- महाबलीपुरम में पीएम नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात
- भारतीय स्थापत्य कला से पीएम मोदी ने जिनपिंग को कराया रूबरू
- सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने महाबलीपुरम का किया था दौरा
नई दिल्ली। भारत के प्राचीन और पौराणिक शहर महाबलीपुरम में दुनिया के दो दिग्गजों भारत के पीएम नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई। शुक्रवार की मुलाकात की खास बात ये थी कि पीएम नरेंद्र मोदी पारंपरिक तमिल परिधान वेष्टी में थे। दोनों देशों के बीच अनौपचारिक वार्ता से पहले पीएम मोदी ने प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला से शी जिनपिंग को रूबरू कराया। पीएम मोदी और जिनपिंग ने पहले अर्जुन पेनेंस, फिर पंच रथ और शोर टेंपल का दौरा किया।
पीएम मोदी भारतीय स्थापत्य कला की बारीकियों के साथ ये बताया कि किस तरह से चीन का इस प्राचीन शहर से हजारों साल पुराना संबंध था। यह शहर दोनों देशों के बीच न केवल व्यापारिक सेतु की तरह काम करता था बल्कि दोनों देशों के बीच सुरक्षा संबंधों की कहानी को भी बयां करता था। इसके साथ ही चीनी राष्ट्रपति के साथ रामायण का मंचन भी किया गया।
महाबलीपुरम में मोदी-जिनपिंग मुलाकात की खास झलकियां
- पर्यटक गाइड की भूमिका में पीएम मोदी ने शी जिनपिंग को महाबलीपुरम की सैर कराई
- पीएम मोदी ने सफेद धोती में राष्ट्रपति शी जिनपिंग का स्वागत किया।
- पीएम मोदी ने तीन भाषाओं के जरिए शी जिनपिंग का स्वागत किया।
- जिनपिंग को अर्जुन पेनेंस, कृष्ण का माखन लड्डू और शोर मंदिर का भ्रमण कराया।
- तमिल व्यंजनों के जरिए चीनी राष्ट्राध्यक्ष की दिल जीतने की कोशिश
महाबलीपुरम की धरती पर जब ह्वेनसांग ने दस्तक दी थी तो उस वक्त दक्षिण भारत के बड़े हिस्से पर पल्लव राजा शासन कर रहे थे। ह्ववेनसांग महाबलिपुरम की स्थापत्य के बारे में लिखता है कि लगता है कि किसी महादैत्य ने इन मंदिरों को बनाया है। यहां के इमारतें जिस तरह से बनाई गई हैं शायद वो आने वाली सदियों में न बनाई जा सके। जिस तरह से विशालकाय शिलाओं को तराशा गया वो अद्बभुत है। जिस तरह से इन स्मारकों को बनाने में समय लगा होगा उससे साफ है कि तत्कालीन राजशाही के दौरान कितनी शांति और समृद्धि रही होगी।
जानकार कहते हैं कि पीएम मोदी द्वारा महाबलीपुरम का चुनाव करने के पीछे कई वजहें हैं पहली वजह ये है कि वो चीन को संदेश देना चाहते हैं कि भारत सिर्फ तकनीकी और राजनीतिक शब्दावली के तहत उसके साथ आगे नहीं बढ़ना चाहता है। बल्कि भारत की कोशिश है कि चीन इस बात को समझ सके कि सांस्कृतिक तौर पर उसका जुड़ाव भारत से किस तरह का रहा है। भारत- चीन दोनों मिलकर तमाम तरह की बाधाओं के बाद भी आगे बढ़ सकते हैं।