- अरबी में क्लियर 'फरमान'..ज्ञानवापी मस्जिद ही नहीं?
- ज्ञानवापी का हर सबूत सनातन?
- औरंगजेब के पाप के खिलाफ अब फाइनल इंसाफ ?
Sawal Public Ka : ज्ञानवापी का मामला देश की अदालतों में है। दूसरी तरफ सबूत-दलील को लेकर पब्लिक डोमेन में भी कई तरह की बातें हो रही हैं। अदालत भी सबूत के आधार पर फैसला सुनाती है। इसलिए मैं आज चार ऐसे सबूतों की बात करूंगी, जिनके आधार पर हिंदू पक्ष दावा कर रहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद है ही नहीं। क्या मुस्लिम पक्ष के पास ज्ञानवापी पर हिंदू पक्ष के सबूतों का जवाब है? आज सवाल पब्लिक का यही है?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आज वाराणसी के जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में सुनवाई हुई। 45 मिनट की सुनवाई के बाद कोर्ट ने कल तक के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया है। कल कोर्ट तय करेगा कि ज्ञानवापी पर सुनवाई की प्रक्रिया क्या हो? हिंदू पक्ष की याचिका को खारिज करने की मांग पर सुनवाई पहले हो या फिर एडवोकेट कमिश्नर की सर्वे रिपोर्ट पर अदालत दोनों पक्षों को पहले सुने? ज्ञानवापी का फैसला अदालत से होना है लेकिन आज सवाल पब्लिक का के मंच से भी ज्ञानवापी के सबूतों पर सीधी बहस हुई।
पहला सबूत : अरबी में लिखा ये फरमान मुगल शहजादे दाराशिकोह ने निकाला था। फरमान में ज्ञानवापी को हिंदुओं को सौंपने का आदेश है। दाराशिकोह, औरंगजेब का ही भाई था। लेकिन इतिहासकारों ने उसे एक नेकदिल इंसान के तौर पर ज्यादा जगह दी। फरमान में उसने लिखा कि ज्ञानवापी में हर ओर महादेव के निशान मौजूद हैं। सुनिए दारा शिकोह के फरमान को लेकर महंत शिव प्रसाद का ये दावा।
दूसरा सबूत : खुद औरंगजेब का वो फरमान देखिए, जिसमें उसने आदि विश्वेश्वर नाथ का मंदिर तोड़ने का आदेश दिया था। कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी में ये फरमान सुरक्षित है। सुप्रीम कोर्ट में हिंदू पक्ष की याचिका में इसका जिक्र है। औरंगजेब के समय के इतिहासकार साकी मुस्तइद खां की किताब मासीदे आलमगिरी में भी मंदिर तोड़ने का जिक्र है।
तीसरा सबूत : औरंगजेब के समय से पहले का है। 1630 के दशक में ब्रिटिश यात्री Peter Mundy ने अपनी वाराणसी यात्रा पर एक किताब लिखी थी। आज जहां ज्ञानवापी मस्जिद होने का दावा मुस्लिम पक्ष करता है, वहां पर Peter Mundy को आदि विश्वेश्वर नाथ का मंदिर मिला था। उसकी किताब में श्रृंगार गौरी और गणेश के साथ साथ नंदी का भी जिक्र है।
चौथा सबूत : हिंदू पक्ष ज्ञानवापी पर जो चौथा बड़ा सबूत सामने रखता है। वो है 1937 में आया वाराणसी कोर्ट का फैसला। शाहजहां के शासनकाल में 1632 में पीटर मुंडी नाम के एक ट्रेवलॉगर भारत आया था वो इलाहाबाद से गंगा किनारे किनारे बनारस पहुंचा था। उसने अपनी किताब में जिक्र किया है कि जहां आज ज्ञानवापी मस्जिद है वहां पर उस दौरान भगवान आदि विश्वेश्वर का शिवलिंग था जहां पर हिंदू पूजा करते थे। पीटर मुंडी ने अपनी किताब में पूजा के विधान के साथ साथ ज्ञानवापी में श्रृंगार गौरी और गणेश के साथ साथ नंदी का भी पूरी तरह से जिक्र किया है। खास बात ये है कि पीटर मुंडी ने अपनी किताब में मंदिरों के साथ साथ बौध धर्म के पगौडा और चर्च का जिक्र भी किया है लेकिन उसने अपनी किताब में कहीं भी ज्ञानवापी मस्जिद का जिक्र नहीं किया है।
सवाल पब्लिक का
1. क्या वाराणसी कोर्ट ज्ञानवापी में हुए सर्वे और दीवार तोड़ने की मांग को स्वीकार करेगा?
2. क्या ज्ञानवापी पर हिंदू पक्ष के सबूतों को नकारना संभव है?
3. ज्ञानवापी पर पूजास्थल कानून की बाधा पार कर पाएगा हिंदू पक्ष ?
4. क्या सचमुच ज्ञानवापी मस्जिद है ही नहीं ?