- गुरुवार को लोकसभा ने कृषि बिल को किया था पारित
- हरियाणा और पंजाब के किसानों को एमएसपी खत्म किए जाने का सता रहा है डर
- एपीएमसी शुल्क हटाए जाने की वजह से पंजाब सरकार को राजस्व में कमी का डर
नई दिल्ली। गुरुवार को कृषि बिल पारित हुआ हालांकि विरोध उससे पहले से हो रहा था। विरोध की लपट पंजाब और हरियाणा से उठी जिस पर विपक्षी दल सियासत कर रहे हैं। कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार का किसान विरोधी एजेंडा अब खुलकर सामने आ रहा है। लेकिन सबसे ज्यादा विरोध पंजाब और हरियाणा के किसानों में है। पंजाब में कांग्रेस के कद्दावर नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने तो आत्मसम्मान से जोड़ दिया। लेकिन यह समझना जरूरी है कि पंजाब और हरियाणा के अन्नदाताओं में उबाल क्यों है इसके लिए शांता कुमार की रिपोर्ट को समझने के साथ साथ राज्य कृषि मंडियों यानि एपीएमसी के बारे में समझना होगा।
2015 में बनी थी शांता कुमार समिति
आज से पांच वर्ष पहले 2015 में शांता कुमार की अध्यक्षता में एक समिति बनी जिसे यह जिम्मेदारी दी गई कि कितने फीसद किसान अपने उत्पादों को निजी हाथों में बेचते हैं। समिति की रिपोर्ट से जो जानकारी सामने आई उसके हिसाब से करीब 94 फीसद निजी कंपनियों और व्यापारियों को अपने उत्पाद बेच रहे थे। एपीएमसी की मंडियों में करीब 6 फीसद न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में सरकारी खरीद एजेंसियों को अपने उत्पादों को बेचा करते थे। अब बात हरियाणा और पंजाब की करते हैं।
पंजाब और हरियाणा से केंद्रीय खरीद में आएगी कमी
देश की सरकारी खरीद में पंजाब और हरियाणा का हिस्सा लगभग करीब 90 फीसद है और शेष कृषि उत्पादों की खरीद में मध्य प्रदेश, राजस्थान और कुछ अन्य राज्यों से होती है हालांकि ज्यादातर राज्य पहले से राज्य पहले से ही खरीद योजनाओं से बाहर हैं।पंजाब और हरियाणा में दोनों जगह केंद्रीय एजेंसियों के जरिए मौजूदा समय में करीब 66 फीसद कृषि उत्पादों की खरीद की जाती है। लेकिन बिल पारित होने के बाद खरीद का हिस्सा घटेगा और उस सूरत में निजी एजेंसियां खरीद करेंगी और यह किसानों के लिए परेशानी की वजह है कि आढ़तियों पर निर्भरता और बढ़ जाएगी और इसका असर यह होगा कि निजी क्षेत्र शोषण करेंगे।
किसानों को एमएसपी खत्म होने का है डर
किसानों के विरोध के पीछे एक वजह यह भी है कि क्योंकि बाजार कीमतें आमतौर पर न्यूनतम समर्थ मूल्य से ऊपर या समान नहीं होतीं। किसानों का मानना है कि केंद्र सरकार की तरफ से भले ही एमएसपी को खत्म न करने का भरोसा दिया जा रहा हो आने वाले समय में इसे खत्म किया जा सकता है। यही नहीं बड़े कारोबारी और जमाखोरों को वजह से छोटे किसानों को नुकसान होगा।
पंजाब सरकार को राजस्व में नुकसान का डर
एपीएमसी के स्वामित्व वाले अनाज बाजार को उन बिलों में शामिल नहीं किया गया है जो इन पारंपरिक बाजारों को एक वैकल्पिक विकल्प के रूप में कमजोर करेगा। पंजाब सरकार का विरोध इस लिए भी है कि उसे डर है कि जब राज्य के किसान दूसरे राज्यों में अपने उत्पादों को बेचेंगे को एपीएनसी के जरिए आने वाला राजस्व नहीं मिल पाएगी जिसकी वजह से राजस्व को नुकसान होगा।