- जैसलमेर में शिफ्टिंग सैंड ड्यून्स के केस आते हैं
- बीएसएफ की तरफ से इसे रोकने के लिए खास कवायद की जा रही है
- गहरी जड़ों वाली घास लगाई जाएगी, पायलट प्रोजेक्ट पर काम शुरू
(भंवर पुष्पेंद्र, प्रिंसिपल कॉरेस्पांडेंट)
द फ्रंटलाइन वॉरियर्स के नाम से जाने जाने वाली बीएसएफ अब जगह बदलते रेत के चोरों से निजात पाने की जुगत लगा रही है बता दें कि तेज हवाओं के चलते राजस्थान से सटी पाकिस्तान की सीमा जैसलमेर पर रेत के धोरे इधर से उधर अपनी जगह बदलते रहते हैं जिसके कारण कई बार सैंड ड्यून्स में पिलर और तार दब जाते हैं तेज अंधड़ के बीच सीमा सुरक्षा बल को बहुत दिक्कतों का सामना करना होता है कई बार जगह बदलते रेत के धोरों के साथ-साथ दुश्मन भी उसकी आड़ में छिपने की कोशिश करता है। तेज आंधियां सीमा पर लगी तारबंदी को भी नुकसान पहुंचाती हैं।
शिफ्टिंग सैंड ड्यून्स रोकने की कवायद
बीएसएफ़ कि यह पूरी कवायद सीमा पार से होती तस्करी और घुसपैठ को रोकने के लिए की जा रही है बता दें कि आईजी सीमांत पंकज घूमर ने केंद्रीय शुष्क क्षेत्र संधान संस्थान से सहायता मांगी है। काजरी ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर रेतीले टीलों को रोकने की विशेष तकनीक तैयार करके बीएसएफ को दे दी है। उस पायलट प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है जिसमें शिफ्टिंग सैंड ड्यून्स की परेशानियों को दूर करने के लिए पहले पायलट प्रोजेक्ट में एक किलोमीटर बाय एक किलोमीटर तक काम किया जाएगा और उसके परिणामों को देखा जाएगा। उसके बाद सरहद पर इन टहलते टीलों को रोकने का हमारा प्रयास सफल हो पाएगा।
मार्च से जून तक शिफ्टिंग सैंड डयून्स के केस अधिक
जैसलमेर का शाहगढ़ बल्ज और इसके आसपास के इलाकों में सैंड ड्यून्स के शिफ्टिंग मार्च से जून के बीच ज्यादा देखने को मिलती है क्योंकि पाकिस्तान से आने वाली तेज हवाओं के साथ देश के धोरे इधर से उधर शिफ्ट होते हैं ऐसे में काजरी ने मूरठ घास सहित अन्य झाड़ियां लगाने की तकनीक विकसित की है, जिनकी जड़ें बहुत गहरी होती हैं और कम पानी में रह जाती हैं। इनकी ऊंचाई भी 2 से 3 फीट तक ही होगी ताकि तश्कर व घुसपैठिए इनकी आड़ में अंदर प्रवेश नहीं कर सकें।