नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में लॉकडाउन के दौरान एक डॉक्टर ने रहमदिली की नई मिसाल कायम की है। यहां एसएसकेएम अस्पताल के डॉक्टर बबलू सरदार ने एक मरीज को उसके घर तक पहुंचाने के लिए कार से 540 किलोमीटर का सफर तय किया। डॉक्टर बबलू पहले कोलकाता से 270 किलोमीटर दूर बच्चे को उसके घर ले गए और फिर खुद ड्राइव करके वापस आए। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 25 मार्च को अस्पताल से बाहर निकलते समय एनेस्थेटिस्ट बबलू ने एक परिवार को एम्बुलेंस ड्राइवर्स के साथ मोलभाव करते हुए देखा। लेकिन ड्राइवर जो किराया मांग रहे थे, वो राजेश बसकी दे नहीं पा रहे थे। राजेश बीरभूम में एक स्टोन क्रशिंग यूनिट में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं। उनकी 8 वर्षीय बेटी एंजेला को आंतों में परेशानी के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
'मैं परिवार की हालत समझ सकता था'
एंजेला को इलाज के बाद से छूट्टी दे दी गई थी, मगर लॉकडाउन के कारण परिवार उसे घर ले जाने में विफल रहा और 48 घंटे से अधिक समय तक अस्पताल परिसर में ही रहा। रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर बबलू ने कहा, 'उसे (एंजेला) 23 मार्च को अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी, लेकिन वह 25 मार्च की रात तक घर नहीं जा सकी। इसलिए मैंने उनकी मदद करने का फैसला किया। हालांकि एंजेला मेरी मरीज नहीं थी। मैं समझ सकता था कि पैसे की कमी के कारण परिवार घर नहीं पहुंच पा रहा। एंजेला के माता-पिता अस्पताल में उसके साथ थे। घर पर उसकी एक छोटी बहन थी। राजेश ने मुझे बताया कि एक हफ्ते पहले उनके दो भाइयों की मृत्यु हो गई थी। मैं परिवार की हालत समझ सकता था। एम्बुलेंस के कई ड्राइवर 13,000 रुपए से लेकर 14,000 रुपए तक मांग रहे थे जो परिवार उन्हें नहीं दे सकता था।'
'हमें पुलिस ने सिर्फ एक बार रोका'
डॉक्टर ने कहा कि उनकी ड्यूटी अगले दिन सुबह 10 बजे से थी, इसलिए वह खाना खाए बगैर ही परिवार को पहुंचाने के लिए निकल गए। एंजेजा का गंप झारखंड की सीमा के करीब था। डॉक्टर ने कहा, 'हम एसएसकेएम अस्पताल से रात 9 बजे निकले और सुलांगा पहुंच गए जो लगभग 270 किमी दूर है। हम तकीरबन तड़के 3 बजे पहुंचे। हमें पुलिस ने सिर्फ एक मर्तबा इलम्बजार में रोका। मैंने पुलिस को सारी बात बता दी और रास्ते में हमें कोई परेशानी नहीं हुई।'
बबलू ने कहा, 'मैं पहले बीरभूम के दुबराजपुर में पोस्टेड था और काफी हद तक रास्ते को जानता था। लेकिन इलमबाजार को पार करने के बाद गांवों के बीच से रास्त को पार करना एक मुश्किल काम था। मुझे राज्य राजमार्ग से लगभग 15 किलीमीटर दूर ड्राइव करना पड़ा। परिवार इतना गरीब है कि वे मुझे एक कप चाय भी नहीं दे पिला सकते थे। हालांकि, जब आखिरकार छोटी एजेला अपने घर पहुंच गई तो बहन से मिलने के बाद उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। यह देखकर मुझे काफी सुकून मिला।' डॉक्टर एजेला को छोड़ने के बाद सुबह 10 बजे फिर से अपनी ड्यूटी पर पहुंचने में कामयाब रहे।