- आदिवासी बहुल सीटों पर बीजेपी का प्रदर्शन निराशाजनक
- शहरी इलाकों में बीजेपी का प्रदर्शन शानदार
- बीजेपी ने गैर आदिवासी रघुबर दास को दी थी कमान और उनके चेहरे पर लड़ रही थी चुनाव
नई दिल्ली। झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए वोटों की गिनती जारी है। रुझानों के मुताबिक झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन जादुई आंकड़े से सिर्फ एक सीट पीछे है। लेकिन रुझानों से साफ है कि बीजेपी बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है और सरकार बनाने की रेस में पिछड़ गई है। इसे महाराष्ट्र के चुनावी नतीजों का दोहराव कहा जा सकता है, जैसे महाराष्ट्र में बड़ी पार्टी होने के बाद भी बीजेपी सरकार बनाने से चूक गई। अब सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि झारखंड में बीजेपी सरकार नहीं बना पा रही है।
अगर वोट शेयर को देखें तो बीजेपी के वोट शेयर में बढ़ोतरी हुई है। अब सवाल ये है कि क्या कहीं बीजेपी की तरफ से आदिवासी चेहरे का ना होना पार्टी के लिए मुसीबत बन गई। इस विषय पर जानकारों की राय अलग अलग है। झारखंड की राजनीति पर नजर रखने वाले रमेश मुंडा का कहना है कि बीजेपी के अंदरखाने रघुबर दास को सीएम पद के लिए दोबारा प्रोजेक्ट करना बीजेपी के लिए भारी पड़ गया।
वोट शेयर
- जेएमएम- 18 फीसद
- कांग्रेस- 14 फीसद
- आरजेडी- 4 फीसद
- बीजेपी- 34 फीस
- आजसू- 4 फीसद
बीजेपी के दिग्गज आदिवासी नेताओं में इस बात को लेकर नाराजगी थी। अगर आप जेएमएम के नेताओं की रैली को देखें तो वो सिर्फ एक बात ही कहा कहते थे कि ये आश्चर्य वाली बात है कि जिस राज्य की आबादी में सबसे ज्यादा संख्या आदिवासियों की है उसकी अगुवाई एक गैर आदिवासी कर रहा था।
कुछ जानकारों का कहना है कि 2014 में जब रघुबर दास को कमान सौंपी गई उस समय भी राज्य के आदिवासी नेताओं में नाराजगी थी। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के दबाव में आदिवासी नेता शांत हो गये। इस बीच अलग अलग समय पर भी रघुबर के खिलाफ आवाज उठती रही। अब अगर 2019 के रुझानों को देखें तो संथाल परगना के आदिवासी बहुल इलाके में बीजेपी को कामयाबी नहीं मिली है। इन सीटों पर जेएमएम को अच्छी खासी कामयाबी मिली है।
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