- हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पहले ही लड़ाकू विमानों की भारी कमी
- साल 2001 में भारत के हल्के स्वदेशी लड़ाकू विमान की उड़ान के बाद से इसके प्रति अनिश्चितता की स्थिति रही है।
- अगर जरूरत का 70 फीसदी भी कोई स्वदेशी कंपनी अपने उत्पाद में डिलीवर करती है तो सेना उसे प्राथमिकता देगी
नई दिल्ली: भारत, दुनिया की बड़ी सैन्य शक्तियों में शुमार लेकिन इस ताकत एक आधार स्तंभ ऐसा है जिसे लेकर हमेशा से राजनीति से लेकर सैन्य अधिकारियों तक सभी के मन में कभी न कभी आशंका रही है कि देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए विदेशों से खरीदे गए हथियारों पर आखिर कब तक हम निर्भर रहेंगे। जो लोग लगातार सैन्य उपकरणों के स्वदेशीकरण पर जोर देते आए हैं, उनके लिए बीते दिनों तब उत्साहित करने वाली खबर सामने आई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महामारी के दौरान एक बार फिर राष्ट्र को संबोधित किया।
इस बार लगातार पीएम ने कई दफा एक शब्द का जिक्र किया और वो था 'आत्मनिर्भरता'। जाहिर तौर किसी भी सामान को लेकर विदेशों पर निर्भरता की सीमा का अहसास लॉकडाउन के बीच देश को हो रहा है लेकिन इसमें भी सैन्य उपकरणों की सप्लाई रुक जाना एक संवेदनशील और गंभीर मसला है। इसका मतलब ये हुआ कि इस तरह की किसी भी महामारी के दौरान सेनाओं की देश की रक्षा करने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है।
भारत लंबे समय तक दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार आयात करने वाला देश रहा है और अभी भी सऊदी अरब के बाद दूसरे स्थान पर कायम है लेकिन अब इस पर फिर एक बार विचार करने की जरूरत आन पड़ी है। इसके कई उदाहरण सामने आए हैं कि विदेशों से हथियार आयात करने की अपनी कई सीमाएं हैं।
वायुसेना को स्पेयर पार्ट्स की कमी:
एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पहले ही लड़ाकू विमानों की भारी कमी का सामना कर रही, भारतीय वायुसेना उन पुराने जेटों के स्पेयरपार्ट्स हासिल करने की कोशिश कर रही है, जो दूसरे देशों ने बनाए हैं। जगुआर जैसे पुराने पड़ रहे विमानों कल पुर्जे मिलना पहले ही मुश्किल काम था और हाल में वायुसेना की ओर से कहा गया है कि कोरोना महामारी की वजह से स्पेयर पार्ट्स की सप्लाई प्रभावित हुई है।
देश में रोड और रेल नेटवर्क के बंद होने की वजह से तो समस्या आ रही है लेकिन जो पार्ट्स विदेशों से आने वाले हैं, उनमें और भी ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं फ्रांस में लॉकडाउन की वजह से राफेल लड़ाकू विमानों का उत्पादन भी रुका हुआ है।
उठते रहे हैं सवाल:
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हालांकि देश की सेनाओं की जिम्मेदारी होती है कि वह ऐसे बेहतरीन उपकरणओं का चुनाव करें जो उन्हें युद्ध जैसी किसी भी स्थिति में पूरी मजबूती से डटे रहने में मदद करे लेकिन इस बीच स्वदेशीकरण को बढ़ावा देना बहुत जरूरी हो जाता है। स्वदेशी उपकरणों के पिछड़ जाने को लेकर कई सवाल जेहन में आते हैं।
एलसीए तेजस जैसे कार्यक्रम पहले अपनी टाइम लाइन से बहुत पीछे चल रहे हैं और इसके पीछे एचएएल की धीमी चाल को वजह माना जाता रहा है लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। साल 2001 में भारत के हल्के स्वदेशी लड़ाकू विमान की उड़ान के बाद से इसके प्रति अनिश्चितता की स्थिति रही है। इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने को लेकर रुझान कोई बहुत अच्छा नहीं रहा, और कई वायुसेना भी लंबे समय तक इस पशोपेश में रही कि इसे लड़ाकू बेड़े का हिस्सा बनाना है।
फिर यह भी है कि वायुसेना और थलसेना के लिए अमेरिकी अपाचे हेलीकॉप्टर के ऑर्डर दिए गए लेकिन स्वदेशी लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर अपनी क्षमता दर्शाने और पूरी तरह से तैयार होने के बावजूद अब भी ऑर्डर के लिए मुंह ताक रहा है। स्वदेशी उपकरणों का ऑर्डर दिया भी जाता है तो यह काफी छोटा होता है, ऐसे में स्वदेशी प्रोडक्शन रेट का बढ़ना मुश्किल है क्योंकि एक बार उस छोटे ऑर्डर के बाद आगे ऑर्डर नहीं मिला तो तेज डिलीवरी के लिए बड़ी संख्या में रखे गए कर्मचारी कहां जाएंगे।
सेनाएं भी समझीं देसी की अहमियत, दे रहीं सहारा:
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हालांकि सेनाएं या सरकार स्वेदशी उत्पाद के प्रति सकारात्मक रुख नहीं दिखा रही हैं ऐसा नहीं कहा जा सकता है। स्वदेशी उत्पादों को लेकर बीते समय में रुझान तेजी से बदला है और आयात लॉबी में इसकी झुंझलाहट भी देखने को मिलती रही है। हाल ही में सेना प्रमुख एम. एम. नरवणे ने कहा था कि बीते वित्त वर्ष के दौरान 70 फीसदी ऑर्डर स्वदेशी कंपनियों को दिए गए हैं और सेना तेजी से स्वदेशीकरण की ओर आगे बढ़ रही है।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत भी कह चुके हैं कि अगर जरूरत का 70 फीसदी भी कोई स्वदेशी कंपनी अपने उत्पाद में डिलीवर करती है तो सेना उसे प्राथमिकता देगी क्योंकि उनसे अचानक सीधे विश्वस्तर की बेहद आधुनिक तकनीक की उम्मीद नहीं की जा सकती। साथ ही सरकार डिफेंस कॉरिडोर के विकास और रक्षा निर्यात को बढ़ाने पर जोर देती आई है।
कई संभावित विदेशी रक्षा सौदों को खारिज करने की चर्चा:
हालांकि इस बारे में कोई आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन कई रिपोर्ट्स में ऐसा दावा किया जा रहा है कि भारत में विदेशों से जिन संभावित रक्षा सौदों की चर्चा चल रही थी उन पर से ध्यान हटाकर स्वदेशी उत्पाद पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए अमेरिका से NASAM एयर डिफेंस सिस्टम लेने के बजाय डीआरडीओ को इस तरह के प्रोजेक्ट का काम सौंपा जा सकता है। इज़रायली एंटी टैंक स्पाइक मिसाइल की जगह स्वदेशी नाग मिसाइल को खरीदने की चर्चा है और ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि वायुसेना की MMRCA 2.0 डील की जगह स्वदेशी लड़ाकू विमान प्रोजेक्ट तेजस, मीडियम वेट फाइटर और AMCA को बढ़ावा देकर इनके विकास की रफ्तार बढ़ाने पर जोर दिया जा सकता है। वायुसेना प्रमुख आरकेएस भदौरिया भी स्वदेशी उपकरणों का समर्थन करते रहे हैं।
ऐसे में कोरोना वायरस महामारी की वजह पैदा हुए हालात सैन्य उपकरणों के स्वदेशीकरण पर और ज्यादा बल देने की दिशा में अहम साबित हो सकते हैं। हालांकि संभावनाओं को साकार करने के लिए लगातार प्रयासों और लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखने की जरूरत होगी।