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Chirag Paswan: क्या चिराग पासवान रह जाएंगे अकेले, बीजेपी भी सीटों के मुद्दे पर ज्यादा झुकने को तैयार नहीं !

Updated Sep 24, 2020 | 12:27 IST

एनडीए के घटक दल एक तरफ एका का दावा करते हैं। लेकिन एलजेपी का सीटों के मुद्दे पर हमलावर रुख बरकरार है। बताया जा रहा है कि बीजेपी भी चिराग पासवान की मांग से उस हद तक सहमत नहीं है।

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चिराग पासवान, एलजेपी
मुख्य बातें
  • चिराग पासवान इस समय नीतीश कुमार से खफा हैं, सीटों के बंटवारे पर है मनमुटाव
  • सार्वजनिक तौर पर नीतीश कुमार की नीतियों को चिराग पासवान करते हैं आलोचना
  • बिहार विधानसभा चुनाव में एलजेपी की तरफ से 143 सीटों की डिमांड

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान अभी नहीं हुआ है। लेकिन राजनीतिक समीकरणों के जरिए एक दूसरे को पटखनी देने की कोशिश की जा रही है। एनडीए के घटक दलों में से एक एलजेपी को जेडीयू का रुख अच्छा नहीं लगता है। उसके नेता चिराग पासवान अक्सर नीतीश कुमार की खामियों को गिनाते हैं। लेकिन बीजेपी से चिराग को उम्मीद है यह बात अलग है कि बीजेपी की तरफ से सीटों को लेकर जो पेशकश की जा रही है वो चिराग की आशा पर वज्र गिरने जैसा होगा। 

क्या एलजेपी को मिलेगी महज 25 सीट ?
बताया जा रहा है कि बीजेपी भी महज 25 सीटें देने का मन बना रही है जबकि एलजेपी 143 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारना चाहती है। दरअसल एलजेपी और जेडीयू के बीच खटपट भी सीटों को लेकर हुई। लेकिन बिहार के मतदाताओं में गलत संजेश न जाए इस वजह से चिराग पासवान ने नीतीश कुमार को निशाने पर लेना शुरू कर दिया। यह भी कहा जा रहा है कि एलजेपी और बीजेपी के शीर्ष नेताओं से इस विषय पर बैठक भी हुई है हालांकि अभी तक किसी तरह का आधिकारिक बयान नहीं आया है। 

क्या 2005 के रास्ते पर चलेंगे चिराग पासवान ?
सवाल यह है कि क्या चिराग पासवान खुद चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बनेंगे। इस संबंध में उन्होंने कहा था कि राज्य की राजनीति में उतरने के बारे में उन्होंने सोचा नहीं है। लेकिन एलजेपी की जीत सुनिश्चित हो ताकि एनडीए की सरकार एक बार फिर बने उसके लिए कोशिश जारी रहेगी। जानकारों का कहना है कि जीतनराम मांझी के एनडीए में शामिल होने के बाद एलजेपी को लग रहा है कि उसे कम महत्व मिल रहा है। इसके साथ चुनावी विश्लेषक बताते हैं कि ऐसा हो सकता है कि 2005 की तरह एलजेपी इस चुनाव में आगे बढ़े। 2005 के विधानसभा चुनाव में राम विलास पासवान ने दलित, मुस्लिम, और अगड़ी जातियों में खासतौर से भूमिहारों को लेकर समीकरण बनाया और उसका फायदा उन्हें मिला था। एलजेपी के खाते में 29 सीटें आई थीं।  

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