- अजय कुमार लल्लू की कार्यप्रणाली पर पार्टी सचिव सुनील राय ने उठाए सवाल
- अजय कुमार लल्लू को सवर्ण विरोधी मासिकता वाला बताया
- पिछले 30 साल से कांग्रेस यूपी में सत्ता से बाहर
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस देश के सबसे बड़े सूबों में से एक यूपी से पिछले 30 साल से सत्ता से बाहर है। पार्टी के रणनीतिकार यूपी को अपने हाथ में करने की तरह तरह की कवायदों को जमीन पर उतारने की बात करते हैं लेकिन नतीजा सिफर रहा है। यूपी को फतह करने का अर्थ यह है कि कोई भी राजनीतिक दल दिल्ली का सपना देख सकती है। लेकिन कांग्रेस में जिस तरह से सिरफुटौव्वल है उसे देख राजनीति के जानकार कहते हैं कि अभी कांग्रेस का हश्र और कितना खराब होगा कहना मुश्किल है। ताजा मामला प्रदेश कांग्रेस के सचिव सुनील राय का वो बयान है जिसमें वो पार्टी की गति के लिए अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू की मानसिकता को जिम्मेदार बताते हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश अध्यक्ष की सवर्ण विरोधी मानसिकता की वजह से पार्टी की दशा और दिशा दोनों खराब हो रही है।
प्रदेश सचिव ने अध्यक्ष पर उठाए सवाल
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि अजय कुमार लल्लू ना सिर्फ सवर्णों के विरोधी हैं बल्कि वो उनकी हत्या भी कराना चाहते हैं। इसके साथ उन्होंने कहा कि अजय कुमार समाज के हर तबके को एक सात लेकर चलने में सक्षम नहीं है। उनके व्यवहार की वजह से तमाम कांग्रेसी पार्टी से दूर होते गए। वो कहते हैं कि इस समय जब पार्टी मुश्किल दौर से गुजर रही है तो कमान एक ऐसे शख्स के हाथ में जो सवर्ण विरोधी है, वो सिर्फ फोटो सेशन तक सीमित हैं। इसके अलावा उन्होंने एक प्रसंग का जिक्र किया कि कैसे एक पोस्टर में प्रियंका गांधी के साथ अजय कुमार का फोटो नहीं था उसे लगने नहीं दिया। लेकिन सवाल यह है कि सवर्ण विरोधी राग का जिक्र करने से कांग्रेस को यूपी में कितना नुकसान होगा।
क्या कहते हैं जानकार
अब इस विषय पर जानकारों का क्या कहना है। दरअसल कांग्रेस को अगड़ों की पार्टी माना जाता था। अगड़ों के साथ साथ दलित समाज और अल्पसंख्यक समाज की मदद से कांग्रेस यूपी में राज कर रही थी। लेकिन 90 के दशक में जब यूपी की सियासत में राम मंदिर और मंडल कमीशन ने दस्तक दी तो सबसे अधिक चोट कांग्रेस को पहुंची। राज्य में अलग अलग क्षत्रपों का उभार हो रहा था और वो खास जाति के नायक माने जाने लगे। इसके साथ ही राम मंदिर के विषय पर जब भावनाओं का वेग अपने चरम पर पहुंचा तो एक तरफ सवर्ण जातियां भी कांग्रेस से छिटक गईं।
अगर देखा जाए तो बीते 30 वर्षों में कांग्रेस की तरफ से यूपी में जमीन पर मेहनत कम हुई और उसका नतीजा चुनाव परिणामों में दिखाई देता है। लेकिन बात यह सच है कि अगर दिल्ली की सियासत पर फिर काबिज होना है तो यूपी को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है और इस सोच के साथ 2019 के आम चुनाव से पहले कांग्रेस ने प्रियंका गांधी के तौर तुरुप का पत्ता खेला। लेकिन उसका कोई खास फायदा नहीं मिला। इन सबके बीच सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक धारणा बनी कि वो ब्राह्मणों के खिलाफ उसे भुनाने के लिए कांग्रेस की तरफ से समय समय पर आवाज बुलंद की जाती है। लेकिन जिस तरह से पार्टी के एक पदाधिकारी ने सवर्णों के विषय पर अपने ही प्रदेश अध्यक्ष पर हमला बोला है वो पार्टी के लिए चिंता वाली बात होगी।