- मजहब यूपी में खतरे में नहीं तो महाराष्ट्र में कैसे?
- राज ठाकरे योगी के मुरीद, अब्दुल्ला क्यों आगबबूला ?
- मसला लाउडस्पीकर नहीं, '20%' वाली सोच?
भारत में कश्मीर के विलय की शर्त क्या लाउडस्पीकर थी? आप इस सवाल पर हैरान हो रहे होंगे लेकिन ये सवाल उठाया गया है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके उमर अब्दुल्ला कश्मीर के अवाम को यही Mis-information देने की कोशिश कर रहे हैं। लाउडस्पीकर बजाने की आजादी को धार्मिक आजादी से जोड़ने और उसमें कश्मीर का सवाल उठाने की उमर अब्दुल्ला की कोशिश खतरनाक है। देश के संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ है। लेकिन सिर्फ कश्मीर में ही क्यों, लाउडस्पीकर पर मजहब का हंगामा महाराष्ट्र से लेकर कर्नाटक तक कई राज्यों में उठा है। इस सब के बीच उत्तर प्रदेश में हिंदू हों या मुसलमान, या फिर सिख, हर कोई अपने धर्मस्थलों से लाउडस्पीकर हटाने में सहयोग कर रहे हैं। इसलिए आज सवाल पब्लिक का, कि क्या देश में योगी फॉर्मूला ही सेक्युलर, 100% लाउड एंड क्लियर ?
लाउडस्पीकर पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार का एक आदेश काफी था। मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों से गैरकानूनी लाउडस्पीकर हटाने और उनकी आवाज कम करने का फैसला लागू हो रहा है। 30 अप्रैल तक राज्य के हर जिले से धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर पर रिपोर्ट मांगी गई है। यूपी में आज दोपहर 12 बजे तक ही मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों से 21 हजार लाउडस्पीकर हटा लिए गए और 41 हजार 500 लाउडस्पीकर की आवाज कम की गई। तारीफ सभी धर्मगुरुओं की भी करनी होगी, क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार को सब सहयोग कर रहे हैं। लेकिन लाउडस्पीकर देश के बाकी राज्यों में मजहब का मुद्दा क्यों बन रहा है?
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि आपको सिर्फ हमारा माइक खटकता है। आपको सिर्फ हमारा मजहब खटकता है। आपको सिर्फ हमारे कपड़े पसंद नहीं हैं। आपको सिर्फ हमारा नमाज पढ़ने का तरीका पसंद नहीं है। बाकियों पर आपको कोई एतराज नहीं है। ये एक नफरत यहां डाली जा रही है। मैं फिर इस बात पर आता हूं ये वो हिंदुस्तान नहीं है जिसके साथ जम्मू कश्मीर ने समझौता किया था। हमने उस हिंदुस्तान के साथ समझौता किया था जिसमें हर मजहब को बराबरी की नजर से देखा जाता था। हमें ये नहीं कहा गया था कि एक मजहब को ज्यादा एहमियत दी जाएगी और दूसरे मजहब को दबाया जाएगा। हमें ये कहा गया होता तो शायद हमारा फैसला कुछ और होता।
उमर अब्दुल्ला के इस बयान को आप सिर्फ कश्मीर तक सीमित कर के मत देखिए। हम पूछना चाहते हैं कि मसला लाउडस्पीकर या हिजाब नहीं, बल्कि '20%' वाली वो सोच नहीं है, जिसने 1947 में देश के 2 टुकड़े कर दिए थे? अब झारखंड में minority affairs मंत्री हफीजुल हसन का ये बयान सुनिए। उन्होंने कहा कि सबको पता है कि जो हो रहा है, जो सरकार, केंद्र सरकार के द्वारा जो किया जा रहा है। एक धर्म विशेष के साथ, उसमें सबको नुकसान है। अगर हम 20 परसेंट हैं, तो आप 80 परसेंट हैं, 70 परसेंट हैं। लेकिन ज्यादा डिस्टर्ब, अगर मेरे 20 घर बंद होंगे तो आपके 70 घर बंद होंगे। ये चीज सबको समझ में आ गयी है। सुना अब्दुल्ला जी को लाउडस्पीकर में मजहबी आजादी दिखती है। हसन साहब 80% बहुसंख्यक को धमका रहे हैं।
देश की सुप्रीम कोर्ट 2 दशक पहले ही साफ कर चुकी है कि लाउडस्पीकर को धार्मिक स्वतंत्रता के तहत अधिकार नहीं माना जा सकता। योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में लाउडस्पीकर पर नियमों का पालन करवाकर ये साबित भी कर दिया। योगी सरकार के एक्शन पर राजठाकरे ने क्या लिखा है मैं वो भी बता देती हूं। मैं तहे दिल से योगी सरकार को बधाई देता हूं क्योंकि उन्होंने सभी धार्मिक स्थलों खासकर मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटवा दिए। दुर्भाग्य से महाराष्ट्र में कोई योगी नहीं। यहां सिर्फ भोगी हैं। उम्मीद करता हूं और प्रार्थना करता हूं कि सबको ये बात समझ आए। राज ठाकरे ने 3 मई तक महाराष्ट्र में मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने का अल्टीमेटम दिया है।
सवाल पब्लिक का
लाउडस्पीकर हटने से यूपी में मजहब खतरे में नहीं तो महाराष्ट्र में कैसे?
क्या उमर अब्दुल्ला कश्मीर के मुसलमानों को भड़का रहे हैं?
20% के नाम पर अलगाव की सोच कितनी खतरनाक ?