- कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच रिसर्च में चौंकाने वाला दावा किया गया है
- रिसर्च के मुताबिक, कोरोना संक्रमण से फिलहाल निजाता मिलने की उम्मीद नहीं है
- इसमें यह भी कहा गया है कि आने वाली बारिश व सर्दी में यह और बढ़ सकता है
नई दिल्ली : दुनियाभर में कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच एक रिसर्च में चौंकाने वाला दावा किया गया है। इसके मुताबिक, कोरोना संक्रमण से फिलहाल निजाता मिलने की उम्मीद नहीं है, बल्कि आने वाले बारिश के मौसम और सर्दी में यह तीन गुना अधिक तेजी के साथ बढ़ सकता है। रिसर्च में यह दावा भी किया गया है कि हालांकि संक्रमण से बचने के लिए लोगों को एक-दूसरे से तकरीबन 6 फुट की दूरी बरतने को कहा जा रहा है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, क्योंकि छींकने या खांसने से यह जानलेवा वायरस करीब 20 फुट की दूरी तक जा सकता है।
20 फुट तक जा सकता है वायरस
यह शोध अमेरिका के सांता बारबरा स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने किया है, जिसमें कहा गया है कि कोरोना वायरस सर्दी और नमी वाले मौसम में तीन गुना अधिक फैल सकता है। रिसर्चर्स ने विभिन्न वातावरण की परिस्थितियों के अनुसार खांसने, छींकने और सांस छोड़ने के दौरान निकलने वाले संक्रामक ड्रॉप्स के फैलने के आधार पर यह दावा किया है। उनका कहना है कि छींकने या खांसने के दौरान निकलने वाले संक्रामक ड्रॉप्स वायरस को 20 फुट की दूरी तक ले जा सकते हैं। ऐसे में संक्रमण से बचाव के लिए 6 फुट की सोशल डिस्टेंसिंग का नियम पर्याप्त नहीं है।
छींकने, खांसने से निकलने वाले ड्रॉप्स खतरनाक
शोधकर्ताओं ने पिछले शोध के आधार पर बताया है कि छींकने, खांसने और यहां तक कि सामान्य बातचीत के दौरान भी लगभग 40,000 ड्रॉप्स निकल सकते हैं, जो प्रति सेकंड में कुछ मीटर से लेकर कुछ 100 मीटर तक दूर तक जा सकते हैं। इन ड्रॉप्स के माध्यम से वायरस कितनी तेजी से बढ़ता है, इसका निर्धारण ड्रॉप्स की गति, वातावरण और उसमें वायरस के नेचर में आने वाले बदलाव पर निर्भर करता है।
सूक्ष्म कणों के जरिये हवा में घंटों रह सकता है वायरस
वैज्ञानिकों का कहना है कि खांसने या छींकने के दौरान जो ड्रॉप्स निकलते हैं, उनमें से कुछ हल्की होती हैं, जबकि कुछ अपेक्षाकृत बड़ी व भारी होती हैं। बड़ी बूंदें गुरुत्वाकर्षण के कारण अमूमन किसी चीज पर जम जाती हैं, जबकि छोटी बूंदें तेजी से वाष्पित हो जाती हैं। ये कण घंटों हवा में घूमते रहते हैं और अपने साथ वायरस का वहन करने में सक्षम होते हैं। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति इनके संपर्क में आता है तो वह संक्रमित हो सकता है।
वायरस का संचरण मौसम पर निर्भर
वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि खांसने या छींकने के दौरान निकलने वाले ड्रॉप्स किस दूरी तक जा सकते हैं, यह काफी हद तक मौसम पर निर्भर करता है। उनके मुताबिक, ठंडे व आर्द्र मौसम में छींकने या खांसने के दौरान निकलने वाले ड्रॉप्स जहां तकरीबन 20 फुट की दूरी तक जा सकते हैं, वहीं गर्म व शुष्क मौसम में ये ड्रॉप्स तेजी से वाष्पित होकर एरोसोल कणों में बदल जाते हैं। ये लंबे समय तक हवा में मौजूद रहते हैं और लंबी दूरी तक संक्रमण फैलाने में सक्षम होते हैं। ये छोटे कण फेफड़ों में अंदर भी जा सकते हैं, जिससे तकलीफ बढ़ जाती है। मास्क लगाकर इस तरह के एरोसोल कणों के जरिये फैलने वाले वायरस से काफी हद तक बचा जा सकता है।