केन्द्रीय विद्यालय में अब दाखिला करवाने के लिए सांसदो के चक्कर नही काटने पड़ेंगे और ना ही उनकी जी हजूरी करनी पड़ेगी, क्योंकि केन्द्रीय विद्यालय संगठन ने सांसद कोटा खत्म कर दिया है। इससे पहले केवीएस संगठन ने पिछले साल शिक्षा मंत्री का कोटा खत्म कर दिया था, और अब इसबार बचा हुआ सांसद कोटा भी खत्म कर दिया है। दरअसल इसबार सांसदो को कूपन जारी नही किए गए है, तभी से चर्चा थी कि अब केवीएस में एडमिशन के लिए सांसदों को कोटा खत्म किया जा सकता है।
भाजपा- कांग्रेस ने रखे अपने विचार
इस फैसले से कुछ सांसद खुश है तो कुछ ने आपत्ती जताई है कि इस कोटा को खत्म ना करके इसे बढ़ाना चाहिए था। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि कोरोना के दौरान जो बच्चे अनाथ हुए थे, उन्हे दाखिले में प्राथमिकता दी जाएगी, तो वहीं कांग्रेस नेता उदित राज ने कहा कि इस कोटे से गरीब और जरूरतमंद छात्रों का दाखिला हो जाता है। गरीब परिवारो की आर्थिक स्थिति सही नही होने की वजह से प्राइवेट स्कूल में नही पढ़ पाते है। इस भाजपा सरकार ने गरीब छात्रों का हक छीनकर कोटे की सीट बढ़ाने की बजाए इसे खत्म कर दिया है, हमारी सरकार जब आएगी तो इस खत्म किए गए कोटे को फिर से बहाल करेगी..
कोटा से दाखिले की क्या थी प्रक्रिया
केन्द्रीय विद्यालय में दाखिले के लिए पिछले साल तक सांसदों के लिए 10 सीट रिसर्व रहती थी, यानि की हर सांसद अपने क्षेत्र में केवीएस में 10 छात्रों का दाखिला करा सकते थे। लोकसभा सांसद हो या राज्यसभा सांसद इसके लिए उनको केवीएस के कूपन जारी किए जाते थे तो वहीं शिक्षा मंत्री के लिए ये कोटा 450 सीट का था, यानि कि शिक्षा मंत्रालय केवीएस में 450 छात्रों का दाखिला कर सकते थे। लेकिन अब ये सभी कोटे केवीएस संगठन के अगले आदेश तक खत्म कर दिए गए है।
सांसदों के कोटे से किसका होता था भला
कहने को तो सांसद कहते है कि इस कोटे से गरीब और जरूरतमंद छात्रों का दाखिला होता है। गरीब छात्र या जरूरतमंद छात्र सांसदो के पास आते थे और अपना दाखिला करवा लेते थे। लेकिन क्या असल में ये सच है ? मेरे विचार से तो असल बात तो ये है कि जो परिवार या जानकार सांसदों के करीबी होते थे वो अपने बच्चे या पहचान वालों का दाखिला करवा लेते थे। क्योंकि केन्द्रीय विद्यालय में छात्र का दाखिला होना आसान नही है और वहां कि पढ़ाई अच्छी होने के साथ-साथ उसकी पढ़ाई की फीस बेहद कम है। यही नही केवीएस में दाखिला करवाने के लिए बहुत से सासंदो के करीबी लोग पैसे लेते थे, हालंकि ये कोई प्रमाण नहीं है की वो पैसा सांसद के पास जाता था की नही या फिर ये बात सांसदों को पता चलती थी या नही, लेकिन कुछ लोग सांसदों की पहचान की वहज से इस तरह का खेल रचते थे और मोटा पैसा कमाते थे, लेकिन केन्द्रीय विद्यालय के इन फैसले से उनके चल रही दुकानों पर पानी फिर गया।
कांग्रेस ने भी किया था कोटा खत्म
ऐसा नही है कि ये कोटा बीजेपी काल में ही खत्म हुआ हुआ है, कांग्रेस ने भी इन रिसर्व सीटों पर लगाम लगाई थी, दरअसल साल 2010 की यूपीए-2 की सरकार में मानव संसाधन मंत्री रहे कपिल सिब्बल ने सांसदों और शिक्षा मंत्री के कोटा को खत्म कर दिया था। जब इसका विरोध हुआ तो कपिल सिब्बल को ये फैसला वापिस लेना पड़ा, सिब्बल ने सांसदों के कोटे को तो बहाल कर दिया, लेकिन शिक्षा मंत्री के कोटे को बहाल नही किया। उसके बाद जब साल 2014 के एनडीए की सरकार में मानव संसाधन मंत्री रही स्मृति ईरानी ने शिक्षा मंत्री के कोटे को भी बहाल कर दिया।