मेरठ : कहते हैं कि हौसले की उड़ान कोई नहीं रोक सकता। माफिया भी नहीं। 2007 बैच के पीसीएस अधिकारी रिंकू सिंह राही ने इसे चरितार्थ कर दिखाया है। साल 2009 में रिंकू सिंह ने 100 करोड़ रुपए का स्कॉलरशिप स्कैम उजागर कर माफिया से दुश्मनी मोल ली। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले इस अफसर को सात गोलियां मारी गईं। इस हमले में उन्हें अपनी एक आंख खोनी पड़ी और चेहरा काफी बिगड़ गया। उन्हें सुनने में भी दिक्कत होने लगी। बावजूद इसके राही के इरादे कमजोर नहीं हुए। उन्होंने यूपीएससी की अपनी तैयारी जारी रखी। इस बार उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली है और उन्हें 683वीं रैक मिली है।
घोटाला जब उजागर किया तो 26 साल के थे रिंकू
साल 2008 में राही की नियुक्ति मुजफ्फरनगर में समाज कल्याण अधिकारी के पद पर हुई। इसी दौरान उन्होंने घोटाले के रैकेट का पर्दाफाश किया। माफिया ने पीसीएस अधिकारी पर हमला करने के लिए आठ लोगों को भेजा था। इनमें से चार आरोपियों को 10 साल की सजा हुई। राही ने जब घोटाला उजागर किया था तो वह 26 साल के थे।
'मेरी छुट्टियों को अभी तक मंजूरी नहीं मिली'
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक अब 40 साल के हो चुके राही ने कहा, 'जब मुझे परेशान किया जा रहा था तो उस समय मैं व्यवस्था से नहीं लड़ रहा था बल्कि व्यवस्था मुझसे लड़ रही थी। मैं अस्पताल में चार महीनों तक रहा। मेडिकल पर मेरी छुट्टियों को अभी तक मंजूरी नहीं मिली है।' राही ने बताया कि मायावती के कार्यकाल के दौरान उन पर हमला हुआ। उन्होंने कहा, 'भाष्ट्राचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए मुझे समाजवादी पार्टी की सरकार में मनोरोगियों के वार्ड तक भेजा गया। यूपी में सरकार चाहे जिसकी रही हो, मेरी प्रताड़ना कम नहीं हुई।'
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फिर मैंने प्रशासनिक अधिकारी बनने का फैसला किया
राही ने आगे कहा, 'जब मैं 10 साल का था तो मेरी दादा का निधन हो गया। मेरी दादी को घर से बाहर निकाल दिया गया। उन्हें अपनी आजीविका चलाने के लिए दूसरे के घरों में बर्तन साफ करने पड़े। मेरे पिता पढ़ाई में अच्छे थे लेकिन परिवार की देखभाल करने के लिए उन्हें बीच में अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। मैं सोचता था कि यदि सरकारी अधिकारी यदि ईमानदार होते तो हमें कई योजनाओं का लाभ मिला होता। ये सारी बातें मुझे परेशान कीं और फिर मैंने प्रशासनिक अधिकारी बनने का फैसला किया।'