- 348 साल पहले श्रीनाथजी पधारे थे नाथद्वारा, यहां है जन्माष्टमी और नंद महोत्सव का अलग अंदाज
- श्रीनाथजी के पधारने से पहले नाथद्वारा का नाम था सिंहाड़
- जन्माष्टमी पर सुबह 4 बजे शंखनाद, आधे घंटे बाद मंगला दर्शन फिर हुआ पंचामृत से स्नान
उदयपुर: भारत के वैभवशाली प्रधान तीर्थ स्थलों में वल्लभ संप्रदाय प्रधान पीठ राजसमंद जिले का नाथद्वारा अग्रणी है। यहां होने वाले उत्सवों में जन्माष्टमी ( Janmashtami 2021) और नंद महोत्सव का अलग अंदाज और महत्व है। नाथद्वारा शहर की संस्कृति पर ब्रज का प्रभाव है। इसका बड़ा कारण प्रभु श्रीनाथजी (Shrinathji Temple) है। हालांकि इस बार कोरोना गाइडलाइन के तहत श्रद्धालुओं को जन्माष्टमी पर्व पर पंचामृत स्नान और नंद महोत्सव के दर्शन नहीं हो पाएंगे।
श्रीनाथजी का इतिहास
मुगल शासक औरंगजब के शासन काल में हिंदू मंदिरों को नष्ट करने के भय से श्रीकृष्ण विग्रह श्रीनाथजी को सुरक्षा की दृष्टि से ब्रज से विहार कराया। कहा जाता है कि विक्रम संवत 1726 अश्विन शुक्ल 15 तदनुसार 10 अक्टूबर 1669 ईस्वी को प्रभु ने ब्रज से विहार किया। विक्रम संवत 1728 कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन प्रभु मेवाड़ पहुंचे। महाराणा राजसिंह ने प्रभु की आगवानी की, राजनगर से आगे तत्कालीन सिंहाड़ गांव में पीपल के नीचे रात्रि विश्राम हुआ। दूसरे दिन सुबह प्रस्थान के समय रथ का पहिया धंस गया। ज्योतिषियों ने कहा प्रभु यहां विराजना चाहते हैं। राणा की आज्ञा से देलवाड़ा नरेश ने महाप्रभु हरिरायजी की देखरेख में छोटा सा मंदिर बनवा कर आसपास की जमीन पट्टे पर दी गई।
मूर्ति की खासियत
मथुरा गिरिराज पर्वत पर विक्रमाब्द 1466 को प्रातः काल सूर्योदय की प्रथम रश्मि के साथ उध्व भूजा के दर्शन होते है। वहीं पर उध्वभुजाजी ने 69 वर्ष तक अनेक सेवाएं स्वीकार की। इसके बाद विक्रमाब्द 1535 वैशाख कृष्ण एकादशी गुरुवार को मध्यान्ह काल में प्रभु के मुखारबिंद का प्राकट्य हुआ।अन्योर ग्राम के निवासी सद्द् पांडे की गाय स्वतः ही प्रतिदिन मुखरबिंद पर दूध की धार छोड़ आती थी।
कैसे मनाया जाता है जन्माष्टमी पर्व
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के रूप में जन्माष्टमी के नाम से देश के धर्म-संप्रदायों में अपने-अपने ढंग से मनाई जाती है, लेकिन नाथद्वारा में इसका अपना स्वरूप है। पर्व पर सुबह 4 बजे शंखनाद होते हैं। आधे घंटे बाद मंगला दर्शन खुलते हैं। पर्व पर ठाकुरजी धोती-उपरना धारण करते है। उनके तिलक-अक्षत लगाए जाते हैं। इसके बाद पंचामृत से स्नान होता है।
तीनों स्वरूप पंचामृत से सराबोर :
श्री मदन मोहनलाल या बालकृष्णलाल जी पंचामृत स्नान करते है, लेकिन जन्माष्टमी विशिष्ट पर्व होने से श्रीनाथजी सहित तीनों स्वरूप पंचामृत से सराबोर होते हैं। ये दर्शन साल में एक बार ही होते हैं।
जागरण : रात 9 बजे जागरण के दर्शन खुलते हैं। पर्व पर इस दर्शन का विशेष महत्व है। करीब 11:30 बजे श्रीजी के सम्मुख टेरा आता है (दर्शन बन्द होते है) निश्चित समय जन्म होने का घण्टानाद होता है और 'मोतीमहल' की प्राचीर से दो-तीन बार जन्म होने की सूचना स्वरूप बिगुल बजाई जाती हैं।
प्रभु को 2 तोपों से 21 बार सलामी देते हैं : जन्माष्टमी पर कृष्ण जन्म के दौरान रिसाला चौक में 21 तोपों की सलामी दी जाएगी। श्रीनाथजी मंदिर में जन्माष्टमी के दिन कृष्ण जन्म होने पर 2 तोप से 21 बार सलामी दी जाती है। हालांकि इस बार आम श्रद्धालु तोपों को सलामी देते हुए नहीं देख पाएंगे।
जन्मोत्सव की तैयारी
जन्माष्टमी के दिन शयन आरती के बाद अनेक खिलौनों से युक्त से साज से, प्रभु श्रीनाथजी को, मणिकोठा" में खेलाया जाता है है, उसी समय सभी कीर्तनकार 'डोल-तिबारी' में गोलडेल्ही के पास बैठकर बधाई के पद गाते हैं।
महाभोग : श्रीकृष्ण के जन्म के बाद पंजरी का भोग लगाया जाता है। पंजरी सोंठ, अजवाईन, धनिया, काली मिर्च, सौंफ सहित अन्य चीजों को पीसकर घी। मिलाकर बनाई जाती हैं। पंजरी स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उत्तम है, इसलिए भक्त इस प्रसाद को साल भर घर में रखते है।
मुखिया बावा बनते हैं नंद-यशोदा
जन्माष्टमी के दूसरे दिन नंदोत्सव पर श्रीजी के बड़े मुखिया नंदबाबा और नवनीतप्रियाजी के मुखिया यशोदा मैया का स्वरूप धारण करते एवं चार गोपियां तथा चार ग्वाल बने हुए व्यक्तियों के साथ 'छठी के कोठे' में जाकर छठी पूजन करते हैं। आरती वाली गली में रखी दही-दूध की नांदें रतन चौक, कमल चौक, धोली पटिया, गोवर्धन पूजा के चौक आदि स्थानों में रखी जाती है। इनमें हल्दी मिश्रित दूध-दही लेकर ग्वाल-बाल दर्शनार्थियों पर छांटते है। लेकिन कोरोना गाइडलाइन के चलते इस बार दर्शनार्थियों को इन दर्शन में प्रवेश नहीं दिया हालांकि मंदिर के परंपरा का निर्वाहन किया जाएगा।