- STAT योजना में 2023-24 तक 15 MMTPA के उत्पादन लक्ष्य के साथ 5000 सीबीजी प्लांट स्थापित करने की योजना है।
- सरकार का दावा देश में इस समय 70 फीसदी सॉलिड वेस्ट को प्रोसेस्ड किया जा रहा है।
- STAT में नगरपालिका के कचरे को कम करने और एक टिकाऊ तरीके से क्लीन एनर्जी का उत्पादन करने का लक्ष्य रखा गया है।
नई दिल्ली। अगर सब सही रहा तो देश को कचरे की समस्या से बड़े पैमाने पर निजात की राह दिख सकती है। इस दिशा में आज इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड (IGL)और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (SDMC)ने एक अहम समझौता किया है। इसके तहत अपशिष्ट (वेस्ट) से ऊर्जा बनाने वाला प्लांट स्थापित किया जाएगा। नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट (Solid Waste) को वाहनों के ईंधन के रूप में उपयोग के लिए कंम्प्रेस्ड बायो-गैस (सीबीजी) में परिवर्तित किया जा सकेगा। और उनके उपयोग से CNG वाहन चल सकेंगे।
हर रोज 4000 किलोग्राम सीबीजी का उत्पादन
इस प्लांट से प्रति दिन 4000 किग्रा सीबीजी का उत्पादन होने की उम्मीद है। एसडीएमसी, बायोगैस संयंत्र और सीबीजी स्टेशन की स्थापना के लिए आईजीएल को हस्तसाल में जमीन प्रदान करेगा। इसके अलावा प्रस्तावित सीबीजी संयंत्र को चलाने के लिए एसडीएमसी, आईजीएल को अलग किए गए बायोडिग्रेडेबल कचरे (लगभग 100 टीपीडी) की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करेगा।
5000 सीबीसी प्लांट का लक्ष्य
सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टुवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन (एसएटीएटी) योजना में 2023-24 तक 15 एमएमटीपीए के उत्पादन लक्ष्य के साथ 5000 सीबीजी प्लांट स्थापित करने की सरकार की योजना है। इस योजना के तहत म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट को इनपुट के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। इसके जरिए नगरपालिका के कचरे को कम करने और दूसरी ओर एक टिकाऊ तरीके से क्लीन एनर्जी का उत्पादन करने का लक्ष्य रखा गया है।
सॉलिड वेस्ट बड़ी समस्या
सॉलिड वेस्ट देश में एक बड़ी समस्या है, सरकार के अनुसार साल 2014 में केवल 14% सॉलिड वेस्ट को प्रोसेस्ड किया गया था, हालांकि अभी यह 70 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया है। सरकार को उम्मीद है कि सॉलिड वेस्ट से एनर्जी तैयार करने का यह समझौता, दूसरे शहरों के लिए नजीर बन सकता है। यह समझौता विभिन्न अपशिष्ट (वेस्ट) और बायोमास स्रोतों से सीबीजी के उत्पादन के लिए देश में एक इकोसिस्टम विकसित करने की दिशा में एक अहम कदम बन सकता है। साथ ही इसके जरिए प्राकृतिक गैस के आयात में कमी, ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी, कृषि अवशेषों को जलाने में कमी, किसानों की आय में बढ़ोतरी, रोजगार के नए अवसर भी पैदा हो सकते हैं।