- मेटावर्स के आगाज के बाद वर्चुअल वर्ल्ड और रियल वर्ल्ड का अंतर बेहद कम रह जाएगा।
- मेटावर्स को पूरी तरह से यूजर फ्रेंडली बनने में 10-15 साल का वक्त लग सकता है।
- फेसबुक, एप्पल से लेकर दुनिया भर की कई टेक कंपनियां मेटावर्स टेक्नोलॉजी पर काम कर रही हैं।
Facebook New Name Meta: जैसी उम्मीद थी, फेसबुक (Facebook) के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग (Mark Juckerberg) ने कनेक्ट कांफ्रेंस में फेसबुक का नाम बदलने की घोषणा कर दी है। कंपनी का नया नाम मेटा (META)होगा। इस मौके पर जुकरबर्ग ने मेटा का लोगो भी लांच कर दिया है। जो कि नीले रंग मे ही है। अब सवाल उठता है कि जब जुकरबर्ग के पास फेसबुक जैसा बड़ा ब्रांड है और उसके साथ Whats app, Instagram जैसे सोशल मीडिया ऐप हैं, तो उन्हें अपना नाम बदलने की जरूरत क्यों पड़ी। असल में सवाल में ही जुकरबर्ग के नए कदम का जवाब है। जुकरबर्ग और उनकी टीम अब इंटरनेट की नई दुनिया पर तेजी से काम करने चाह रहे हैं। ऐसे में वह अपनी कंपनी की पहचान केवल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के रुप में नहीं रखना चाहते है। इसीलिए कंपनी का नाम मेटा कर दिया गया है। जो कि एक ग्रीक शब्द है। जिसका मतलब मौजूदा वक्त से परे (Beyond)होता है। कंपनी अब शेयर बाजार में ट्रेडिग भी नए नाम से करेगी।
क्या करना चाहते हैं जुकरबर्ग
कनेक्ट कांफ्रेंस के दौरान जुकरबर्ग ने नाम बदलने की वजह के बारे में कहा 'अभी, हमारा ब्रांड एक उत्पाद से इतनी मजबूती से जुड़ा हुआ है कि वह शायद हर उस चीज का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, जो हम आज कर रहे हैं, ऐसे में भविष्य में तो ऐसा करना दूर की बात होगी। समय के साथ, मुझे उम्मीद है कि हमें एक मेटावर्स कंपनी के रूप में देखा जाएगा और मैं अपने काम और अपनी पहचान को उससे जोड़ना चाहता हूं जो हम कर रहे हैं।'
जुकरबर्ग ने अपने लेटर में इसे और विस्तार देते हुए बताया है कि हाल के दशकों में, प्रौद्योगिकी ने लोगों को खुद को अधिक नेचुरल तरीके से अभिव्यक्त करने की शक्ति दी है। जब मैंने फेसबुक की शुरुआत की थी, तब हम ज्यादातर वेबसाइटों पर टेक्स्ट टाइप करते थे। जब हमें कैमरों वाले फोन मिले, तो इंटरनेट अधिक विजुअल और मोबाइल बन गया। जैसे-जैसे इंटरनेट स्पीड तेज होती गई, वीडियो अनुभव साझा करने का एक बेहतर तरीका बन गया। हम डेस्कटॉप से वेब पर और फिर मोबाइल पर चले गए हैं। टेक्स्ट से फोटो से लेकर वीडियो तक। लेकिन यह अंत नही है। अगला प्लेटफॉर्म बेहद अलग होगा । एक ऐसा इंटरनेट प्लेटफॉर्म जिसे हम मेटावर्स कहते हैं।
तो क्या है मेटावर्स (What is Metaverse)
जिस मेटावर्स की बात जुकरबर्ग कह रहे हैं, वह वर्चुअल वर्ल्ड की एक ऐसी दुनिया होगाी, जहां पर वर्चुअल रियलटी का इस्तेमाल करके लोगों को रियल वर्ल्ड का अनुभव दिलाया जाएगा। इसे ऐसे समझा सकता है, कि आप अपने घर बैठे किसी शॉप से जाकर खरीदारी कर सकेंगे। मतलब आपके सामने ऐसी वर्चुअल दुनिया क्रिएट की जाएगी, कि आपको लगेगा कि आप वास्तव में शॉप पर जाकर खरीदारी करके आए हैं। लेकिन हकीकत में आप अपने घर पर होंगे। यानी मेटावर्स, इंटरनेट की ऐसी दुनिया होगी, जहां लोगों को सैकड़ों किलोमीटर दूर बैठे लोगों को स्पर्श का भी अहसास होगा। मतलब दूरी का अहसास पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।
कैसे बदलेगी दुनिया
फेसबुक ने अपने ब्लॉग में मेटावर्स को समझाते हुए लिखा है, आप मेटावर्स के जरिए दूर बैठे दोस्तों के साथ घूमने, काम करने, खेलने, सीखने, खरीदारी करने, और बहुत कुछ करने में सक्षम होंगे। यह ऑनलाइन अधिक समय बिताने से ज्यादा आपके द्वारा ऑनलाइन दुनिया में खर्च किए जाने वाले समय को और अधिक सार्थक बनाने के बारे में है।
मेटावर्स में, आप बिना यात्रा के आफिस में पहुंच सकेंगे, दोस्तों के साथ संगीत कार्यक्रम में भाग ले सकेंगे, दूर बैठे अपने माता-पिता से रुबरू होकर बात कर सकेंगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि आप कितनी दूरी से यह सब कर रहे हैं।
कब तक आ सकता है मेटावर्स
मेटावर्स वर्चुअल रिएल्टी की नई दुनिया होगी। जो इंटरनेट की पूरी तरह से 3डी दुनिया होगी। इसे पूरी तरह से यूजर फ्रेंडली बनाने में अभी वक्त लगेगा। इसमें सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर से लेकर बैंकिंग, टेलीकॉम कंपनियों आदि की भागीदारी होगी। जो इसके लिए पूरा एक इको सिस्टम बनाएंगी। जिसके बाद ही यह इस्तेमाल योग्य होगा। जुकरबर्ग ने कंपनी का नाम बदलने के मौके पर मेटावर्स तकनीकी में निवेश के लिए 150 मिलियन डॉलर ट्रेनिंग पर निवेश करने की घोषणा की है।
प्राइवेसी बनेगा मुद्दा
मेटावर्स डाटा प्राइवेसी की चिंताएं बढ़ाएगा, इस बात का अहसास जुकरबर्ग को है। इसीलिए कंपनी ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि हम इस्तेमाल किए जाने वाले डेटा की मात्रा को कम करते हुए उसकी गोपनीयता और सुरक्षा ध्यान रख टेक्नोलॉजी का कैसे निर्माण कर सकते हैं। साथ ही लोगों को उनके डेटा पर पारदर्शिता और कंट्रोल प्रदान कर सकें, इस पर काम कर रहे हैं। यह सवाल इसिलए उठेगा ,क्योंकि आज 4जी की दुनिया में सोशल मीडिया, वाट्स ऐप के इस्तेमाल से लेकर फाइनेंशियल लेन-देन आदि में डाटा प्राइवेसी एक बड़ा मुद्दा बन गया है। मेटावर्स में तो टेक कंपनियों की आपकी लाइफ में कहीं ज्यादा घुसपैठ हो जाएगी। तो सवाल तो उठेंगे ही। खैर इसका जवाब फेसबुक और दूसरी कंपनियों को देना होगा।