- करीब 5 साल बाद 2021 में एक बार फिर प्रधान मंत्री ने उज्जवला 2.0 स्कीम की लांचिंग के लिए उत्तर प्रदेश का महोबा जिला चुना है।
- पहले रिफिल को मुफ्त कर दिया गया है। साथ ही प्रवासी मजदूरों की दिक्कतों को देखते हुए एड्रेस प्रूफ की अनिवार्यता नहीं रहेगी।
- उज्जवला 1.0 ने 8 करोड़ महिलाओं को लाभ पहुंचाया और उज्जवला 2.0 स्कीम ऐसी एक करोड़ महिलाओं तक पहुंचेगी
नई दिल्ली: बात एक मई 2016 की है, जब प्रधान मंत्री नरेंद्र ने उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से उज्जवला स्कीम को लांच किया था। करीब 5 साल बाद 2021 में एक बार फिर प्रधान मंत्री ने उज्जवला 2.0 स्कीम की लांचिंग के लिए उत्तर प्रदेश का महोबा जिला चुना है। स्कीम लांचिंग की टाइमिंग और स्थान काफी मायने रखती है। क्योंकि 2022 के मार्च में उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं। और राजनीतिक रूप से यह चुनाव भाजपा के लिए काफी मायने रखता है। ऐसे में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में वही कारनामा करना चाहती है जो उसने 2017 के विधान सभा और 2019 के लोक सभा चुनावों में किया था। ऐसा माना जाता है, 2017 और 2019 के चुनावों में भाजपा की बड़ी जीत में उज्जवला योजना का भी अहम हाथ रहा था। क्योंकि इसके लिए भाजपा उस गरीब तबके तक पहुंच गई थी, जहां पर उसका वोट बैंक कमजोर माना जाता रहा है।
रानी लक्ष्मी बाई और ध्यानचंद को याद करने के मायने
अब तक उज्जवला 1.0 योजना के तहत 8 करोड़ महिलाओं को गैस कनेक्शन दिया जा चुका है। और उज्जवला योजना 2.0 के तहत केंद्र सरकार एक करोड़ महिलाओं को कनेक्शन देगी। आने वाले समय में उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए कितना मायने रखता है, इसकी झलक प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के स्कीम लांचिंग के समय दिए गए भाषण से दिखती है। उन्होंने इस मौके पर कहा "उज्ज्वला योजना ने देश के जितने लोगों, जितनी महिलाओं का जीवन रोशन किया है, वो अभूतपूर्व है। ये योजना 2016 में उत्तर प्रदेश के बलिया से, आजादी की लड़ाई के अग्रदूत मंगल पांडे जी की धरती से शुरु हुई थी।
उज्ज्वला का दूसरे संस्करण भी यूपी के ही महोबा की वीरभूमि से शुरु हो रहा है। महोबा हो, बुंदेलखंड हो, ये तो देश की आज़ादी की एक प्रकार से ऊर्जा स्थली रही है। यहां के कण-कण में रानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती, महाराजा छत्रसाल, वीर आल्हा और ऊदल जैसे अनेक वीर-वीरांगनाओं की शौर्यगाथाओं की सुगंध है।आज जब देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तो ये आयोजन इन महान व्यक्तित्वों को स्मरण करने का भी अवसर लेकर आया है।"
जाहिर है प्रधान मंत्री उज्जवला के जरिए स्थानीय महा पुरूषों और वीरांगनाओं को यादकर लोगों से सीधे संवाद की कोशिश कर रहे थे।उन्होंने कहा "पूरे देश में एलपीजी गैस से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर का कई गुना विस्तार हुआ है। बीते 6-7 साल में देशभर में 11 हज़ार से अधिक नए एलपीजी वितरण केंद्र खोले गए हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में 2014 में 2 हज़ार से भी कम वितरण केंद्र थे। आज यूपी में इनकी संख्या 4 हजार से ज्यादा हो चुकी है।"
विपक्ष के निशाने पर रही है उज्जवला स्कीम
भले ही 2017 और 2019 में राजनीतिक विश्लेषक भाजपा की बड़ी जीत में उज्जवला जैसी योजनाओं का हाथ मानते हैं। लेकिन विपक्ष इसको लेकर सरकार को हमेशा निशाने पर लेता रहा है। उसका दावा है कि बढ़ती महंगाई के कारण लोगों ने स्कीम के तहत एलपीजी कनेक्शन तो ले लिया लेकिन उसकी रिफिल नहीं करा रहे हैं। 2019 में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2018 तक औसतन 1.93 करोड़ एलपीजी ग्राहक ऐसे थे, जो एक साल से ज्यादा समय से एलपीजी के ग्राहक हैं। उनके द्वारा केवल 3.66 रिफिल एक साल में की गई है। इसी बात को विपक्ष निशाना बनाता रहा है। इंडियन ऑयल के अनुसार एक अगस्त को दिल्ली में एलपीजी सिलेंडर की कीमत 1623 रुपये थी। जबकि 7 साल पहले एलपीजी सिलेंडर की कीमतें केवल 834 रुपये थी।
कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने कहा है "आज खाना बनाने की गैस के दाम महोबा में 888 रु प्रति सिलेंडर है जो कांग्रेस की सरकार में 400 रु का हुआ करता था। नाम उसका उज्जवला नहीं था मगर लोगों के घरों में गैस के सस्ते दामों की रोशनी जगमगा रही थी । आज लगभग 8 करोड़ उज्जवला गैस लेने वाले परिवारों में से 4 करोड़ परिवारों ने गैस का सिलेंडर रिफिल ही नहीं कराया है क्योंकि वो इतनी भारी भरकम कीमत नहीं चुका सकते औऱ ज्यादातर लोग फिर से लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने को मजबूर हैं । लकड़ी के चूल्हों पर इसलिए कि कैरोसिन की पूरी सब्सिडी भी मोदी जी ने 1 अप्रैल 2021 से समाप्त कर दी और उसके दाम दो गुना से अधिक बढ़ा दिए। इस प्रकार, उज्जवला योजना पूरी तरह विफल रही है। यह न तो अपने घोषित लक्ष्यों को हासिल कर पाई और न ही गरीबों के लिए रसोई गैस उपलब्ध हुई। "
विपक्ष के आरोपों पर भाजपा नेता और ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहते हैं "देखिए इस स्कीम को राजनीति से नहीं देखना चाहिए। स्कीम के जरिए उन तबको को फायदा मिल रहा है, जिनके लिए एलपीजी सुविधा एक सपने जैसी थी। उज्जवला 1.0 ने 8 करोड़ महिलाओं को लाभ पहुंचाया और उज्जवला 2.0 स्कीम ऐसी एक करोड़ महिलाओं तक पहुंचेगी, जो अभी तक इस योजना से वंचित रह गई हैं। जहां तक रिफिल की बात है तो 85 फीसदी तक रिफिलिंग हुई है। और कीमतों को नियंत्रित करना पूरी तरह से केंद्र सरकार के लिए संभव नहीं है। क्योंकि एक बड़ा हिस्सा आयात किया जाता है। लेकिन मेरा मानना है कि गरीब तबके के लिए यह सुविधा मिलना बहुत मायने रखती है।"
उज्जवला 2.0 में बदलाव, बदलेगा खेल
उज्जवला 1.0 में आने वाली परेशानियों को देखते हुए इसके दूसरे संस्करण में कई अहम बदलाव किए गए हैं। इसके तहत कनेक्शन देते समय 1600 रुपये की वित्तीय सहायता दी जा रही है। इसके अलावा पहले रिफिल को भी मुफ्त कर दिया गया है। साथ ही प्रवासी मजदूरों की दिक्कतों को देखते हुए एड्रेस प्रूफ की अनिवार्यता नहीं रहेगी। कोई भी पात्र लाभार्थी पते की स्व-घोषणा के आधार पर कनेक्शन प्राप्त कर सकेगा। जाहिर है भाजपा इन बदलवाओं के जरिए आने वाले चुनावों में बड़े फायदे उठाना चाहेगी। खैर यह वक्त बताएगा कि 2017, 2019 की तरह 2022 उसके लिए कितना फायदेमंद होने वाला है।