- बिहार में पहले चरण में 71 सीटों पर मतदान
- 2015 के चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी
- 2015 के चुनाव में आरजेडी और जेडीयू मिलकर लड़े थे चुनाव
पटना। पाटलिपुत्र की गद्दी पर अगले पांच साल तक कौन विराजमान होगा उसका फैसला 10नवंबर को ईवीएम कर देगी। तीन चरणों के चुनाव में पहले चरण की परीक्षा 28 अक्टूबर को हो रही है जिसमें 71 सीटों पर मतदान हो रहा है। दिलचस्प बात यह है कि सभी दल अपने अपने पक्ष में दावे कर रहे हैं। इन सबके बीच यह समझना जरूरी है जिन 71 सीटों पर मतदान हो रहा है आज से ठीक पांच साल पहले यानि 2015 के चुनाव में स्थिति क्या थी। कौन सा दल इन 16 जिलों की 71 सीटों पर कामयाब रहा।
2015 में आरजेडी को मिली थी कामयाबी
पहले चरण में 16 जिलों में भागलपुर, बांका, मुंगेर, लखीसराय, शेखपुरा, पटना, भोजपुर, बक्सर, सासाराम, कैमूर, अरवल, जहानाबाद, औरंगाबाद, गया, नवादा और जमुई की सीटें हैं। इनमें 25 सीटों पर राजद का कब्जा है जबकि, दूसरे नंबर पर जदयू है, जिसके 21 विधायक हैं। भाजपा तीसरे नंबर पर है, उसके 14 सीटों पर विधायक हैं जबकि, कांग्रेस आठ सीटों पर, हम एक, निर्दलीय एक और भाकपा की एक सीट पर कब्जा है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि 2015 में ज्यादातर सीटों पर आरजेडी का ही कब्जा रहा। इसका मतलब यह है कि इस बार की परीक्षा में खरा उतरने की चुनौती सबसे ज्यादा आरजेडी के सामने है।
2015 में तस्वीर अलग थी
अब सवाल यह है कि क्या आरजेडी उतनी सीटें जीत पायेगी या उसकी लहर में सभी साफ हो जाएंगे, हालांकि इस सवाल का जवाब मतदाताओं को देना है।लेकिन जानकार बताते हैं कि 2015 की सूरत और आज के सामाजिक समीकरण में फर्क है। 2015 के चुनाव के समय जेडीयू और आरजेडी मिलकर चुनाव लड़े थे और सामाजिक गोलबंदी का फायदा दोनों दलों को मिला। सबसे बड़ी बात यह है कि उस समय आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का आरक्षण पर दिया बयान इन दलों के पक्ष में गया।