'ओपिनियन इंडिया का' में बात हुई पंजाब की बदलती राजनीतिक फिजा से लेकर, महंत नरेंद्र गिरी की संदिग्ध हालात में मौत, फिरोजबाद के रहस्यमयी बुखार और साक्षी महाराज के एक और विवादास्पद बोल पर। 74 साल बाद पंजाब को पहला दलित मुख्यमंत्री मिला। सिख दलित सीएम। चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में। देश के जिस राज्य में सबसे ज्यादा दलित हैं, और जहां से निकलकर कांशीराम ने उत्तर भारत में दलित आंदोलन खड़ा किया, बहुजन समाजवादी पार्टी की स्थापना की, उस पंजाब को अब दलित मुख्यमंत्री नसीब हुआ है।
चन्नी ने मुख्यमंत्री की रेस में सिद्धू, रंधावा, जाखड़, अंबिका सोनी जैसे दिग्गजों को पीछे छोड़ दिया। इसलिए नहीं कि वो बहुत ताकतवर नेता हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि वो एक दलित नेता हैं। पंजाब में दलित वोट 32% हैं। चन्नी की चांदी लगी तो फैसला ना सिर्फ देश के लिए बल्कि चन्नी और उनके परिवार के लिए भी अप्रत्याशित था। पंजाब में पांच महीने बाद चुनाव है। लेकिन सवाल ये है कि क्या चन्नी पांच महीने के लिए कांग्रेस के मोहरा हैं? या पांच साल के किंग? पंजाब को लेकर ये प्रश्न इसलिए पूछा जा रहा है क्योंकि खबर आई कि चन्नी सिर्फ 5 महीने तक सीएम होंगे। चुनाव सिद्धू के चेहरे पर लड़ा जाएगा। कांग्रेस पर सवाल उठने लगे, तो पार्टी को सफाई देनी पड़ी।
कांग्रेस के लिए ये आसान नहीं होगा कि पांच महीने बाद वो चन्नी के बजाय सिद्धू के चेहरे पर चुना लड़े। वजह ये कि अगर चन्नी को किनारे किया जाता है तो कांग्रेस पर दलितों के अपमान या उनके इस्तेमाल का आरोप लगेगा। ऐसा फैसला बैकफायर कर सकता है। जाहिर है चुनाव में कांग्रेस के लिए इतना बड़ा जोखिम उठाना आसान नहीं होगा। वैसे, पंजाब में दलित एक बड़ा वोट बैंक हैं। इसलिए आने वाले चुनाव में हर पार्टी दलित कार्ड खेल रही है।
बीजेपी ने ऐलान किया है कि वो अगर जीतेगी तो दलित सीएम होगा। अकाली और बीएसपी गठबंधन ने दलित डिप्टी सीएम बनाने का ऐलान किया है। आम आदमी पार्टी ने भी दलित डिप्टी सीएम बनाने की घोषणा की है। इसी दलित राजनीति को देखते हुए कांग्रेस ने चन्नी को सीएम बनाया है। जब पूरे सूबे की सियासत दलितों के इर्द गिर्द घूम रही हो, तो क्या कांग्रेस दलित सीएम को हटाकर सिद्धू को प्रोजेक्ट करेगी। इस सवाल का जवाब अभी भविष्य के गर्भ में है। लेकिन, मसला चन्नी के काम करने के तरीके का भी है। चन्नी अगर अगले पांच महीने में कुछ इस अंदाज में काम करते हैं कि उनका कद असल सीएम सरीखा दिखाई देने लगे तो निश्चित रुप से उन्हें हटाना आसान नहीं होगा।
पंजाब को पहला दलित मुख्यमंत्री मिला है। इस पर क्रेडिट लेने में भी कांग्रेस पार्टी पीछे नहीं है। पार्टी के बड़े नेता विपक्षी दलों को चुनौती दे रहे हैं कि वो भी दलित चेहरे को मुख्यमंत्री कैंडिडेट घोषित कर चुनाव मैदान में उतरकर दिखाएं। लेकिन सवाल इन सियासी चुनौतियों का नहीं है। सवाल हाशिए पर खड़े उस दलित वर्ग का है, जिसके रहनुमा बनने वाले चेहरे क्या वाकई आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रुप से उनका प्रतिनिधित्व करते हैं?
चरणजीत सिंह चन्नी। पंजाब के नए कैप्टन। मुख्यमंत्री दलित, गरीब, वंचित के नाम पर बने। पर ये राजनीति का एक पहलू है। दूसरा पहलू कुछ और है। दूसरा पहलू राजनीति के विरोधभास को उजागर करता है। देश में दलित और पिछड़ा समुदाय से आने वाले लोगों को सत्ता ये कहकर दी जाती है कि वो हाशिये पर रहे हैं। शोषित हैं, पीड़ित हैं। पर दलित और वंचित के नाम पर जिन्हें सत्ता दी जाती है, उन्हें चन्नी कहते हैं।
चन्नी के पास इस वक्त करीब साढ़े 14 करोड़ की दौलत है। 9 करोड़ 20 लाख रुपए की खेतिहर जमीन है। ढाई करोड़ की कमर्शियल बिल्डिंग है। डेढ़ करोड़ का घर है। चन्नी खुद करीब 40 लाख की फॉर्चूनर कार से चलते हैं। पत्नी हुंडई और इनोवा की सवारी करती हैं। मतलब चन्नी और उनके परिवार की जिंदगी में भरपूर ऐशो आराम है। छवि भी दलितों और वंचितों जैसी नहीं। चरणजीत सिंह चन्नी ज्योतिष पर बहुत विश्वास करते हैं। 2017 में पंजाब में मंत्री बनने के बाद ज्योतिषी ने चन्नी को सलाह दी थी कि घर में पूर्व दिशा से एंट्री करने पर राजनीतिक फायदा होगा। फिर क्या था चन्नी ने गैरकानूनी तरीके पार्क से घर तक सड़क बनवा दी। पूर्वी दिशा में घर में गेट बनवाया, जिससे वो अंदर आ सकें। हालांकि 2 घंटे के अंदर ही चंडीगढ़ प्रशासन ने उस सड़क को तुड़वा दिया।
चन्नी ने हाथी की सवारी भी ज्योतिषी के कहने पर की थी। ज्योतिषी ने सलाह दी तो मंत्री जी पूजा पाठ के बाद अपने घर के लॉन में हाथी पर सवार होकर घूमने लगे। तस्वीर वायरल हुई तो चन्नी के साथ साथ कांग्रेस की खूब फजीहत हुई।