- मेटावर्स के आगाज के बाद वर्चुअल वर्ल्ड और रियल वर्ल्ड का अंतर बहुत कम रह जाएगा।
- मेटावर्स को अभी यूजर फ्रेंडली बनने में 10-15 साल का वक्त लग सकता है।
- हालांकि डाटा प्राइवेसी को लेकर कई सारे सवाल खड़े होने का भी डर है।
नई दिल्ली: बीते जुलाई में फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग ने कहा था कि उनकी कंपनी फ्यूचर में मेटावर्स पर फोकस करना चाहती है। और अब ऐसी संभावना है कि 28 अक्टूबर को कंपनी इस संबंध में कई नए ऐलान कर सकती है। इस बात की जानकारी टेक्नोलॉजी पोर्टल 'द वर्ज' ने दी है। अब सवाल उठता है कि फेसबुक जो सोशल मीडिया कंपनी के रुप में स्थापित हो चुकी है, वह मेटावर्स पर फोकस क्यों कर रही है। और तकनीकी की दुनिया में मेटावर्स क्या चीज है।
क्या है मेटावर्स
मेटावर्स वर्चुअल वर्ल्ड की एक ऐसी दुनिया होगाी, जहां पर वर्चुअल रियलटी का इस्तेमाल करके लोगों को वर्चुअल वर्ल्ड का अनुभव दिलाया जाएगा। इसे ऐसे समझा सकता है, कि आप अपने घर बैठे किसी शॉप से जाकर खरीदारी कर सकेंगे। मतलब आपके सामने ऐसी वर्चुअल दुनिया क्रिएट की जाएगी, कि आपको लगेगा कि आप वास्तव में शॉप पर जाकर खरीदारी करके आए हैं। लेकिन हकीकत में आप अपने घर पर होंगे।
इसे एक और उदाहरण से समझा जा सकता है, कि अभी अगर आप किसी से वीडियो कॉल करते हैं, तो आप उसे देख सकते हैं, लेकिन आपको हर वक्त यह आभास रहता है कि आप उससे दूर हैं और वीडियो के जरिए बात कर रहे हैं। लेकिन मेटावर्स में ऐसा नहीं होगा, जब आप वर्चुअल वर्ल्ड सैकड़ों किलोमीटर दूर बैठे किसी से बात करेंगे, तो लगेगा कि वह आपके पास ही बैठा है। मतलब दूरी का अहसास खत्म हो जाएगा।
फेसबुक ने अपने ब्लॉग में मेटावर्स को समझाते हुए लिखा है, आप मेटावर्स के जरिए दूर बैठे दोस्तों के साथ घूमने, काम करने, खेलने, सीखने, खरीदारी करने, और बहुत कुछ करने में सक्षम होंगे। यह ऑनलाइन अधिक समय बिताने से ज्यादा आपके द्वारा ऑनलाइन दुनिया में खर्च किए जाने वाले समय को और अधिक सार्थक बनाने के बारे में है।
कब तक आ सकता है मेटावर्स
मेटावर्स वर्चुअल रिएल्टी की नई दुनिया होगी। इसे पूरी तरह से यूजर फ्रेंडली बनाने में अभी वक्त लगेगा। इसमें सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर से लेकर बैंकिंग, टेलीकॉम कंपनियों आदि की भागीदारी होगी। जो कि इसके लिए पूरा एक इको सिस्टम बनाएंगी। जिसके बाद ही यह इस्तेमाल योग्य होगा। अभी फेसबुक, एप्पल, गूगल आदि कंपनियां इस दिशा में काम कर रही हैं। 27 सितंबर के फेसबुक के ब्लॉग के अनुसार इसे रियल्टी बनने में 10-15 साल लगेंगे। इस प्रोजेक्ट से रिसर्च आदि के लिए फेसबुक 2 साल में 50 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा।
डाटा प्राइवेसी बनेगा मुद्दा
एक बात तो साफ है कि मेटावर्स की दुनिया जहां आपको सहूलियत देगी, वही डाटा प्राइवेसी की चिंता भी बढ़ाएगी। क्योंकि अभी जब 4जी की दुनिया में सोशल मीडिया, वाट्स ऐप के इस्तेमाल से लेकर फाइनेंशियल लेन-देन आदि में डाटा प्राइवेसी एक बड़ा मुद्दा बन गया है। तो मेटावर्स में टेक कंपनियों की आपकी लाइफ में कहीं ज्यादा घुसपैठ हो जाएगी। इस खतरे का फेसबुक को भी आभास है। इसीलिए उसने अपने ब्लॉग में लिखा है कि हम इस्तेमाल किए जाने वाले डेटा की मात्रा को कम करते हुए उसकी गोपनीयता और सुरक्षा ध्यान रख टेक्नोलॉजी का कैसे निर्माण कर सकते हैं। साथ ही लोगों को उनके डेटा पर पारदर्शिता और कंट्रोल प्रदान कर सकें, इस पर काम कर रहे हैं।
साफ है कि मेटावर्स नए अनुभव के साथ चुनौतियां लेकर भी लाने वाला है। लेकिन एक बात तय है कि वर्चुअल रिएल्टी की दुनिया अब बदलने वाली है।