- बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स 2022
- सीमा पूनिया मेडल नहीं जीत सकीं
- वह अपनी स्पर्धा में पांचवें स्थान पर रहीं
बर्मिंघम: राष्ट्रमंडल खेलों में 2006 से पांचवीं बार हिस्सा लेते हुए पहली बार पदक जीतने में नाकाम रहीं चक्का फेंक की अनुभवी खिलाड़ी सीमा पूनिया ने बुधवार को स्वीकार किया कि बर्मिंघम में चल रहे खेल उनके आखिरी राष्ट्रमंडल खेल हैं लेकिन उन्होंने जोर देते हुए कहा कि अभी उनका करियर खत्म नहीं हुआ है। राष्ट्रमंडल खेलों की सबसे सफल ट्रैक एवं फील्ड खिलाड़ियों में से एक 39 साल की सीमा मंगलवार रात अपनी स्पर्धा में पांचवें स्थान पर रहते हुए पहली बार इन खेलों से खोली हाथ लौटेंगी। उन्होंने इससे पहले मेलबर्न में 2006, ग्लास्गो में 2014 और गोल्ड कोस्ट में 2018 में रजत पदक जीते जबकि नयी दिल्ली में 2010 में कांस्य पदक अपने नाम किया।
सीमा ने अपने दूसरे प्रयास में चक्के को 55.92 मीटर की दूरी तक फेंका जो उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। यह उन्हें पोडियम पर जगह दिलाने के लिए नाकाफी था। सीमा ने पीटीआई से कहा, ‘‘यह मेरे आखिरी राष्ट्रमंडल खेल होंगे लेकिन मेरा करियर अभी खत्म नहीं हुआ है, कौन जानता है कि क्या पता मैं पेरिस ओलंपिक में रहूंगी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जिस दिन मैं ट्रेनिंग में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर पाऊंगी वह मेरा आखिरी दिन होगा। मैं खेलों के पीछे नहीं भागती, मैं मजबूत हूं इसलिए मैं यहां हूं।’’
इस स्टार खिलाड़ी ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि मैं एशियाई खेलों (अगले साल) में अच्छा कर सकती हूं। मुझे वहां पदक का पूरा भरोसा है। और अगर मैं 63-64 मीटर की दूरी हासिल करने में सफल रही तो मैं ओलंपिक (पेरिस) में भी जगह बना सकती हूं।’’ सीमा ने कहा कि उन्हें यहां अपने आखिरी राष्ट्रमंडल खेलों में पदक से चूकने का कोई मलाल नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘कोई पछतावा नहीं... यह मेरे पांचवें राष्ट्रमंडल खेल थे जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। हालांकि इस बार कोई पदक नहीं है लेकिन मैं खुश हूं।’’
एशियाई खेल 2014 और 2018 में क्रमश: स्वर्ण और रजत पदक जीतने वाली सीमा ने कहा, ‘‘मैं अपने सभी पदकों को संजोकर रखती हूं, यहां तक कि जिला स्तर पर जीते गए पदकों को भी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये किस स्तर पर जीते गए लेकिन पदक जीतने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। सीमा ने दावा किया कि लगातार पांचवें राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने के लिए उन्होंने कूल्हे के जोड़ की चोट से सफलतापूर्वक लड़ाई लड़ी।
उन्होंने कहा, ‘‘डॉक्टर ने मुझे कहा था कि मेरे लिए यह सब खत्म हो गया है और आप कूल्हे की चोट के साथ इस तरह का ताकत वाला खेल नहीं खेल सकते लेकिन वापसी करना और इस स्तर पर प्रतिस्पर्धा करना मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी।’’ सीमा ने कहा, ‘‘यह एक बहुत ही गंभीर चोट है। यह चक्का फेंक के खिलाड़ी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि इस पर सबसे अधिक जोर पड़ता है। मुझे तीन इंजेक्शन लेने पड़े और एक साल रिहैबिलिटेशन से गुजरना पड़ा। मैंने सितंबर में ही बिना किसी कोच के प्रशिक्षण शुरू किया क्योंकि मुझे पता था कि मुझे उबरने के बाद ही कोच की जरूरत पड़ेगी।’’