Yogi Adityanath Throwback: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिता आनंद सिंह बिष्ट जी का 89 साल की उम्र में निधन दिल्ली के AIIMS में निधन हो गया। सोमवार सुबह 10:40 मिनट पर उन्होंने ली आख़िरी सांस ली। योगी आदित्यनाथ पिता की मौत के बीच कर्मयोगी की तरह डटे रहे। कोविड 19 को लेकर टीम-11 की बैठक के बीच उन्हें पिता के निधन की खबर मिली, फिर भी वह जरा भी विचलित नहीं हुए। योगी आदित्यनाथ मीटिंग पूरी होने के बाद ही खड़े हुए।
बता दें कि पांच बार गोरखपुर से सांसद रहने वाले योगी आदित्यनाथ ने कई साल पहले अपना परिवार त्याग कर संन्यास ले लिया था। योगी आदित्यनाथ महंत अवेद्यनाथ के बुलावे पर गोरखपुर आ गए और सिर मुड़ाकर भगवा वस्त्र धारण कर लिए। घर पर उनकी खोज शुरू हुई और काफी समय तक यह पता ही नहीं चला कि वह कहां हैं। तब पिता उन्हें खोजने निकले और गोरखपुर पहुंचे। यहां आकर उन्होंने देखा कि भगवा वस्त्र पहने योगी आदित्यनाथ तो बाबा बन चुके हैं। पिता उन्हें देखकर चौंक गए और घर चलने की जिद करने लगे।
ये है पूरा मामला
बात 1992 की है जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक कार्यक्रम में अवेद्यनाथ महाराज को योगी आदित्यनाथ का भाषण बेहद पसंद आया। उन्होंने चलते वक्त अजय सिंह बिष्ट (उस वक्त नाम) को गोरखपुर आने का निमंत्रण दिया। कुछ वक्त बाद वह मां से गोरखपुर जाने की कहकर घर से निकल गए। मां को लगा कि वह वहां जाकर नौकरी करेंगे। जब छह महीने तक वह नहीं लौटे और ना ही उनकी कोई खबर आई तो मां और परिवार को चिंता हुई।
अखबार में छपी फोटो से चला पता
लेखक प्रवीण कुमार की पुस्तक योद्धा योगी में बताया गया है कि योगी आदित्यनाथ की बड़ी बहन पुष्पा जो शादी के बाद दिल्ली में बस गई थीं, उन्होंने योगी के बारे में पिता को को बताया कि आप गोरखनाथ मंदिर जाइये, वहां आपको पता चल जाएगा। पुष्पा को किसी ने बताया था कि उनके भाई की अखबार में तस्वीर छपी है और लिखा है कि गोरखपुर के सांसद और गोरक्षपीठाधीश्वर ने दो महीने पहले अपने अपने उत्तराधिकारी के नाम की घोषणा कर दी है। वह योगी आदित्यनाथ हैं और पौड़ी के रहने वाले हैं।
रूप-रंग देखकर चौंके पिता
पिता जब गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर पहुंचे तो देखा कि भगवा धारण किए सिर मुड़ाए उनका बेटा अजय फर्श की सफाई का मुआयना कर रहा था! इसके बाद तो पिता चौंक गए और उनसे घर चलने की जिद करने लगे। योगी ने तब उनकी मुलाकात अवेद्यनाथ से कराई। उन्होंने कहा कि आपके पास चार बेटे हैं, क्या आप एक को समाज कार्य के लिए नहीं दे सकते। पिता के पास कोई जवाब नहीं था। उन्होंने कुछ दिन गोरखपुर में बिताए और खाली हाथ अपने गांव पंचूर लौट गए।