सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक पीठ विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियों लेकर अपने ही द्वारा 2016 में दिए गए ऐतिहासिक ‘नबाम रेबिया’ फैसले की न्यायिक समीक्षा करेगा। 23 अगस्त को मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियों को लेकर नबाम रेबिया फैसले पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 145(3) के तहत इस फैसले के विस्तृत कानूनी व्याख्या के लिए 5 जजों की संवैधानिक पीठ बनाने का आदेश दिए है. ये पीठ नबाम रेबिया फैसले पर उठ रही शंकाओं के बीच इन 10 सवालों के जवाब तलाशेगी। वो सवाल हैं:-
1: अगर विधानसभा के अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है तो क्या वो संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्रवाई कर सकते हैं?
2: क्या विधायकों की अयोग्यता के मामले पर सुप्रीम कोर्ट(अनुच्छेद 32) या हाईकोर्ट(संविधान के अनुच्छेद 226) के तहत सुनवाई का अधिकार रखते हैं?
3: क्या किसी भी विधायक को विधानसभा अध्यक्ष द्वारा निर्णय लिए बिना भी सिर्फ उसके कार्यव्यवहार के आधार पर अयोग्य करार दिया जा सकता है?
4: किसी भी विधायक की अयोग्यता पर फैसला लंबित रहने तक विधायक की सदन की कार्यवाही में क्या भूमिका हो सकती है?
5: अगर किसी विधायक के खिलाफ संविधान की दसवीं अनुसूची(दल बदल कानून) के तहत अयोग्यता की कार्रवाई लंबित है तो ऐसे में सदन में किए गए उसके कार्य की वैधानिकता क्या होगी?
6: दसवीं अनुसूची के पैरा 3 को हटाए जाने का क्या असर पड़ा?
7: व्हिप और विधायक दल के नेता पर फैसला लेने के स्पीकर के अधिकार का दायरा क्या होगा?
8: क्या किसी भी राजनीतिक पार्टी की आंतरिक गतिविधि में न्यायिक हस्तक्षेप हो सकता है?
9: किसी दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने के लिए राज्यपाल की शक्तियां और विवेक क्या है और क्या उसकी न्यायिक समीक्षा हो सकती है?
10: किसी राजनीतिक दल में होने वाले विभाजन के संदर्भ में केंद्रीय चुनाव आयोग की शक्तियों का दायरा क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में संवैधानिक पीठ द्वारा सुनवाई करने तक चुनाव आयोग द्वारा शिवसेना के पार्टी चिन्ह पर चल रही कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। कल संवैधानिक बेंच सबसे पहले इस दावे पर सुनवाई करेगा कि शिवसेना का चुनाव चिन्ह उद्धव ठाकरे गुट के पास रहेगा या एकनाथ शिंदे गुट के पास।