- तुर्की के राष्ट्रपति तैयप अर्दोआन संयुक्त राष्ट्र संघ सहित कई मंचों पर कश्मीर मामले पर पाकिस्तान का समर्थन करते रहे हैं।
- ऐसी भी रिपोर्ट आ चुकी हैं कि तुर्की सीरिया में सक्रिय अपने भाड़े के लड़ाकों को कश्मीर में भेजने की प्रक्रिया में है।
- तैयप अर्दुआन मुस्लिम देशों का अगुआ बनना चाहते हैं ।
नई दिल्ली: तुर्की मूल के इल्केर आयसी (Ilker Ayci) ने एयर इंडिया के सीईओ का पदभार संभालने से पहले ही इस्तीफा दे दिया है। उनके इस्तीफे की वजह तुर्की के राष्ट्रपति तैयप अर्दोआन के पाकिस्तान प्रेम और भारत विरोधी रैवये को माना जा रहा है। क्योंकि टाटा समूह द्वारा 14 फरवरी को आयसी की नियुक्ति के ऐलान के बाद , भारत में उनके खिलाफ विरोध के स्वर उठने लगे थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने आयसी और तुर्की राष्ट्रपति तैयप अर्दोआन की नजदीकी का मामला उठाकर नियुक्ति पर सवाल उठाए थे। और इसी के बाद एक फरवरी को आयसी ने एयर इंडिया का सीईओ बनने से इंकार कर दिया।
स्वदेशी जागरण मंच ने क्या लगाए थे आरोप
स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने कहा था यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है, सरकार इस मुद्दे को लेकर पहले से ही संवेदनशील है और इस मामले को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इसलिए एयर इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक के पद के लिए इल्केर की नियुक्ति को मंजूरी नहीं देनी चाहिए।
असल में तुर्की के मौजूदा राष्ट्रपति अर्दोआन जब 1994 में इस्तांबुल के मेयर थे। उस वक्त आयसी उनके सलाहकार थे।
तुर्की का कश्मीर पर भारत विरोधी रूख
तुर्की के राष्ट्रपति तैयप अर्दोआन के विरोध की एक बड़ी वजह उनका पिछले 4 साल से भारत को लेकर बना हुआ रूख है। इस दौरान वह और उनके मंत्री कई मौके पर कश्मीर मसले पर पाकिस्तान का समर्थन कर चुके हैं। मसलन 2017 में तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावुसोगलु ने जम्मू-कश्मीर के मसले पर पूरी तरह से पाकिस्तान के साथ होने का बयान दिया था।
इसके बाद सितंबर 2019 में तैयप अर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण देते हुए कश्मीर का मुद्दा उठाया था। और फिर 2020 में भी उन्होंने ऐसा किया। इस बार तो उन्होंने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर भी सवाल उठाए। अर्दुआन ने संयुक्त राष्ट्र के भाषण में कहा 'कश्मीर संघर्ष दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिहाज से बेहद अहम है। यह आज भी एक ज्वलंत मुद्दा है और जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद से स्थिति और जटिल हो गई है।''
खेल और हिजाब पर भी भारत विरोधी रवैया
ऐसा नहीं है कि तुर्की केवल कश्मीर मसले पर भारत विरोध का रूख रखता है। पिछले साल 3 जुलाई 2021 से तुर्की में World Deaf Wrestling Championship शुरु होने वाली थी। और जब इस्तांबुल रवाना के लिए भारतीय पहलवान एयरपोर्ट पहुंचे तो उन्हें यह बताया गया कि तुर्की पहुंचने के बाद उन्हें 14 दिनके लिए क्वारंटीन कर दिया जाएगा। जबकि चैंपियनशिप ही 8 जुलाई को खत्म होने वाली थी। ऐसे में 13 भारतीय पहलवान तुर्की नही जा सके थे।
इसी तरह हाल ही में जब कर्नाटक में हिजाब विवाद ने तूल पकड़ा था तो तुर्की के सरकारी ब्रॉडकॉस्टर TRT World ने भी हिजाब विवाद के बहाने भारत में मुस्लिमों की स्थिति और मोदी सरकार के रवैये पर सवाल उठाए ।
इसके अलावा 2020 की एक रिपोर्ट 'अर्दोआन ने भाड़े की सैनिकों को कश्मीर भेजा ' में कहा गया था कि तुर्की सीरिया में सक्रिय अपने भाड़े के लड़ाकों को कश्मीर में भेजने की प्रक्रिया में है। जाहिर है तुर्की वह हर कदम उठा रहा है जो भारत को नागवार गुजरे।
भारत-तुर्की में क्यों बढ़ रही है दूरी
इस मसले पर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और तुर्की मामलों के एक विशेषज्ञ नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं 'देखिए जहां तक भारत और तुर्की के संबंधों की बात है तो इस समय स्थिति पहले जैसी नहीं है। उसकी एक बड़ी वजह तुर्की की भारत से उम्मीद पूरी नहीं होना है। असल में तुर्की परमाणु ऊर्जा के लिए भारत से थोरियम की उम्मीद कर रहा था। लेकिन भारत ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। ऐसा इसलिए है कि भारत किसी को न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं करने की नीति पर चलता है। दूसरी अहम बात यह है कि तुर्की भारत के साथ डिफेंस प्रोडक्शन बढ़ाना चाह रहा था। लेकिन वह भी बात नहीं बन पाई। उसके बाद से अर्दुआन ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करना शुरू कर दिया।'
प्रोफेसर का कहना है 'जहां तक आयसी के इंकार की बात है तो ऐसा नहीं होना चाहिए था। टाटा समूह ने उनके टर्की एयरलाइंस में बेहतरीन रिकॉर्ड को देखते हुए एयर इंडिया का सीइओ बनाया था। प्रोफेशनल लेवल पर इस तरह व्यवहार नहीं होना चाहिए था। भारत में बहुत सी कंपनियों के सीईओ विदेशी है। उस पर तो बवाल नहीं होता है।'
मुस्लिम देशों का अगुआ बनना चाहते हैं अर्दुआन
एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष तुर्की की नींव रखने वाले कमाल पाशा के कई अहम फैसलों को राष्ट्रपति अर्दोआन ने पिछले कई सालों में बदला है। इसके तहत हिजाब पहनने पर पाबंदी को हटाने, शराब पर टैक्स बढ़ाने और उसके विज्ञापन पर रोक लगाने , धार्मिक शिक्षा देने जैसे कदम उठाए गए हैं।
इसके अलावा उन्होंने जुलाई 2020 को अर्दुआन ने ऐसा फैसला किया, जिससे पूरी दुनिया में हलचल मच गई थी। अर्दुआन ने हागिया सोफिया म्युजियम में नमाज का अनुमति दे दी। और 24 जुलाई को वहां पहली नमाज अदा की गई थी। और उसके बाद उसे मस्जिद घोषित कर दिया गया । असल में अर्दुआन ऑटोमन साम्राज्य के समय खिलाफत व्यवस्था के समय तुर्की के रूतबे को बहाल करने का दावा करते हैं।
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