'ओपिनियन इंडिया का' में बात हुई अफगानिस्तान की। 1961 में आई फिल्म काबुलीवाला में एक गाना था- ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन, तुझ पे दिल कुर्बान, तू ही मेरी आरज़ू, तू ही मेरी आबरु, तुझ पे दिल कुर्बान। फिल्म में ये गाना काबुल से रोजगार के सिलसिले में भारत आया नायक अपने वतन को याद कर गाता है....मन्नाडे की आवाज में देशभक्ति से भरा ये गाना हर साल 15 अगस्त पर खूब बजता है, क्योंकि देशभक्ति की भावना को सरहदों में नहीं बांधा जा सकता। विडंबना देखिए कि आज जब अफगानिस्तान का स्वतंत्रता दिवस है तो वहां गीत नहीं नारे गूंजे। तालिबान की बंदूक के खौफ को धता बताते हुए सैकड़ों लोग सड़क पर उतरे। जलालाबाद में तो इन महिलाओं ने कमाल ही कर दिया। कोई पूछ सकता है कि इनमें ये हौसला, ये ताकत कहां से आई। दरअसल, आजादी की महक होती ही ऐसी है, जिसकी गिरफ्त में जो आया, वो गुलामी की हर जंजीर तोड़ देना चाहता है। इन महिलाओं को हमारा भी सलाम।
इस बीच, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में विदेश मंत्री ने अफगानिस्तान मसले पर भारत की बात रखी। इस मंच पर एक बड़ी महत्वपूर्ण बात उन्होंने की। उन्होंने कहा कि हमें यह याद रखना चाहिए कि कोरोना को लेकर जो सच है वो आतंकवाद को लेकर और ज्यादा सच है। हममें से कोई सुरक्षित नहीं है, जब तक हम सब सुरक्षित नहीं होते। अफगानिस्तान में जो हो रहा है, वो पूरी दुनिया के लिए चिंता की बात है। दुनिया चिंतित भी है। वहां के स्थानीय हालात और इंटरनेशनल सिक्योरिटी के लिए खतरा...ये दोनों चिंता की बात है। हक्कानी नेटवर्क से जुड़े लोगों की एक्टिविटी को कुछ लोग जस्टिफाई करने की कोशिश कर रहे हैं। वो अफगानिस्तान में हो या भारत के खिलाफ हो। लश्कर और जैश जैसे संगठन इसे लगातार ऑपरेट कर रहे हैं। इसलिए जरूरत इस बात की है UNSC इन बातों पर सिलेक्टिव व्यू न रखे।