न्यूज की पाठशाला में सबसे पहले लगी सोशल साइंस की क्लास। सोशल साइंस की क्लास में पद्म पुरुस्कारों का चैप्टर खोला गया। भारत रत्न के बाद देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म पुरुस्कार ही होते हैं। पिछले दो दिन से राष्ट्रपति भवन में पद्म पुरुस्कार दिए जा रहे हैं। इन पद्म पुरुस्कार की खास बात ये है कि इनमें कोई लाल बत्ती नहीं लगी। पद्म अवॉर्ड पर लगी लाल बत्ती हट गई है अब पीपुल्स अवॉर्ड हो गया है। अब पद्म अवॉर्ड कह सकते हैं साड्डा हक ऐथे रख।
पद्म सम्मान इस बार जिनको मिले हैं उनके बारे में आपको जानना चाहिए तभी आप को ये समझ आएगा कि इसे पीपल्स पद्म क्यों कहा जा रहा है।
तुलसी गौड़ा एक बुजुर्ग महिला, शरीर से कमजोर पर इरादों से मजबूत। पांव में चप्पल नहीं है, तन पर फैशनेलब कपड़े नहीं है। लेकिन तुलसी गौड़ा वो महिला हैं जिन्हें प्रधानमंत्री भी प्रणाम कर रहे हैं। तुलसी गौड़ा को राष्ट्रपति ने पद्म श्री से सम्मानित किया है। कर्नाटक की 72 साल की तुलसी गौड़ा पर्यावरण के लिए काम करती हैं। इनको जंगलों की एनसाइक्लोपीडिया तक कहा जाता है। तुलसी कभी स्कूल नहीं गईं, किसी तरह का किताबी ज्ञान नहीं है। तुलसी गौड़ा को पेड़ पौधों और जंगल से बहुत ज्यादा लगाव है। इसीलिए तुलसी गौड़ा ने वन विभाग में नौकरी कर ली। 14 साल की नौकरी में तुलसी ने हजारों पेड़-पौधे लगाए। अब तक तुलसी गौड़ा एक लाख से ज्यादा पेड़ लगा चुकी हैं। विकास के नाम पर जब इनके गांव के आस पास जंगलों की कटाई हुई तो तुलसी गौड़ा ने पौधे लगाने का संकल्प लिया। बिना किसी फायदे के तुलसी गौड़ा पिछले 60 साल से पौधे लगा रही हैं। न किसी से कभी मदद मांगी न सहयोग की उम्मीद रखी, बस पर्यावरण के लिए अपना काम करती रहीं। तुलसी गौड़ा को इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड, राज्योत्सव अवॉर्ड, कविता मेमोरियल समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
हरेकला हजब्बा की कहानी
इनको पद्मश्री मिला। 65 साल के हजब्बा मैंगलोर में संतरे बेचते थे। एक दिन विदेशी कपल आया संतरा खरीदने और वो अंग्रेजी न आने के कारण कीमत नहीं बता पाए, बहुत बुरा लगा। लगा कि गांव में प्राइमरी स्कूल होना चाहिए। गांव वालों को समझाया। स्कूल में खुद साफ सफाई करते, बच्चों के लिए पीने का पानी उबालते, छुट्टी में 25 किलोमीटर दूर जाकर अधिकारियों से सुविधाओं के लिए गुहार लगाते। 2008 में जिला प्रशासन ने दक्षिण कन्नड़ जिला पंचायत के तहत नयापुडु गांव में 14वां माध्यमिक स्कूल बनवाया।
कोएम्बटूर की पप्पम्मल की कहानी
पप्पम्मल को जैविक खेती के लिए पद्मश्री दिया गया। 105 साल की पप्पम्मल पिछले 90 साल से जैविक खेती कर रही हैं। बचपन में ही माता पिता का निधन हो गया था, जिसके बाद वो नानी के घर पर रह रही हैं। बचपन से ही पप्पम्मल को कृषि से लगाव था। उन्होंने काफी समय तक खेती किसानी सीखी। पप्पम्मल ढाई एकड़ में खेती करती हैं। बाजरा, दाल और सब्जियों की खेती करती हैं। पप्पम्मल ने रासायनिक खादों का प्रयोग नहीं किया। उनकी सब्जियां, दाल पूरी तरह से जैविक होती हैं और उनकी खूब डिमाड भी है। उपप्पम्मल कभी स्कूल नहीं गई, पढ़ाई नहीं की खेती के लिए तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय की कक्षाओं में भाग लिया। खेती के साथ साथ पप्पम्मल एक स्टोर और भोजनालय भी चलाती हैं। पप्पम्मल के 100 साल पूरे होने पर गांव में जश्न मनाया गया। गांव के लोग कहते हैं कि पप्पम्मल एक जीता जागता स्कूल हैं। जैविक खेती के लिए वो आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।