- कोटा से छात्रों को निकालने के लिए राजस्थान सरकार ने भेजा है 36 लाख रुपए का बिल
- यूपी सरकार का कहना है कि उसने राजस्थान सरकार को पैसे का भुगतान कर दिया है
- कांग्रेस ने यूपी के प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए 1000 बसों की पेशकश की थी
नई दिल्ली : प्रवासी मजदूरों को बस उपलब्ध कराने को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। राजस्थान सरकार की ओर से कोटा के छात्रों के लिए 36 लाख रुपए का बिल भेजने के बाद बस पॉलिटिक्स पर सियासत और तल्ख होती जा रही है। राजस्थान सरकार का बिल का भुगतान करने के बाद भाजपा ने प्रियंका गांधी और कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला बोला है। भाजपा प्रवक्ता डॉ. चंद्रमोहन ने शुक्रवार को कहा कि इससे प्रियंका गांधी और कांग्रेस पार्टी का दोहरा चरित्र एक बार फिर उजागर हो गया है।
कांग्रेस पार्टी का दोहरा चरित्र हुआ उजागर
भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने यूपी के उन छात्रों के लिए पैसे की मांग की जिनको उन्होंने यूपी बॉर्डर के पास छोड़ा। राजस्थान की ये बसें यूपी में दाखिल नहीं हुईं। यूपी के छात्र कांग्रेस शासित जिन राज्यों में हैं, वे वहां पर खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। इस पूरे मामले में प्रियंका गांधी और कांग्रेस पार्टी का दोहरा चरित्र एक बार फिर उजागर हो गया है। डॉ. चंद्रमोहन ने कहा कि कांग्रेस की यही चरित्र है और वह इसी तरह की राजनीति करती आई है।
भाजपा को कठघरे में खड़ा करना चाहती है कांग्रेस
दरअसल, अपनी 1000 बसें वापस ले लेने के बाद राजस्थान की कांग्रेस सरकार अब उत्तर प्रदेश सरकार को मानवीय आधार पर कठघरे में खड़ा करना चाहती है। राजस्थान के परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खचाररियावास ने कहा कि अभी यूपी सरकार से 19 लाख रुपए ही मिले हैं। जबकि यूपी सड़क परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक का दावा है कि कोटा से यूपी के छात्रों को निकालने के लिए राजस्थान सरकार को 36 लाख रुपए का भुगतान कर दिया गया है।
बसों को भुगतान पर दोनों पार्टियां आमने-सामने
बसों के भुगतान को लेकर दोनों राज्य सरकारें आमने-सामने हैं। इस बीच, कांग्रेस नेता सचिन पायलट का कहना है कि प्रवासी मजदूरों को मदद पहुंचाने के मुद्दे पर यूपी सरकार राजनीति कर रही है। पायलट ने आरोप लगाया कि बसों में खामियां गिनाकर यूपी सरकार ने प्रवासी मजदूरों को मदद नहीं करने दी। यूपी सरकार का कहना है कि कांग्रेस की तरफ से प्रवासी मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए जो सूची सौंपी थी उनमें से ज्यादातर बसें खटारा थीं और उनका फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं था। बसों के नाम पर एंबुलेंस, कार और स्कूटर के नंबर भेजे गए। राज्य सरकार ने कहा कि खास्ताहाल बसों को अनुमति देकर वह प्रवासी मजदूरों का जीवन खतरे में नहीं डाल सकती थी।