्षा करने के लिए महिलाओं ने हफ्ते दिन तक दिन रात पेड़ों से अपने आप को चिपकाए रखा। चिपको आंदोलन महात्मा गांधी के आदर्शों पर शांतिपूर्ण ढंग से शुरू किया गया विरोध प्रदर्शन था। इसमें ना कोई नारेबाजी थी और ना ही कोई हिंसा। बिना शोर शराबे के शांतिपूर्ण ढंग से इस शक्तिशालि विरोध प्रदर्शन को अंजाम दिया गया था। 

गांधी विचारधारा के सुंदरलाल बहुगुणा ने इस आंदोलन की शुरुआत की थी। उन्होंने फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से इन पेड़ों को ना काटने व जंगल की सुरक्षा करने की अपील की थी। उनकी इस अपील को स्वीकार कर लिया गया और परिणामस्वरुप इन पेड़ों को काटने के लिए 15 साल का प्रतिबंध लगा दिया गया।

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