- 15 अक्टूबर 2020 को बलिया के दुर्जनपुर गांव में गल्ले की दुकान के आवंटन को लेकर एकतरफा चली गोली
- बैरिया से विधायक सुरेंद्र सिंह के करीबी शख्स का नाम आया सामने, समर्थन में खुलकर उतरे एमएलए साहब
- दुर्जनपुर केस में एसडीएम और सीओ पहले ही सस्पेंड,3 इंस्पेक्टर समेत 9 पुलिस वाले निलंबितस सात लोगों की हुई गिरफ्तारी
लखनऊ। तारीख 14 अक्टूबर जगह राजधानी लखनऊ से करीब 425 किमी दूर बलिया जिले का बैरिया इलाका और उसमें एक छोटा सा गांव दुर्जनपुर। शामियाना सजा हुआ था जिसमें तहसील स्तर के आलाअधिकारी भी थे। मामला सरकारी कोटे की दुकान के आवंटन का था जिसके लिए मतदान की प्रक्रिया चल रही थी। मौके पर जो लोग मौजूद थे उनके मुताबिक किसी तरह की अड़चन नहीं थी। लेकिन जो कुछ हुआ उसके बाद यह दलील हर किसी की खारिज हो जाती है कि अड़चन नहीं थी। मौका-ए-वारदात पर 18 से 20 राउंड फायरिंग होती है , जिसमें एक शख्स हाथ से जान धो बैठता है,
तड़ातड़ गोली के बीच अधिकारी हो गए थे फरार
दुर्जनपुर गांव में कुछ दुर्जन कानून को ताख पर रख देते हैं लेकिन जिन अधिकारियों पर कानून के इकबाल को बुलंद करने की जिम्मेदारी थी वो मौके से फरार हो जाते हैं, मामला लखनऊ तक जाता है और कानून व्यवस्था के मोर्चे पर घिरी योगी सरकार तत्काल फैसला करती है जिसमें अधिकारियों को सस्पेंड किया जाता है। लेकिन मामला जब सामने आता है तो वो उस विधायक के बयान और उसका चेहरा सुर्खियों का हिस्सा बनता है जो अक्सर विवादित बयान देता है और जिनका नाम सुरेंद्र सिंह है।
वो आरोपी कानून का उड़ा रहा है माखौल
दुर्जनपुर गांव में जो शख्स कानून का माखौल उड़ाता है वो आज भी फरार है, इनामी भी है, और वीडियो जारी कर अपनी बेगुनाही का सबूत दे रहा है। यह बात अलग है 25 हजार का वो इनामी बदमाश धीरेंद्र सिंह को लाल नीली पट्टी से खौफ लगता है और छिपा हुआ है। दरअसल हिंदी में एक कहावत है कि सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का, इसका अर्थ यह है कि अगर पति ही न्याय देने वाला हो तो डरने की कोई बात नहीं है। यह कहावत दुर्जनपुर गांव में वारदात के लिए कथित तौर पर जिम्मेदार धीरेंद्र सिंह पर सटीक बैठती है।
विधायक जी बताते हैं क्रिया की प्रतिक्रिया
बैरिया से विधायक सुरेंद्र सिंह कहते हैं कि वो क्रिया की प्रतिक्रिया थी, हालात मरने और मारने वाला था भला वो उसके अलावा वो और क्या करता। उसके परिवार के लिए लोग मारे जा रहे थे। ऐसे हालात में उसके पास कोई विकल्प नहीं था। मानो गुनाह के उस देवता को माननीय जनप्रतिनिधि अपने शब्दों के आवरण से बचाने की कोशिश कर रहे थे।
सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का
स्वतंत्र भारत के इतिहास में शायद यह पहला वाक्या होगा जिसमें एक अपराधी खुलेआम प्रशासन को ठेंगे पर रखता है और शासन के मुखिया से वीडियो के जरिए हस्तक्षेप की अपील करता है। इन सबके बीच उस अपराधी का एक और वीडियो सामने आता है जिसमें वो बड़ी शान से थानाध्यक्ष को कहता है सारा नखड़ा झाड़ देंगे। वो विधायक के नाम के जरिए रुआब झाड़ता है। कानून की किताबों में लिखी परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर तामील कर दी गईं हैं। लेकिन उस अपराधी के अंदाज को देखकर साफ समझा और सोचा जा सकता है कि सैंया भए कोतवाल तो डर काहें का।