- अमित शाह बोले राजनीति में उपाधियां अस्थाई वो राजनीति के चाणक्य नहीं
- सीएए, एनपीआर देश के किसी नागरिक के खिलाफ नहीं, अफवाहों पर लोग न दें ध्यान
- पिछले 70 वर्ष में कांग्रेस की कमियों की विरासत को मौजूदा सरकार ढो रही है।
नई दिल्ली। Times Now Summit 2020 के दूसरे और अंतिम दिन गृहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली चुनाव में मिली हार का जिक्र करते हुए कहा कि यह बात सही है कि इस बार हम चूक गए। लेकिन हमने कभी विचारधार से समझौता नहीं किया। शाहीन बाग के बारे में कहा कि विरोध करने का हक है लेकिन सवाल यह है कि विरोध कैसे होना चाहिए। जिस तरह से शाहीन बाग में विरोध किया गया। वैसे ही हमें भी अपनी बात कहने का अधिकार है। अमित शाह ने कहा कि अगर चुनाव में गोली और बोली की बात गलत है को राहुल गांधी ने जो डंडे मारने की बात बोली थी वो भी गलत था।
दिल्ली चुनाव में हार पर उन्होंने कहा कि जीत या हार के लिए कई वजहें होती हैं। यह कह देना कि बटन ऐेसे दबाना कि करेंट शाहीन बाद में लगे वो सिर्फ एक मुहावरा भर है। जहां तक कुछ लोग कहते हैं कि अगर बीजेपी सत्ता में नहीं आई को बहू बेटियों का बलात्कार होगा इस तरह की बात बीजेपी के किसी नेता ने नहीं कही। उन्होंने कहा कि हर एक चुनाव दूसरे से अलग होता है। जहां तक बीजेपी की प्रदर्शन की बात करें तो हरियाणा और महाराष्ट्र में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा। ये बात सही है कि झारखंड में हम बेहतर प्रदर्शन करने से चूक गए।
सीएए पर विपक्ष का विरोध जायज नहीं
सीएए पर सरकार किसी से भी चर्चा के लिए तैयार है अगर कोई भी उनसे मिलना चाहेगा तो उससे वो तीन दिन में मिलने के लिए तैयार हूं। लेकिन हकीकत यह है कि लोग मिलना नहीं चाहते हैं। इस विषय पर सियासत जारी है उसमें हम क्या कर सकते हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के जिन धार्मिक अल्पसंख्यकों से भारत आने का वादा कांग्रेस ने किया था उसे कांग्रेस ने कहां निभाया। कांग्रेस ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की इच्छा का भी सम्मान नहीं किया।
एनपीआर- कौन कहता है दस्तावेज दिखाओ
सीएए, एनपीआर और एनआरसी पर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि विपक्ष के पास किसी तरह का तथ्यात्मक आधार नहीं है, लिहाजा विरोध का कोई मतलब नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस जिस तरह से इस मुद्दे पर विरोध कर रही है तो उसे राजस्थान सरकार के उस अनुरोध को देश के सामने रखना चाहिए जिसमें कहा गया कि पाकिस्तान से आए हिंदू और सिख शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाए।
कांग्रेस की अलग अलग अलग सरकारों ने ही कहा था कि पाकिस्तान से आने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों से जुड़े लोगों को लांग टर्म वीजा दिया जाए। हमारी सरकार ने क्या किया उसमें कुछ और वर्गों को जोड़ा गया।इसके साथ ही सीएए में उनके लिए आजीविका के खास इंतजाम किए गये।एनपीआर, जनगणना की तरह ही है, किसी को दस्तावेज दिखाने की जरूरत नहीं है। अगर जो लोग दस्तावेज नहीं दिखाना चाहते हैं तो उनसे कौन कहता है कि दस्तावेज दिखाने के लिए। मुंह से कहना ही दस्तावेज दिखाना है।
असम को अलग करने वाल सलाखों के पीछे
शरजील इमाम पर अमित शाह ने कहा कि वो असम को देश से अलग करने की बात करते थे। लेकिन हमने उन्हें बंद कर रखा हुआ है। पीएफआई पर गृहमंत्री ने कहा कि अभी उस मामले की जांच की जा रही है, लिहाजा कुछ कहना गलत होगा। जांच पूरी हो जाने के बाद अगर जरूरी हुआ तो निर्णय लिया जाएगा। जहां तक पीएफआई की बात है उसे हमने कभी उठाया ही नहीं था।
एनआरसी कांग्रेस की देन
एनआरसी के संबंध में पहल कांग्रेस की तरफ से ही की गई थी। प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में कमेटी बनी जिसने फैसला किया था देश के सभी लोगों की पहचान के लिए एक रजिस्टर बनना चाहिए तो कांग्रेस सिर्फ बरगलाने का काम कर रही है। जहां तक एनआरसी लागू करने की बात है फिलहाल किसी तरह का फैसला नहीं किया गया है।
जामिया और जेएनयू दोनों मामले अलग अलग
जामिया हिंसा के मामले में अमित शाह ने कहा कि दिल्ली पुलिस उन लोगों के पीछे विश्वविद्यालय में दाखिल हुई थी जो बस और स्कूटी जलाने के लिए जिम्मेदार थे। इसके साथ जेएनयू का जिक्र करते हुए कहा कि वहां का मामला अलग था। फीस के मुद्दे पर तोड़फोड़ हुई और उस क्रम में सिर्फ आइशी घोष ही नहीं घायल हुई थीं।
जम्मू-कश्मीर में भड़काऊ बयान की इजाजत नहीं
जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक तौर पर नजरबंदियों के संबंध में कहा कि उसके बारे में फैसला स्थानीय प्रशासन को करना है। लेकिन जहां तक आप महबूबा मुफ्ती या उमर की बात करें तो उनके बहुत से ऐसे ट्वीट हैं जो भड़काऊ हैं। जहां तक नेताओं के कश्मीर जाने का सवाल है कि कोई भी जा सकता है। लेकिन वहां जाकर किसी को भड़काने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।
एससी-एसटी समाज को गुमराह कर रही कांग्रेस
एससी-एसटी समाज को नौकरियों में आरक्षण के मुद्दे पर अमित शाह ने कहा कि सच यह है कि अगर इस संबंध में कोई दोषी तो उसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है। 2012 में उत्तराखंड की सरकार ने फैसला किया था और उस समय कांग्रेस की सरकार थी। उस फैसले के खिलाफ अदालत ने फैसला किया। लेकिन कांग्रेस के नेता आखिर सच क्यों नहीं बता रहे हैं। राहुल गांधी ने इस पर हाय तौब्बा मचाया। लेकिन अब कांग्रेस के नेता इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है।
समिट के पहले दिन देश के सामने चुनौतियों और संभानओं के विषय पर सत्ता और विपक्ष की तरफ से राय रखी गयी। सत्ता पक्ष का कहना था कि आज का भारत आकांक्षाओं के साथ आगे बढ़ने की सोच रखता है तो विपक्ष ने कहा कि इस सरकार में संवैधानिक व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।शाम सात बजे जब पीएम नरेंद्र मोदी डायस पर आए तो सिर्फ एक लाइन से व्यवस्था पर सवाल उठाने वालों को जवाब दे दिया कि जो लक्ष्य तय करते हैं उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है।