- भारत में सांपों की करीब 275 प्रजातियां निवास करती हैं
- गांव सौसीरखेड़ा में सपेरों के परिवार के करीब 200 से अधिक लोग बसते हैं
- गांव में सांप लोगों की जिंदगी में एक अहम किरदार निभाते हैं
Lucknow News: सांप का नाम सुनते ही दिमाग में एक खौफनाक तस्वीर उभर जाती है। इनके नाम ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भारत में सांपों की करीब 275 प्रजातियां निवास करती हैं, जो किसी अन्य रेंगने वाली प्रजाति की तुलना में सबसे अधिक है। देश के किसी भी इलाके में निकल जाएं, आपको सांपों की कई प्रजातियां मिलेंगी जो नदियों से लेकर रेगिस्तान और पहाड़ों में बसती हैं।
राजधानी लखनऊ की सरहद में एक ऐसा अनूठा गांव है, जहां सांप लोगों की जिंदगी में एक अहम किरदार निभाते हैं। ग्रामीण इस जगह पर सांपों से डरने की बजाय उनके साथ रहते हैं। यहां के वाशिंदे सांपों को मारते या भगाते नहीं बल्कि लोग उनके साथ रहते हैं और उनकी पूजा करते हैं। यह अचरज से भरा गांव है सौसीरखेड़ा। जहां सांपों के संरक्षण व संवर्धन की इनक्रेडिबल मिसाल है। इस गांव के लोग सांपों की पूजा करते हैं। इसमें सबसे खास बात तो यह है कि, सांपों के कारण यहां लोगों के घरों में चूल्हे जलते हैं या यूं कहें तो सांप गांव की इकॉनोमी का जरिया हैं।
सांपों को मारने की बजाय रेस्कयू करते हैं
मोहनलालगंज से महज कुछ किमी के फासले पर सरोजिनी नगर इलाके में स्थित गांव सौसीरखेड़ा में सपेरों के परिवार के करीब 200 से अधिक लोग बसते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि, गांव की परंपरा के मुताबिक हर घर के मुखिया की सांप पकड़ने की जिम्मेदारी होती है। यही वजह है कि, हर घर में जहरीले सांप खिलौनों के जैसे सजे रहते हैं। आंगन में फूफकारते हुए बेखौफ घूमते हैं। ग्रामीण वनोषधियों के जरिए सर्पदंश का उपचार भी करते हैं। घरों में सांप निकलने की सूचना पर उन्हें पकड़कर रेसकयू कर सुरक्षित जंगलों में ले जाकर छोड़ देते हैं। यही वजह है कि, कई गांवों व शहरों के लोग सांपों को पकड़ने के लिए इन्हें बुलाते हैं। आपको बता दें कि, सपेरे परिवार के लोग पुरातन मान्यताओं के चलते पीपल या बरगद में रहने वाले सांप को हाथ नहीं लगाते। घरों से सांप को पकड़ने के दो से तीन दिन के भीतर जंगल में छोड़ देते हैं। अगर सांप ने किसी को डसा है तो ऐसे सांप को एक महीने भर पकड़ कर रखने के बाद छोड़ते हैं।