15 August 1947 A Historics Day: भारत की आजादी का दिन 15 अगस्त 1947, ये महज एक दिन नहीं था बल्कि भारत के लिए अविस्मरणीय दिन बन गया देश ने सालों अंग्रेजों की गुलामी झेलने के बाद आज ही के दिन आजादी की सांस ली थी और हजारों लोगों की कुर्बानियों के बाद भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी, इस खास दिन से जुड़ी कई अहम बातें हैं जिनके बारे में हम आपको बताएंगे, हां ये जरुर कि उस दिन हर भारतवासी के मन में देश के आजाद होने की अलग ही खुशी थी और इसे वो कई माध्यमों से झलका रहे थे और पूरे देश खासकर दिल्ली में अलग ही जश्न का माहौल था।
लार्ड माउंटबेटन ने निजी तौर पर भारत की स्वतंत्रता के लिए 15 अगस्त का दिन तय किया क्योंकि इस दिन को वह अपने कार्यकाल के लिए बेहद भाग्यशाली मानते थे इसके पीछे की वजह भी थी दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 15 अगस्त 1945 को जापान ने मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण किया था जिसे ब्रिटेन के लिए बड़ी विजय माना गया था इसलिए माउंटबेटन के लिए 15 अगस्त का दिन खास था।
लॉर्ड माउंटबेटन ने जून 1948 में आजादी देने की बात कही जिसका जमकर विरोध हुआ इस विरोध के बाद माउंटबेटन को अगस्त 1947 में आजादी देने के लिए बाध्य होना पड़ा और भारत को आजादी इस दिन मिली।
16 अगस्त को लाल किले में फहराया गया था झंडा
वहीं हर साल स्वतंत्रता दिवस पर भारत के प्रधानमंत्री लाल किले से झंडा फहराते हैं, लेकिन 15 अगस्त, 1947 को ऐसा नहीं हुआ था, लोकसभा सचिवालय के एक शोध पत्र के मुताबिक नेहरू ने 16 अगस्त, 1947 को लाल किले से झंडा फहराया था हालांकि 14 अगस्त 1947 की शाम को ही वायसराय हाउस के उपर से यूनियन जैक को उतार लिया गया था। भारत भले ही 1947 को आजाद हो गया हो लेकिन हिन्दुस्तान के पास अपना खुद का राष्ट्रगान नहीं था जबकि रवींद्रनाथ टैगोर ने 1911 में ही जन गण मन को लिख दिया था मगर 1950 में वह राष्ट्रगान बन पाया जसके बाद से इसे गाया जाता है।
जवाहर लाल नेहरू ने ऐतिहासिक भाषण 'ट्रिस्ट विद डेस्टनी' दिया था
14 अगस्त की मध्यरात्रि को जवाहर लाल नेहरू ने अपना ऐतिहासिक भाषण 'ट्रिस्ट विद डेस्टनी' दिया था इस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना था। नेहरू ने ये ऐतिहासिक भाषण 14 अगस्त की मध्यरात्रि को वायसराय लॉज (मौजूदा राष्ट्रपति भवन) से दिया था, बताते हैं कि इस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना वहीं 15 अगस्त के दिन लॉर्ड माउंटबेटन अपने ऑफिस में काम किया दोपहर में पंडित नेहरू ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल की सूची सौंपी थी और उसके बाद में इंडिया गेट के पास प्रिसेंज गार्डेन में एक सभा को संबोधित किया था।
इस खास दिन पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इस जश्न में नहीं थे शामिल
15 अगस्त 1947, को जब राजधानी दिल्ली में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था उस वक्त महात्मा गांधी दिल्ली से दूर पश्चिम बंगाल के नोआखली में थे। जहां वे हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच हो रही सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए अनशन कर रहे थे। गांधीजी ने 15 अगस्त 1947 का दिन 24 घंटे का उपवास करके मनाया था। उस वक्त देश को आजादी तो मिली थी लेकिन इसके साथ ही मुल्क का बंटवारा भी हो गया था, कुछ महीनों से देश में लगातार हिंदू और मुसलमानों के बीच दंगे हो रहे थे और इस अशांत माहौल से गांधीजी काफी दुखी थे।
पंडित नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल ने महात्मा गांधी को पत्र लिखकर बताया था कि 15 अगस्त को देश का पहला स्वाधीनता दिवस मनाया जाएगा इसके जबाव में पत्र लिखते हुए महात्मा ने कहा था कि जब बंगाल में हिन्दू-मुस्लिम एक दूसरे की जान ले रहे हैं, ऐसे में मैं जश्न मनाने के लिए कैसे आ सकता हूं। मैं दंगा रोकने के लिए अपनी जान दे दूंगा।