- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कोविड महामारी से प्रतिकूल रूप से प्रभावित बच्चों की देखभाल सुनिश्चित करने को कहा
- मंत्रालय ने संकट का सामना कर रहे बच्चों के सर्वोत्तम हित में उपायों की सूची बनाई
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने राज्यों/केन्द्र-शासित प्रदेशों से जेजे अधिनियम, 2015 के तहत अनिवार्य प्रोटोकॉल का पालन करते हुए कोविड से प्रतिकूल रूप से प्रभावित बच्चों की देखभाल और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा है। महिला एवं बाल विकास सचिव श्री राम मोहन मिश्रा द्वारा राज्यों के मुख्य सचिवों और केन्द्र-शासित प्रदेशों के प्रशासकों को लिखे गए पत्र में, राज्यों और केन्द्र-शासित प्रदेशों को ऐसे सभी बच्चों को सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों द्वारा प्रदान किए गए सुरक्षा के दायरे के तहत लाने के लिए निरंतर प्रयास जारी रखने की सलाह दी गई है।
मंत्रालय ने कहा कि इस महामारी के दौरान बच्चों के सर्वोत्तम हित को सुनिश्चित करने के लिए उनकी व्यक्तिगत जरूरतों के लिए आवश्यक संसाधनों तक पहुंच को बढ़ावा देने के लिए सावधानीपूर्वक योजना बनाने के साथ-साथ आवश्यकता और संसाधनों की मैपिंगकी जानी चाहिए। संकट का सामना कर रहे बच्चों के सर्वोत्तम हित में समेकित प्रयासों की गारंटी के लिए सभी स्तरों पर सभी संबंधित सरकारी विभागों और अन्य हितधारकों को सक्रिय किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी असुरक्षित बच्चा सुरक्षा के दायरे से बाहर न छूट जाए।
राज्यों/ केन्द्र-शासित प्रदेशों से निम्नलिखित कदम उठाने के लिए कहा गया है :
1.बच्चों की पहचान और विवरण दर्ज करना
संपर्क, सर्वेक्षण आदि के माध्यम से संकटग्रस्त बच्चों की पहचान करना।
विशेष जरूरतों के विवरण, हर बच्चे की जानकारी और आवश्यकताओं के साथ एक डाटाबेस तैयार करना। अधिकारियों द्वारा बच्चों से जुड़ा डाटा सुरक्षित रखना चाहिए और उनकी पहचान गोपनीय रहनी चाहिए, जैसा कि जेजे अधिनियम, 2015 में उल्लेख किया गया है।
सुनिश्चित किया जाए कि हर बच्चे से जुड़ा डाटा भारत सरकार के ट्रैक चाइल्ड पोर्टल पर अपलोड कर दिया है।
2. सतर्कता और सुरक्षा
अस्पताल के रिसेप्शंस और अन्य प्रमुख स्थानों पर बाल कल्याण समितियों और चाइल्डलाइन (1098) का प्रचार किया जाए।
ख. पुलिस को बदलते हालात पर सावधानी से नजर रखने और निगरानी के लिए अलर्ट कर दिया जाए, जिससे बच्चों के खिलाफ होने वाले बाल मजदूरी, बाल विवाह, मानव तस्करी और अवैध रूप से गोद लेने जैसे अपराधों पर रोक लगाई जा सके।
जांच और नियमित निगरानी सुनिश्चित करने के लिए संकटग्रस्त बच्चों का डाटाबेस बनाए रखना चाहिए।
बच्चों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता को उनके अभिभावकों के लंबित कर्जों/अन्य देनदारियों के साथ समायोजित नहीं किया जाए, यह सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाए जाएं।
3.आपात स्थिति देखभाल और पुनर्वास
अस्पतालों को अस्पताल भर्ती प्रपत्र में मरीजों के भरोसेमंद लोगों के संपर्क की जानकारी लेने के निर्देश दिए जा सकते हैं, जिससे किसी घटना की स्थिति में बच्चों की देखभाल के लिए संपर्क किया जा सके।
बाल संरक्षण योजना के तहत दी गई बाल देखभाल केन्द्रों के माध्यम से तत्काल बच्चों का पुनर्वास सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
हर जिले में बाल चिकित्सा और नवजात देखभाल के लिए पर्याप्त प्रावधान किए जाने चाहिए।
4. बाल देखभाल संस्थानों (सीसीआई) के माध्यम से संस्थागत सहायता
सभी बाल देखभाल संस्थानों (सरकार द्वारा समर्थित या अन्य संस्थानों द्वारा प्रबंधित) में गुणवत्ता देखभाल के मूल्यांकन के लिए और वहां रहने वाले बच्चों की भलाई का पता लगाने के लिए जिलाधिकारियों के सहयोग से विशेष निरीक्षण अभियान आयोजित करना।
सभी सीसीआई को सभी बच्चों के लिए स्वच्छ और साफ रहने की स्थिति, बुनियादी सुविधाएं, गुणवत्तापूर्ण भोजन और सुरक्षा जैसी उचित सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए।
कोविड से पीड़ित बच्चों की देखभाल के लिए सीसीआई के भीतर आइसोलेशन सुविधाओं की उपयुक्त व्यवस्था की जाएगी।
सीसीआई का दौरा करने और बच्चों के साथ बातचीत करने के लिए बाल मनोवैज्ञानिकों या परामर्शदाताओं का रोस्टर तैयार करें।
संकटग्रस्त बच्चों की मनोसामाजिक देखभाल/सहायता के लिए विशेषज्ञों द्वारा संचालित एक स्थानीय हेल्पलाइन शुरू करें।
5. जिला मजिस्ट्रेट और जिला प्रशासन संरक्षक की भूमिका
जिला मजिस्ट्रेट कोविड से प्रभावित कमजोर बच्चों के संरक्षक होंगे।
डीएम प्रयास करेंगे कि ऐसे बच्चों का पुनर्वास जेजे अधिनियम, 2015 के तहत निर्धारित तरीके से वरीयता के आधार पर निम्नलिखित क्रम में किया जाए:
विस्तारित परिवार, बच्चे के परिजनों और अपनों के साथ बहाल/पुनर्वासित।
केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (कारा) द्वारा बनाए गए देखभाल पोर्टल के माध्यम से दत्तक ग्रहण (यदि बाल कल्याण समिति द्वारा बच्चों को गोद लेने के लिए कानूनी रूप से मुक्त पाया जाता है)।
सरकार द्वारा अनुमोदित बाल देखभाल संस्थानों के तहत।
जरूरतों का मानचित्रण करने, प्रगति की निगरानी करने और प्रभावित बच्चों तक सभी लाभ पहुंचाने को सुनिश्चित करने के लिए एक जिला स्तरीय बहु-विभागीय कार्यबल बनाना।
सभी नागरिक समाज संगठनों को बाल कल्याण समिति या जिला बाल संरक्षण इकाई को जिले में उनके द्वारा देखे गए किसी भी कमजोर बच्चे के बारे में सकारात्मक रूप से सूचित करने के लिए कहा जा सकता है।
जिला मजिस्ट्रेटों को यह सुनिश्चित करने के लिए पारिवारिक संपत्ति/पैतृक संपत्तियों पर बच्चों के अधिकारोंको सुरक्षित करने की आवश्यकता है कि यह बेचा या अतिक्रमण नहीं किया गया है। यह पंजीकरण/राजस्व विभाग द्वारा बनाए गए उचित निरीक्षण के माध्यम से किया जाना चाहिए।
6. सीसीआई के माध्यम से संस्थागत सहायता
उन बच्चों को अस्थायी रूप से बाल देखभाल संस्थान (सीसीआई) आवंटित करें, जिनके माता-पिता कोविड के कारण अस्वस्थ हैं और उनकी देखभाल के लिए विस्तारित परिवार उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में उन्हें आवश्यक सहायता प्रदान करते हैं।
बच्चों के समुचित पुनर्वास/बहाली को जल्द से जल्द सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों की एक टीम के माध्यम से जिले में सीसीआई की नियमित निगरानी।
7. पुलिस
बच्चों की तस्करी, अवैध दत्तक ग्रहण, बाल विवाह, बाल श्रम या किसी अन्य प्रकार के शोषण को रोकने के लिए जिला पुलिस टीम चौकस और सतर्क रहे।
सोशल मीडिया पर बच्चों को गोद लेने का प्रस्ताव देने वाले सभी मामलों का पता लगाया जाए और दोषी मिलनेपर अपराधी के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पुलिस की बीट/रात्रिकालीन भ्रमण के दौरान, सीसीआई और जिले में संवेदनशील जगहों, जोखिम वाले बच्चों के रहने की जगह, पर निगाह रखी जा सकती है।
8. पंचायती राज संस्थाएं/शहरी स्थानीय निकाय
संकटग्रस्त बच्चों की पहचान करने और जिला प्रशासन/जिला बाल संरक्षण इकाई को सूचित करने के लिए पंचायत स्तर पर बाल संरक्षण समितियां।
जिलाधिकारियों द्वारा नगरीय स्थानीय निकायों और पंचायती राज संस्थाओं का अभिमुखीकरण और संवेदीकरण करना और उन्हें ऐसे बच्चों के लिए किये जा रहे उपायों व घोषित योजनाओं के बारे में जानकारी देना।
9. शिक्षा
सुनिश्चित करें कि सभी अनाथ बच्चों को गवर्नमेंट डे स्कूल/या आवासीय विद्यालयों के माध्यम से निःशुल्क शिक्षा दी जाए।
बच्चे की विशिष्ट जरूरतों के आधार पर, उसका आरटीई की धारा 12(1)(सी) के तहत पास के किसी निजी स्कूलों में भी नामांकन कराया जा सकता है।
पात्र अनाथ बच्चों को केंद्र/राज्य सरकारों की वर्तमान में संचालित छात्रवृत्ति योजनाओं में शामिल करने केप्रयास किए जाएं।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) के तहत व्यावसायिक प्रशिक्षण, जहां भी आवश्यक हो, दिलाया जा सकता है।
10. चिकित्सा सुविधाएं
भारत सरकार की प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत, योजना के दिशा-निर्देशों के अनुसार, पात्र बच्चों के लिए स्वास्थ्य बीमा संरक्षित किया जा सकता है।