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Mumbai Crime News: आठ साल की मासूम के साथ हैवानियत करने वाले को कोर्ट ने सुनाई सजा-ए-मौत, जानें पूरा मामला

Updated Jun 03, 2022 | 18:39 IST

Rape Case In Mumbai: मुंबई की एक अदालत ने एक दुष्कर्म और हत्या के आरोपी को मौत की सजा सुनाई है। आरोपी पहले भी रेप के मामले में सजा काट चुका है। अदालत ने ऐसे लोगों से समाज को खतरा बताते हुए मौत की सजा मुकर्रर की है।

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तस्वीर साभार:&nbspANI
मुंबई में मासूम से दुष्कर्म के आरोपी को मौत की सजा (प्रतीकात्मक तस्वीर)
मुख्य बातें
  • 2019 में नौ साल की बच्ची का अपहरण करने बाद बलात्कार और हत्या
  • बच्ची का शव कुछ दिनों बाद घर से दूर सेफ्टी टैंक में मिला था
  • दोषी को 2013 के एक मामले में हो चुकी थी सजा, जेल से छूटने के बाद किया घिनौना कृत्य

Mumbai Crime News: जब अपराधी अपराध की सारी सीमाएं पार कर जाता है, तो वह समाज के लिए बड़ा खतरा बन जाता है। इसलिए उसे इस समाज में रहने का अधिकार नहीं होता। उपरोक्त बातें मुंबई की विशेष लोक अदालत के जज ने एक मामले में मौत की सजा सुनाते समय कहीं। मामला 2019 का है। एक नौ साल की बच्ची के साथ दरिंदे ने अपहरण करके बलात्कार किया और उसके बाद मासूम को मार डाला था। कोर्ट ने इसी मामले में आरोपी को सजा-ए-मौत दी है।

जानकारी के लिए बता दें विशेष पॉक्सो न्यायाधीश एचसी शेंडे ने मंगलवार को आरोपी वाडिवेल उर्फ ​​गुंडप्पा चिन्ना तांबी देवेंद्र को दोषी पाया था, जिसके बाद मामले में सजा की अवधि के निर्धारण के लिए कार्रवाई स्थगित कर दी गई थी। विशेष न्यायाधीश ने शुक्रवार को इस मामले में सजा सुनाई।

पुराने मामले में सात साल की सजा काट चुका है दोषी

आरोपी के बचाव पक्ष के वकील सुनंदा नंदेवर ने कहा कि यह मामला 'दुर्लभ से दुर्लभतम' श्रेणी में नहीं आता है। उन्होंने कहा कि मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है। जानकारी के लिए बता दें नौ साल की बच्ची का शव अपराध के कुछ दिनों बाद उसके घर से दूर एक सार्वजनिक शौचालय के सेप्टिक टैंक से बरामद किया गया था। आरोपी को पहले 2013 में एक और नौ साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न के लिए दोषी ठहराया गया था और सात साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी।

ऐसे आरोपी समाज के लिए खतरा

पिछले मामले का उल्लेख करते हुए माननीय न्यायाधीश ने कहा कि "पॉक्सो के तहत इसी तरह का अपराध उसी इलाके की पीड़िता के साथ किया गया था। इसलिए, वह समाज के लिए खतरा है। ऐसे मामलों में मौत की सजा ही न्यायसंगत होगी। माननीय न्यायाधीश ने आगे फैसला सुनाते हुए कहा कि जेल से उसकी समयपूर्व रिहाई के परिणामस्वरूप यह अपराध हुआ, उसे कानून और सजा का कोई सम्मान नहीं है, इससे यह भी पता चलता है कि उसके लिए कोई सुधारवादी सिद्धांत उपलब्ध नहीं है। पिछले मामले में आरोपी को सात साल के लिए दोषी ठहराया गया लेकिन किसी योजना के तहत पांच साल में रिहा कर दिया गया। उसने आठ महीने के भीतर दूसरा कृत्य किया। आरोपी को कानून का न डर है न ही उसकी नजर में सम्मान है। इसलिए मौत की सजा ही उपयुक्त है।

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