- भारत में 1931 में हुई थी जातीय जनगणना
- 2021 की जनगणना में जाति आधारित गणना की मांग
- सदन को केंद्र सरकार ने जानकारी दी है कि जातीय जनगणना का विचार नहीं
जातीय जनगणना के मुद्दे पर बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने पीएम नरेंद्र मोदी को खत लिखा है और उन्होंने मांग की है पीएम को इस संबंध में फैसला लेना चाहिए। खत के जरिए उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी से एक तरफ मांग की तो दूसरी तरफ सियासी निशाना भी साधा। तेजस्वी यादव कहते हैं कि सीएम नीतीश कुमार ने विपक्ष के नेताओं को भरोसा दिया है कि इस विषय पर वो पीएम के साथ बैठक करेंगे। इस संबंध में बिहार के सीएम ने पीएम को चार अगस्त को खत लिखकर समय मांगा था लेकिन मुलाकात के लिए समय नहीं मिला है। यदि पिछले एक हफ्ते में अगर मुलाकात के लिए समय नहीं मिला है तो यह सीएम का अपमान है।
तेजस्वी यादव के खत में क्या है
तेजस्वी यादव अपने खत में लिखते हैं कि आज समय की मांग है कि जब इस विषय पर सरकार कोई सार्थक निर्णय ले। इसके साथ ही उन्होंने बिहार विधानसभा में 18 फरवरी 2019 और 27 फरवरी 2020 के उस पारित प्रस्ताव का जिक्र किया है जिसमें जातीय जनगणना कराए जाने पर सहमति बनी थी। वो कहते हैं कि आज जब बिहार और केंद्र दोनों जगह एनडीए की सरकार है तो किसी तरह की अड़चन नहीं आनी चाहिए। इसके अलावा वो 2019 में तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह के उस वादे का जिक्र करते हैं जिसमें उन्होंने जातीय जनगणना पर सहमति जताई थी।
जेडीयू का जवाब
नीतीश सरकार में मंत्री अशोक चौधरी ने तेजस्वी यादव के खत पर जवाब दिया है। उनका कहना है कि मुलाकात के लिए पीएम मोदी को जो खत लिखा गया है उसके जवाब का इंतजार कर रहे हैं। जातीय जनगणना पर जेडीयू का नजरिया साफ है, भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा अलग है जिससे हमारा लेना देना नहीं है। जेडीयू अपनी विचारधारा पर चट्टान की तरह अडिग है।
क्या कहते हैं जानकार
अब सवाल यह है कि बिहार विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव में बीजेपी भी हिस्सेदार थी या 2019 में तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आश्वासन दिया था तो केंद्र सरकार के सामने परेशानी क्या है। इस संबंध में जानकार कहते हैं कि इसे सियासी तौर पर समझना होगा। दरअसल बात सिर्फ जातीय जनगणना की नहीं है सवाल यह है कि जब जातीय जनगणना के आंकड़े आएंगे तो सरकार को नए सिरे से आरक्षण की सीमा को परिभाषित करना होगा। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि दरअसल अगले साल यूपी समेत कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं लिहाजा इस तरह की मांग के जरिए दबाव बनाने की कोशिश है। अगर बात जातीय जनगणना की है तो मांग कर रहे दल 2011 के आंकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग क्यों नहीं कर रहे हैं।