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कौन थे जोगेन्द्र नाथ मंडल, जिनके बहाने पीएम मोदी ने किया कांग्रेस पर वार 

Updated Feb 06, 2020 | 15:53 IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में विपक्ष पर सीएए के मुद्दे पर हमला बोलते हुए पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री जोगेन्द्र नाथ मंडल की याद दिला दी जो कुछ साल बाद भारत लौट आए थे। जानिए उनकी पूरी कहानी।

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Jogendra Nath Mandal

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए धन्यवाद प्रस्ताव लोकसभा में पारित किए जाने से पहले विपक्षी दलों पर करारा हमला किया। सीएए पर विपक्ष को जवाब देते हुए उन्होंने पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल का भी जिक्र कर दिया। जोगेंद्र नाथ मंडल ने साल 1943 में मुस्लिम लीग का हाथ थामा था और पाकिस्तान के निर्माण में अहम भूमिका अदा की थी। 

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में जोगेंद्र नाथ मंडल की पहचान एक बड़े दलित नेता की थी। वो डॉ भीमराव आंबेडकर के करीबी थे। भारत से अगल पाकिस्तान के गठन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी और वो वहां के पहले कानून मंत्री भी बने थे। लेकिन इस्लामिक पाकिस्तान में हिंदुओं की दुर्दशा देखने के बाद 1950 में इस्तीफा देकर वो भारत लौट आए और 1968 में गुमनामी में उनका देहांत भी भारत में हुआ।

साल 1940 में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान रेजाल्यूशन पास किया था और भारत से अलग पाकिस्तान की मांग शुरू की थी। उस वक्त कुछ लोगों को छोड़कर अन्य किसी ने मोहम्मद अली जिन्ना की इस योजना को गंभीरता से नहीं लिया था। लेकिन दो तीन साल में स्थिति पूरी तरह बदल गई और पाकिस्तान की बात हर जगह होने लगी थी। 

जिस वक्त पाकिस्तान की मांग चरम पर थी ठीक उसी वक्त दलित राजनीति भी अपने उफान पर थी। तब शेड्यूल कास्ट फेडरेशन बना और जोगेन्द्र नाथ मंडल उसके सबसे प्रभावी नेताओं में से एक थे। जहां भीमराव अंबेडकर हिंदुओं और मुसलमानों को अलग-अलग जीवन धाराएं मानते थे। और कहते थे कि सांस्कृतिक तौर पर हिंदु और मुसलमान एक साथ नहीं आ सकते। 

मुस्लिम और दलितों को मानते थे एक जैसा 

जोगेंद्र नाथ मंडल समाज को उस दौर में केवल सामाजिक और राजनीतिक तौर पर देखते थे। उनका मानना था कि दलित और मुस्लिम समुदाय आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं तो ये दोनों एक समान हैं। दोनों मिलकर एक राजनैतिक ताकत बन सकते हैं। उनकी इसी सोच की वजह से मुस्लिम लीग में जगह आसानी से बन गई। 1943 में मुस्लिम लीग ने उनकी ओर हाथ बढ़ाया और उन्होंने मुस्लिम लीग का समर्थन अपने सभी विधायकों के साथ कर दिया। 

मुस्लिम लीग नेताओं ने मंडल को लगातार ये आश्वासन दिया की पाकिस्तान में दलित हिंदुओं को सामान्य से ज्यादा अधिकार होंगे। डायरेक्ट एक्शन डे के दिन हुए नरसंहार के बाद हिंदू नेताओं ने उनसे समर्थन वापस लेने को कहा लेकिन उन्होंने समर्थन देना जारी रखा। उन्होंने दलित हिंदुओं को दंगों से अलग रहने को कहा। नोवाखाली में हुए डायरेक्ट एक्शन में हजारों हिंदू दलित मारे गए थे क्योंकि उन्होंने अपने बचाव की कोई व्यवस्था नहीं की थी। 

14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान के गठन के बाद जोगेश्वर नाथ मंडल को देश का पहला कानून मंत्री भी नियुक्त किया गया। दलित हिंदुओं से मंडल ने पाकिस्तान में आस्था रखने को कहा जिसे उनके फॉलोअर्स ने माना भी। इस्लामिक पाकिस्तान में हिंदुओं के लिए कोई जगह नहीं थी। सरकार ने मंडल से किए सारे वादे नकार दिए। हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार, टूटपाट और जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं आम हो गईं। जब उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू की तो पाकिस्तान में मुस्लिम उलेमा और धर्मगुरू उन्हों अपने रास्ते का कांटा समझने लगे। 

10 फरवरी 1950 को ढाका में 10 हजार हिंदुओं को सिर्फ इसलिए मार दिया गया था क्योंकि कुछ हिंदू विधायकों ने ढाका असेंबली से वॉकआउट कर दिया था। ये सब मंडल के सामने हुआ इस मारे गए लोगों में उनकी जाति के लोग भी बड़ी संख्या में थे।   

अंबेडकर ने पाकिस्तान का साथ देने से किया था मना 

डॉ भीमराव अंबेडकर ने जोगेन्द्र नाथ मंडल से कहा था कि पाकिस्तान में दलित हिंदुओं की स्थिति अच्छी नहीं होगी। लेकिन ये बात उन्हें तब समझ में नहीं आई थी। उन्हें सामाज के सांस्कृतिक पहलू की समझ नहीं थी और न ही ताना बाना नजर आता था। सामाज को केवल राजनीतिक और आर्थिक चश्मे से देखने की उन्होंने भूल की थी जो कि भारी पड़ गई।  8 अक्टूबर 1950 को पाकिस्तान कैबिनेट से अपना इस्तीफा देकर भारत लौट आए। 
 

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