- महिलाओं के लिव-इन में रहने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी
- महिलाओं को लिव-इन में रहने से नहीं रोक सकते, शामली का है मामला
- समाज नैतिक आधार का हवाला देकर रोक नहीं लगा सकता
प्रयागराज। क्या महिलाओं को लिव-इन में रहने का अधिकार नहीं है, क्या समाज को इस तरह से रहने के तरीके पर ऐतराज होना चाहिए। दरअसल यह सवाल इसलिए उठा क्योंकि शामली में कुछ लोगों ने आपत्ति इस बात पर उठाई की आखिर दो महिलाएं लिव-इन में कैसे रह सकती हैं।अब इस संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट टिप्पणी की है।
लिव-इन में रह सकती हैं महिलाएं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें दो महिलाओं को लिव-इन में रहने पर आपत्ति जताई गई थी। बता दें कि दोनों महिलाएं यूपी के शामली में लिव-इन में रह रही हैं। अदालत ने कहा कि नागरिकों पर संवैधानिक अधिकार लागू करना ड्यूटी है और यह समाज का नैतिक अधिकार नहीं है। इसके साथ हाईकोर्ट ने शामली पुलिस को निर्देश दिया है कि वो दोनों महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करे।
कोर्ट का समय भी होता है जाया
अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि आजकल प्रचलन में आ गया है कि कुछ लोग निहित फायदे या लाइमलाइट में आने के लिए याचिकाएं लगाते हैं और कोर्ट का समय भी जाया करते हैं। जहां तक महिलाओं के अधिकारों का सवाल है संविधान पुरुषों की तरह ही बराबरी का अधिकार देता है। अदालती फैसलों पर सामाजिक बाध्यताएं नहीं लागू होती हैं, जहां तक इस महिलाओं के लिव-इन में रहने का सवाल है कि वो सिर्फ और सिर्फ संवैधानिक आधार है।