- द्रौपदी मुर्मू का जीवन कई चुनौतियों और संघर्षों का रहा है गवाह
- दो बेटों और पति को खोने के बावजूद भी मुर्मू ने नहीं मानी हार
- द्रौपदी मुर्मू ने राज्यपाल रहते हुए लौटा दिया था बीजेपी सरकार का विधेयक
Draupadi Murmu Biography: एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को एकतरफा मुकाबले में हराने के साथ ही भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति निर्वाचित होकर इतिहास रच दिया। एक साधारण परिवार से लेकर देश के शीर्ष पद तक पहुंचने वाली मुर्मू का जीवन भी चुनौतियों और संघर्षों से भरा रहा है। अपने राजनीतिक जीवन में कई तरह की सफलताएं अर्जित करने वाली मुर्मू का निजी जीवन में कई बार इम्तहान हुआ। एक समय ऐसा आया जब द्रौपदी मुर्मू डिप्रेशन में चली गई थीं।
बेटे की मौत से टूट गईं थी मुर्मू
बात अक्टूबर 2009 की है जब मुर्मू के बड़े बेटे की 25 साल की उम्र में एक सड़क हादसे में निधन हो गया था। जवान बेटे की मौत से मुर्मू बुरी तरह टूट चुकी थीं और वह डिप्रेशन में चली गईं। बेटे की मौत का सदम झेलना उनके लिए मुश्किल हो गया था जब उन्होंने आध्यात्म का सहारा लिया और ओडिशा के रायरंगपुर स्थित आध्यात्मिक संस्था प्रजापिता ईश्वरीय ब्रह्माकुमारी योग संस्थान में जाकर साधना करने लगी। धीरे- धीरे वह नियमित अभ्यास करने लगी और उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव आने लगा।
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दूसरे बेटे के साथ पति को भी खोया
लेकिन जैसे ही वह सामान्य जिंदगी की तरफ कदम बढ़ा रही थी कि उनके साथ फिर वहीं हादसा हो गया और मुर्मू के दूसरे बेटे की भी 2013 में एक सड़क हादसे के दौरान मौत हो गई। दोनों बेटों को खोना, इससे बड़ा दुखों का पहाड़ और क्या हो सकता है। त्रासदी यहीं नहीं रूकी इसके बाद उनके मां और भाई की भी मौत हो गई। इसके एक साल बाद यानि 2014 में उनके पति की भी मौत हो गई। मुर्मू की जिजीविषा ही थी कि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने खुद को समाजसेवा में खपाने का संकल्प लिया।
उनके विषय के बच्चों को नहीं पड़ी ट्यूशन की जरूरत
द्रौपदी मुर्मू ने इसलिए पढ़ाई कि तांकि वह अपने परिवार के लिए रोजी रोटी कमा सके। एक क्लर्क की नौकरी से लेकर टीचर और सहायक प्रोफेसर तक की नौकरी के दौरान हमेशा उनकी ईमानदारी और सादगी की चर्चा होती रही। वो शिक्षक रहने के दौरान क्लास में अपना विषय इस तरह पढ़ाती थीं कि उस विषय के बच्चों को ट्यूशन लेने की जरूरत नहीं पड़ती थी। विधायक बनने के बाद वह ओडिशा सरकार में मंत्री भी बनीं। 2009 में जब वह चुनाव हार गई थी वापस अपने गांव लौटकर रहने लगीं। और इस दौरान उन्होंने नेत्रदान करने का ऐलान भी किया।
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राज्यपाल होते हुए लौटा दिया बीजेपी सरकार का विधेयक
1997 में अपना राजनीतिक करियर रायरंगपुर नगर पंचायत में पार्षद से शुरू करने वाली मुर्मू 2015 में झारखंड की राज्यपाल नियुक्त की गईं और 2021 तक इस पर बनी रहीं। राज्यपाल के रूप में द्रौपदी मुर्मू ने अपनी ही सरकार द्वारा विधानसभा से पारित कराए गए सीएनटी-एसपीटी में संशोधन से संबंधित विधेयक को लौटा दिया था। इतना ही नहीं उन्होंने सोरेन सरकार के जनजातीय परामर्शदातृ समिति (टीएसी) के गठन से संबंधित फाइल भी लौटा दी थी।
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