- बंगाल चुनाव में टीएमसी ने जीत की बड़ी जीत, तीसरी बार सीएम बनेंगी ममता
- नंदीग्राम सीट पर सुवेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को कड़े मुकाबले में हराया
- इस बार टीएमसी के वोट बैंक में हुआ इजाफा, कांग्रेस का वोट शेयर घटा
नई दिल्ली : बंगाल में टीएमसी की प्रचंड जीत ने सभी को चौंका दिया है। चुनाव नतीजों से पहले दो तरह की बातें कहीं जा रही थीं। कुछ लोग ऐसे थे जो यह मानकर चल रहे थे कि राज्य में इस बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार बन सकती है। तो कुछ यह मान रहे थे कि इस बार टीएमसी और भाजपा दोनों के बीच चुनाव नतीजों के समय कड़ी टक्कर देखने को मिलेगी। मतगणना से पहले आए ज्यादातर एग्जिट पोल्स में में कांटे की टक्कर बताई गई। कुछ एग्जिट पोल्स ऐसे भी थे जिन्होंने भाजपा या टीएमसी को एकतरफा जीतते हुए बताया। बहरहाल, रविवार देर रात चुनाव नतीजे आ गए। विधानसभा की 292 सीटों में से टीएमसी 210 सीटें जीत चुकी है और तीन पर वह आगे चल रही है। भाजपा इस बार 77 सीटें जीतने में सफल हुई है। कांग्रेस और लेफ्ट को इस बार एक भी सीट नहीं मिली है।
भाजपा ने ममता की जबर्दस्त घेराबंदी की थी
चुनावी विश्लेषक भी मान रहे थे कि भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से टीएमसी की घेरांबदी की है उससे ममता बनर्जी को सत्ता मे वापसी करने में मुश्किल होगी। भाजपा ने चुनाव के हर मोर्चे पर ममता की राह मुश्किल कर दी। पीएम की रैलियों में उमड़ रही भीड और उनके आक्रामक हमलों ने देश भर में यह संदेश दिया कि बंगाल में इस बार भाजपा का सत्ता में आना तय है लेकिन ममता बनर्जी भाजपा के आक्रामक तेवरों से परेशान नहीं हुई बल्कि भगवा पार्टी को अपनी आक्रामक शैली में जवाब दिया। इस चुनाव में भाजपा की जीत तमाम दावे किए जा रहे थे लेकिन चुनाव नतीजों ने इन सभी दावों को निरूत्तर कर दिया।
टीएमसी का वोट प्रतिशत बढ़ा
बंगाल में टीएमसी की इस प्रचंड विजय और भाजपी की हार के कारण गिनाए जा रहे हैं। जाहिर है कि चुनाव में जीत हार के एक नहीं कई कारण होते हैं। अलग-अलग चुनावी समीकरण जीत-हार तय करते हैं, फिर भी एक दो फैक्टर ऐसे होते हैं जो दलों की हार और जीत तय करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। टीएमसी की इस जीत के बारे में आंकलन करे तो ममता की इस जीत के पीछे एक फैक्टर जो सबसे बड़ा है। वह उसके वोट प्रतिशत में हुई वृद्धि है। इस बार टीएमसी को 2016 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले तीन प्रतिशत ज्यादा और 2019 के लोकसभा की तुलना में चार प्रतिशत ज्यादा वोट मिले हैं। टीएमसी को 2016 के विस चुनाव में 44.91 प्रतिशत और लोकसभा चुनाव में 43.3 प्रतिशत वोट मिले। जबकि इस बार विस चुनाव में उसे 47.93 प्रतिशत वोट मिले हैं। जाहिर है लोकसभा चुनाव दो साल पहले हुए हैं। टीएमसी ने इन दो सालों में अपने वोट बैंक में इजाफा किया। वहीं, लोकसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा के वोट प्रतिशत में करीब तीन प्रतिशत की कमी आई।
कांग्रेस और सीपीएम का प्रदर्शन बेहद खराब
जहां तक बात भारतीय जनता पार्टी की है तो 2016 के विस चुनाव में भाजपा को 10.16 प्रतिशत वोट मिले। जबकि टीएमसी को 44.91 प्रतिशत, कांग्रेस को 12.25 फीसदी, सीपीएम को 19.75 प्रतिशत, एआईएफबी 2.82 फीसदी वोट मिले। इस बार चुनाव में भाजपा को 38.14%, कांग्रेस को 2.94% और सीपीएम को 4.72 प्रतिशत वोट मिले। स्पष्ट है कि इस बार के विस चुनाव में कांग्रेस और सीपीएम का वोट प्रतिशत में जबर्दस्त गिरावट आई है। सीपीएम और कांग्रेस के वोट या तो भाजपा को मिले या टीएमसी के साथ गए, या दोनों में बंट गए।
दोतरफा चुनाव में टीएमसी पड़ी भारी
पश्चिम बंगाल में इस बार विधानसभा चुनाव दो तरफा हो गया। राज्य में भाजपा और टीएमसी ही चुनाव लड़ती दिखी। दो तरफा मुकाबले में नुकसान भाजपा को होना तय था क्योंकि राज्य में मुस्लिमों की आबादी करीब 30 प्रतिशत है। ऐसा लगता है कि मुस्लिमों ने इस बार भी एकजुट होकर ममता के पक्ष में मतदान किया। एआईएमआईएम मुखिया असदुद्दीन ओवैसी और फुरफुरा शरीफ के पीरजाबा अब्बास सिद्दिकी इस मुस्लिम वोटबैंक में सेंध नहीं लगा पाए। दूसरा बंगाली हिंदुओं का वोट भी टीएमसी को मिला। यह दोनों वोट बैंक भाजपा पर भारी पड़ गया।
पीके ने भी माना जीत में वोट शेयर बड़ा कारण बना
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी रविवार को कहा कि टीएमसी की जीत में कई फैक्टर हैं। हालांकि, इस जीत के लिए उन्होंने सबसे बड़ी वजह टीएमसी के वोट शेयर में हुई वृद्धि को बताया। उन्होंने कहा कि एक साल पहले जब उनकी टीम ने टीएमसी के चुनाव प्रबंधन का जिम्मा संभाला तो पता चला कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद पिछले दो सालों में जमीन पर चुनावी समीकरण काफी बदल गए हैं। इस दौरान दोनों पार्टियों के बीच वोटों का अंतर बढ़कर करीब 10 फीसदी हो गया। पीके का मानना था कि इस अंतर को पाट पाना भाजपा के लिए मुश्किल हो जाएगा। यही देखते हुए उन्होंने गत दिसंबर में भविष्यवाणी की कि भाजपा चुनाव में दोहरे अंकों से बाहर नहीं निकल पाएगी। चुनावी रणनीतिकार की यह भविष्यवाणी सही साबित हुई।