नई दिल्ली: 'मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।' हौसले की यही उड़ान जल्द भारत अंतरिक्ष की ओर भरने जा रहा है और अपने सपनों को अंजाम देने की दिशा में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। दिसंबर 2021 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भारत के अंतरिक्षयात्रियों को स्पेस में भेजने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है।
इसके लिए 4 हजार किलोमीटर दूर रूस में अंतरिक्ष यात्री के तौर पर भारतीय वायुसेना के 4 पायलटों की ट्रेनिंग रूस में चल रही है, हालांकि देश के इस सपने की खातिर ये भावी अंतरिक्ष यात्री बेहद कड़ी ट्रेनिंग से होकर गुजर रहे हैं। भारत के भावी अंतरिक्ष वीरों के सामने एक मुश्किल नहीं बल्कि चुनौतियों का अंबार लगा हुआ है। जिस ट्रेनिंग को पूरा करने के लिए रूसी अंतरिक्ष यात्री 5 साल का समय देते हैं उसे भारतीय अंतरिक्ष यात्री महज एक साल में पूरा करने में जुटे हैं।
(सभी तस्वीरें- साभार Russia Today)
मुश्किलें सिर्फ ट्रेनिंग की नहीं हैं बल्कि वायुसेना पायलटों के सामने ट्रेनिंग के लिए रूसी भाषा सीखने और खाने से जुड़ी कई अन्य परेशानियों का भी सामना करना पड़ रहा है। यहां तक कि बेहद सर्द और अलग अलग तरह के वातावरण में देश की शान के लिए चार लोग अपनी जान तक दांव पर लगा रहे हैं। रूसी न्यूज एजेंसी रसिया टुडे (RT) की रिपोर्ट के हवाले से यह जानकारी सामने आई है। आइए एक नजर डालते हैं रूस में कैसे तैयार हो रहे हैं इसरो के अंतरिक्ष यात्री।
कड़ाके की सर्दी, जंगल और समुद्र में बिता रहे दिन: भारतीय अंतरिक्षयात्रियों को रूस के गैगरिन रिसर्च ऐंड टेस्ट कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में अंतरिक्ष अभियान के लिए तैयार किया जा रहा है। यहीं पर भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने भी ट्रेनिंग ली थी। ट्रेनिंग के दौरान अलग अलग तरह के वातावरण और परिस्थितियों में रखा जा रहा है।
वैसे भी रूस में भारत से कहीं ज्यादा सर्दी होती है और इस बीच भारतीय वायुसेना के पायलटों को वर्फ से ढके जंगलों में अकेंले या दो लोगों के ग्रुप में छोड़ा जा रहा है ताकि उन्हें कठिन परिस्थियों में अकेले रहने का अभ्यास हो। साथ ही उन्हें रूस में तीन दिन और दो रात तक खुद से कम खाने पर जिंदा रहने की ट्रेनिंग दी जा रही है। साथ ही उन्हें समुद्र में रखकर भी कठिन परिस्थितियों की ट्रेनिंग दी जाएगी। जाहिर तौर पर अंतरिक्ष यात्रियों की ट्रेनिंग ऐसी परिस्थिति में हो रही है जहां उनकी जान तक दांव पर लग रही है।
खाने और भाषा की परेशानी: भारतीय अधिकारियों के साथ समन्वय करते हुए रूस में इसरो के अंतरिक्षयात्रियों की ट्रेनिंग बेहद गोपनीय तौर पर चल रही है। यहां रूसी भाषा में ही ट्रेनिंग देने का नियम है और जिन उपकरणों के साथ ट्रेनिंग दी जाती है उन पर भी रूसी भाषा ही लिखी है, इसके लिए वायुसेना के पायलटों को रूसी भाषा सीखनी पड़ रही है। यहां भारतीय खाना नहीं मिलने की भी परेशानी है, भारत के अधिकारियों और अंतरिक्षयात्रियों को रूसी खाना खाना पड़ रहा है। हालांकि भारतीय खाने की व्यवस्था के भी प्रयास हो रहे हैं और भारत की मान्यताओं को देखते हुए बीफ खाने से हटाकर शाकाहारी खाना दिया जा रहा है।
सोयूज अंतरिक्षयान से हो रहे वाकिफ: रूस जिस यान का इस्तेमाल अपने अंतरिक्षयात्रियों को भेजने में करता है भारत के एस्ट्रोनॉट भी उससे वाकिफ हो रहे हैं और उसे संचालित करने संबंधी सभी पहलुओं की ट्रेनिंग ले रहे हैं। गगनयान भी काफी हद तक रूसी सोयुजयान से मिलता जुलता होगा। ट्रेनिंग के बाद इसे संचालित करने में एस्ट्रोनॉट को आसानी होगी।
डटकर ट्रेनिंग कर रहे वायुसेना के वीर: ट्रेनिंग में शामिल रूसी अधिकारियों को भरोसा है कि एक साल में सफलतापूर्वक भारत के अंतरिक्षयात्री अभ्यास पूरा कर लेंगे। वायुसेना पहले ही अपने पायलटों को ट्रेनिंग देकर काफी सहनशील और जुझारू बनाती है। इस वजह से ट्रेनिंग में आम अंतरिक्षयात्रियों के मुकाबले आसानी भी हो रही है।
7 दिन, 10 हजार करोड़ का मिशन- गगनायान: इसरो दिसंबर 2021 या 2022 की शुरुआत के दौरान इस मिशन को लॉन्च करने वाला है। इसके लिए भारत के बाहुबली रॉकेट जीएसएलवी मार्क- 3 का इस्तेमाल होगा। भारत के अंतरिक्ष यात्री 7 दिन तक अंतरिक्ष में रहेंगे। मिशन की सफलता के साथ अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने वाला भारत चौथा देश होगा। इसके लिए भारत सरकार ने 10 हजार करोड़ की राशि आवंटित की है। गगनयान में 4 अंतरिक्षयात्रियों का क्रू जाएगा। इससे पहले 2020 और 2021 में परीक्षण के लिए दो मानवरहित मिशन भी भेजे जाएंगे।