- अटारी-वाघा बॉर्डर पर बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी 15 अगस्त और 26 जनवरी को मनाई जाती है।
- यहां दोनों देशों के राष्ट्रीय झंडे शाम ढलने से पहले उतारे जाते हैं।
- सेना की बैरक वापसी के प्रतीक में यह परंपरा है।
Exclusive : 15 अगस्त के खास मौके पर अटारी बॉर्डर पर बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी हो रहा है। BSF के जवान पूरी तैयारी में है। इस खास कार्यक्रम के लिए लोगों का हुजूम पहुंच चुका है। लोगों में जबरदस्त उत्साह है। TIMES NOW नवभारत संवाददाता प्रदीप दत्ता भी अटारी बॉर्डर से हर तस्वीर दिखाई। अटारी-वाघा बॉर्डर पर बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी 15 अगस्त-26 जनवरी को मनाई जाती है।
बीएसएफ और पाक रेंजर्स शामिल होते हैं। BSF के जवान सेरेमनी में तिरंगा उतारते हैं। बॉर्डर पर भारत-पाकिस्तान के जवानों के शौर्य प्रदर्शन होता है। हर शाम में दोनों देशों के जवान ड्रिल करते हैं। जवानों के शक्ति प्रदर्शन की वजह से सेरेमनी की चर्चा होती है। बड़ी संख्या में लोग सेरेमनी देखने पहुंचते हैं।
बीटिंग रिट्रीट समारोह से ठीक पहले अटारी-वाघा सीमा पर बड़ी भीड़ जमा हो गई, देशभक्ति के गीत गाए, नृत्य किया और भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया। बीटिंग रिट्रीट एक प्रतिष्ठित परंपरा है जिसमें दोनों देशों के राष्ट्रीय झंडे शाम ढलने से पहले सीमा पर उतारे जाते हैं।
अटारी बॉर्डर पर बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी का इतिहास
- अटारी बॉर्डर अमृतसर से 30 किमी दूर पर स्थित
- पाकिस्तान की तरफ से सीमा का नाम वाघा बॉर्डर
- विभाजन के बाद बीपी नंबर-102 के पास चेक पोस्ट बना
- 1947 में सेना ने सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाली
- शुरुआत में कुमाऊं रेजीमेंट को तैनात किया गया
- तब से दोनों देशों के सैनिक बॉर्डर पर मौजूद रहते हैं
- 1959 में पहली रिट्रीट सेरेमनी का आयोजन हुआ
- अटारी बॉर्डर पर हर शाम बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी
- 15 अगस्त और 26 जनवरी को खास आयोजन होता है
- सेरेमनी देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं
क्या है बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी ?
सेना की बैरक वापसी के प्रतीक में यह परंपरा होती है। बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी पूरी दुनिया में होती है। युद्ध के बाद सेना बैरक में वापस लौटती है। सेना की वापसी पर म्युजिकल समारोह होता है। इस कार्यक्रम को बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी कहते हैं। भारत में 1950 से बीटिंग द रिट्रीट की परंपरा है।