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'कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है, मगर धरती की बेचैनी को, बस बादल समझता है' जैसी लोकप्रिय कविता कहने वाले कवि कुमार विश्वास आज अपना 51वां जन्मदिन मना रहे हैं। कुमार विश्वास लंबे समय से कवि सम्मेलनों और मुशायरों में अपनी छाप छोड़ रहे हैं। वह जब मंच पर आते हैं तो उनके चाहने वालों की बेसब्री देखती ही बनती है। वह अपनी रचनाओं में सत्ता पर तंज कसने से भी गुरेज नहीं करते। कुमार विश्वार की कविताओं में सहजता की डोर होती है, जो श्रोताओं को बांधे रखती है। आइए कुमार विश्वास के जन्मदिन के अवसर पर उनकी कुछ चुनिंदा शायरियों पर नजर डालते हैं, जिन्हें लोग बेहद पसंद करते हैं।
- कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूं, तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है - जबानें मुल्क की बहनें हैं ये पैगाम लाया हूं
मुझे दुगुनी मुहब्बत से सुनो उर्दू जबां वालों
मैं हिंदी मां का बेटा हूं, मैं घर मौसी के आया हूं - मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है
यहां सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आंसू हैं
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है - समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नहीं सकता
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता - भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूबकर सुनते थे सब क़िस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा - सियासत में मेरा खोया या पाया हो नहीं सकता।
सृजन का बीज हूं मिट्टी में जाया हो नहीं सकता - जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल ऐसा इकतारा है
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है - जो धरती से अम्बर जोड़े उसका नाम मोहब्बत है
जो शीशे से पत्थर तोड़े, उसका नाम मोहब्बत है
कतरा कतरा सागर तक तो जाती है हर उम्र मगर
बहता दरिया वापस मोड़े, उसका नाम मोहब्बत है - मांग की सिंदूर रेखा
तुमसे ये पूछेगी कल
यूं मुझे सर पर सजाने
का तुम्हे अधिकार क्या है
तुम कहोगी वो समर्पण
बचपना था तो कहेगी
गर वो सब कुछ बचपना था
तो कहो फिर प्यार क्या है - मेरा जो भी तजुर्बा है, तुम्हें बतला रहा हूं मैं
कोई लब छू गया था तब, अब तक गा रहा हूं मैं
बिछड़ के तुम से अब तक, जिया जाये बिना तड़पे
जो मैं खुद ही नहीं समझा, वही समझा रहा हूं मैं