ज्ञानवापी की अदालती लड़ाई के बीच काशी में औरंगजेब के मंदिर विध्वंस के कई किस्से सामने आ रहे हैं। हम आपको लाट भैरव मंदिर को तोड़कर लाट मस्जिद बनाने की सच्चाई बताएंगे। क्या सचमुच काशी के अष्ट भैरवों में एक कपाल भैरव यानी लाट भैरव मंदिर का मुगलों ने विध्वंस किया था? काशी की सनातन पहचान मिटाने के लिए औरंगजेब ने आदि विश्वेश्वर, बिंदु माधव और कृति वासेश्वर जैसे प्राचीन मंदिर ही नहीं तोड़े बल्कि ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक वाराणसी में ऐसे कई मंदिर और हैं जो मुगलिया क्रूरता के शिकार बने। उन्हीं मंदिरों में से एक है- लाट भैरव मंदिर, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि औरंगजेब ने तोड़कर उसे लाट मस्जिद में बदल दिया। लाट भैरव बनाम लाट मस्जिद का ये विवाद क्या है? ज्ञानवापी की अदालती लड़ाई के बीच लाट भैरव मंदिर और मस्जिद विवाद को समझने के लिए टाइम्स नाउ नवभारत की टीम ठीक उसी जगह पर पहुंची जहां बरसों पुराने मंदिर के अगल-बगल में मस्जिद और मजार हैं।
हिंदू पक्ष इस पूरे इलाके पर अपना हक जताता है तो मुस्लिम पक्ष अपना। ये विवाद कितना पुराना है? इस पर असली हक किसका है? इसे लेकर हमने दोनों पक्षों से बात की। ये मंदिर आज भी काफी वीरान है। कहा जाता है कि कभी यहां साल में सिर्फ एक बार 5 हिंदुओं की एंट्री मिलती थी लेकिन अब ऐसी कोई लिमिट नहीं है। लाट भैरव विवाद की पड़ताल के दौरान हमारी मुलाकात हरिहर पांडे से हुई, जो हिंदुओं के हक में इस मंदिर की लड़ाई लड़ रहे हैं। हरिहर पांडे वो शख्स हैं, जिन्होंने काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी केस में 1991 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक लाट भैरव या कपाल भैरव अष्ट भैरव में पहले भैरव के तौर पर पूजे जाते हैं।
काशी में भी भैरव के आठों रूप-
- काल भैरव
- आनन्द भैरव
- आस भैरव
- बटुक भैरव
- संघार भैरव
- दंडपाणी भैरव
- लाट भैरव
- और द्वार भैरव मौजूद हैं..
बताया जाता है कि 1669 में आदि विश्वेश्वर महादेव के मंदिर को गिराने के बाद औरंगजेब ने लाट भैरव मंदिर को भी गिरा दिया और फिर उसी जगह पर अपने कर्मचारियों के लिए मस्जिद बनवा दी। ईसाई मिशनरी और इंडोलॉजिस्ट एम ए शेरिंग के मुताबिक मंदिर गिराने के बावजूद स्तंभ को औरंगजेब ने बरकरार रखा, क्योंकि वो इसे एक सजावटी ढांचे के रूप में देखता था। फ्रांसीसी यात्री ट्रैवर्नियर ने भी 1670 में इस ढांचे के 35 फीट ऊंचे होने का जिक्र किया। 1707 में औरंगजेब की मौत के बाद हिंदू समुदाय ने वाराणसी की शैव पहचान को दोबारा जिंदा करना शुरू किया। बाद में 1809 में इतिहास के पहले दंगे जिसे लाट भैरव दंगा कहते हैं, उसमें इस ढांचे को नुकसान पहुंचाया गया तो हिंदुओं ने टूटे हुए हिस्से जो करीब 14 से 16 फीट था। उसे ही कवर कर दिया।
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