- सौरभ कृपाल, समलैंगिंक अधिकारों को लेकर रहे हैं मुखर
- सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें दिल्ली हाइकोर्ट में जज बनाने की सिफारिश की
- सौरभ कृपाल, 31वें सीजेआई रहे बी एन कृपाल के बेटे हैं।
सुप्रीट कोर्ट कॉलेजिम ने वरिष्ठ वकील सौरभ कृपाल को दिल्ली हाइकोर्ट में जज बनाने की सिफारिश की है। अगर उनकी नियुक्ति होती है तो वो देश के पहले समलैंगिक जज होंगे। सौरभ कृपाल, समलैंगिक मुद्दों को उठाते रहे हैं और आवाज भी बुलंज कर चुके हैं। बता दें कि यह दूसरी बार है जब सौरभ कृपाल के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की तरफ से सिफारिश की गई है। 2017 में दिल्ली हाइकोर्ट कॉलेजियम ने भी उन्हें जज बनाने की सिफारिश की थी। हालांकि 2017 से इनके केस पर अलग अलग सीजेई किसी खास फैसले पर नहीं पहुंच सके। खासतौर से सौरभ कृपाल के सेक्सुअल झुकाव को लेकर कई तरह की आपत्ति दर्ज की गई थी।
कौन हैं सौरभ कृपाल
सौरभ कृपाल, जस्टिस बी एन कृपाल के बेटे हैं जो मई 2002 से नवंबर 2002 तक सुप्रीम कोर्ट के 31 वें मुख्य न्यायाधीश थे। सौरभ कृपाल, दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से फिजिक्स में बीएससी ऑनर्स है। बीएससी की पढ़ाई के बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड से लॉ की पढ़ाई की। यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज से उन्होंने लॉ में मास्टर की डिग्री ली। भारत आने से पहले जेनेवा में यूनाइटेड नेशंस के लिए कुछ समय तक काम किया था। लॉ प्रैक्टिस के क्षेत्र में उन्हें करीब दो दशक पुराना अनुभव है। खास तौर से वो सिविल, वाणिज्यिक और संवैधानिक मामलों को देखते रहे हैं। सौरभ कृपाल, खुले तौर पर एलजीबीटी समाज के प्रति अपनी राय रखते रहे हैं और कई केस को अदालत की दहलीज तक ले गए।
2017 में जज बनने के लिए उन्होंने अपनी सहमति दी। उस समय दिल्ली हाइकोर्ट में जस्टिस रहीं गीता मित्तल ने जो एक्टिंग चीफ जस्टिस थीं सौरभ कृपाल के नाम की सिफारिश की। 13 अक्टूबर 2017 को पहली बार सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की तरफ से जज बनाने के लिए उनके नाम की सिफारिश की गई। सितंबर 2018 में उनके नाम पर कॉलेजियम ने बिना किसी कारण का जिक्र किए सहमति नहीं दी। 2019 में सीजेआई रहे रंजन गोगोई ने भी उनके केस को टाल दिया और उसके पीछे मेरिट का हवाला दिया गया। तीन महीने बाद एक बार फिर इसी आधार पर केस को टाल दिया गया। बताया गया कि आईबी की एक रिपोर्ट सौरभ कृपाल के पक्ष में नहीं थी। मार्च 2021 में सौरभ कृपाल को सिनियर एडवोकेट बनाया गया जिसमें दिल्ली हाइकोर्ट के सभी 31 जजों की सहमति थी।