'ओपिनियन इंडिया का' में बात हुई आम आदमी से जुड़ी बेहद जरूरी खबर पर। अगर आपने ट्रेन में यात्रा की है, जो की ही होगी तो यकीकन आपको ट्रेनों की लेटलतीफी का अनुभव होगा। लेकिन, देश की सबसे बड़ी अदालत ने कल एक फैसला दिया, जो इस ओर भी इशारा करता है कि 21वीं सदी के भारत को जवाबदेही की दरकार है। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रेन लेट होने के एक मामले में रेलवे पर 35 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। भारत में ट्रेनों का लेट होना बहुत आम सी बात है। अक्सर ट्रेनें घंटों देर हो जाती है। सर्दियो के मौसम में घना कोहरा होने पर तो ट्रेनें 24-24 घंटों तक लेट हो जाती हैं। पर इससे किसी को फर्क नहीं पड़ता। ये लेटलतीफी हमारे सिस्टम में समा चुकी है। सोच में घर कर चुका है। देश ने ये मान लिया है कि ट्रेनें तो लेट होने के लिए ही हैं। लिहाजा इस तरफ ना तो सरकारें विशेष ध्यान देती है, ना रेलवे और ना ही रेल यात्री। पर कोई है, जिसने इस बड़ी समस्या पर ध्यान दिया है। कोई है, जिसे रेल यात्रियों की परेशानी दिखती है और वो है सुप्रीम कोर्ट। सर्वोच्च अदालत ने इस बाबत एक अहम फैसला सुनाया है।
कोर्ट ने कहा कि अगर कोई ट्रेन लेट होने से यात्री को परेशानी हुई, तो यात्री मुआवजा पाने का हकदार है। आज का दौर प्रतिस्पर्धा और जवाबदेही का है। अगर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को जिंदा रखना है और निजी परिवहन से प्रतिस्पर्धा करनी है, तो कामकाज सुधारना होगा। लोग सरकारी अफसरों की दया पर आश्रित नहीं रह सकते। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने ये फैसला उत्तर पश्चिम रेलवे की याचिका को खारिज करते हुए सुनाया। जस्टिस शाह ने कहा अगर रेलवे इस बात का प्रमाण नहीं दे पाता कि ट्रेन लेट होना उसके नियंत्रण से बाहर था, तो यात्री मुआवजे का हकदार है।
सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला रेल यात्री संजय शुक्ला के मामले में सुनवाई के दौरान दिया। कोर्ट ने इस केस में उपभोक्ता फोरम के फैसले को बरकरार रखा। दरअसल ये मामला 11 जून 2016 का है। संजय शुक्ला को अपने परिवार के साथ अजमेर जम्मू-एक्सप्रेस से जम्मू जाना था। ट्रेन अपनी तय समय सुबह 8 बजकर 10 मिनट की बजाय दोपहर 12 बजे जम्मू पहुंची। शुक्ला परिवार को दोपहर 12 बजे की फ्लाइट से श्रीनगर के लिए उड़ान भरनी थी। लेकिन ट्रेन लेट होने की वजह से उनकी फ्लाइट छूट गई थी। इसके खिलाफ संजय शुक्ला अदालत में गए थे।
पहले कोर्ट ने फिर उपभोक्ता फोरम ने आदेश दिया था कि रेलवे संजय शुक्ला को 35 हजार रुपए मुआवजा दे। लेकिन रेलवे ने अपनी गलती मानने के बजाय सुप्रीम कोर्ट में उपभोक्ता फोरम के फैसले को चुनौती दी थी। लेकिन कोर्ट ने उपभोक्ता फोरम के फैसले को सही बताया और रेलवे को 35 हजार रुपए मुआवजा देने का आदेश सुनाया।
दो हफ्ते पहले की बात है। देश की पहली प्राइवेट ट्रेन लेट हुई, तो आईआरसीटीसी इसके लिए 2,035 यात्रियों को 4.5 लाख रुपये हर्जाना देना पड़ा। ये नियम है कि अगर तेजस ट्रेन लेट होती है तो यात्रियों को हर्जाना देना होगा। ये बताता है कि तेजस को अपनी जवाबदेही का एहसास है लेकिन इंडियन रेलवे को नहीं। उस रेलवे को जो दुनिया में लेटलतीफी के लिए जानी जाती है। तो सवाल यही है कि तेजस हो या सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला, क्या ये रेलवे या दूसरी सरकारी संस्थाओं के लिए मिसाल बनेगा? क्या जवाबदेह भारत का निर्माण होगा?