नई दिल्ली: 10 मई का दिन पूरी दुनिया में ममतामयी मां को समर्पित होता है। वहीं मां जो हमें जन्म देती है। जो हमें चलना सिखाती है। जो हमें उस लायक बनाती है कि हम एक नवजात शिशु से लेकर किशोर और युवा होने की सीढ़ियां चढ़ते हैं। मुनव्वर राना, शम्भुनाथ तिवारी, मानोशी जैसे शायरों/कवियों ने मां की ममतामई बातों का अपनी शायरियों और कविताओं में बखान किया है। यह भी सच है कि मां जिस प्रकार से अपने बच्चे के जन्म से लेकर लालन पालन तक त्याग करती है, समर्पित होती है, उसकी मिसाल नहीं दी जा सकती है। क्योंकि यह अपने आप में अनूठा है। एक बच्चे के जन्म से लेकर उसकी भूमिका उसके पालन पोषण तक होती है जिसमें वह अद्भुत त्याग करती है और एक मां की ममता और बच्चे के प्रति समर्पण यकीनन बेमिसाल होता है।
1 (शम्भुनाथ तिवारी)
माँ की ममता जग से न्यारी!
अगर कभी मैं रूठ गया तो,
माँ ने बहुत स्नेह से सींचा।
कितनी बड़ी शरारत पर भी,
जिसने कान कभी ना खीँचा।
उसके मधुर स्नेह से महकी,
मेरे जीवन की फुलवारी।
माँ की ममता जग से न्यारी!
बिस्तर-बिना सदा जो सोई,
मेरी खातिर नरम बिछौना।
मुझे बचाया सभी बला से,
बाँध करधनी लगा डिठौना।
सारे जग से जीत गई पर,
मेरी जिद के आगे हारी।
माँ की ममता जग से न्यारी!
माँ, तेरी प्यारी बोली का,
दुनिया भर में मोल, नहीं है।
तेरी समता करनेवाला,
हीरा भी अनमोल,नहीं है।
तेरी गोद स्वर्ग से सुंदर,
तू सारी दुन्या से प्यारी।
माँ की ममता जग से न्यारी!
चाहे कितनी मजबूरी हो,
माँ, बच्चे को नहीं सतातीष
अपना दर्द छुपाए दिल में,
उस पर सारा प्यार लुटाती।
तन–मन न्योछावर कर देती .
सुनते ही शिशु की किलकारी।
माँ की ममता जग से न्यारी!
भले कोई माँ के कदमों में,
जीवन भर भी शीश झुकाए।
मगर कभी क्या मुमकिन भी है,
कि वह माँ का कर्ज चुकाए?
माँ की एक साँस भी शायद,
पूरे जीवन पर है भारी।
माँ की ममता जग से न्यारी!
2 (मानोशी)
मां तेरी यादों के आगे
जग के सारे बंधन झूठे|
जिस उँगली को हाथों थामे
जीवन पथ पर चलना सीखा,
प्राण ऋणी हैं, जिस अमृत के
उस अमृत बिन जीवन फीका,
याद नहीं करने को कहते
बंधु- बांधव, हित में मेरे,
किन्तु भूलकर हर्ष मनाऊं
इस से अच्छा जीवन छूटे।
बहुत कठिन है सूखे मरुथल
में पानी बिन प्यासे चलना,
मरीचिका से आस लगाये
अपने को ही खुद से छलना,
मेरा हृदय बना है तेरी
स्मृतियों से सज्जित इक आंगन,
जैसे चौबारा तुलसी का
पूजा का यह क्रम ना टूटे
मां तेरी यादों के आगे
जग के सारे बंधन झूठे।
3 (अनुभूति गुप्ता)
भीगी आंखों को मेरी
जो पोछती है,
मेरे अशान्त अन्तर्मन को
टटोलती है।
हर पहर का आरम्भ,
मेरे मन की आस,
प्यारी न्यारी
वह माँ होती है।
जो धूप में छांव दे
मेरे मन को,
जो गोद में भर ले
मेरे तन को।
जो खुद
नम धरती पर सोये,
मेरे ग़म के
हर अश्क को धोये।
गिरती हूं तो
थामने को मां होती है,
रात की तन्हाई में
साथ माँ होती है।
अपनी रोटी
मेरी थाली में सरकाये,
मैं पेटभर जब खाऊं
वह मुस्कुराये।
नयनों में
शीतल धारा जैसी,
गगन में
चमकीले तारा जैसी।
मेरी हकलाती जुबां को
शब्द देती है,
मां, हर गिरते शब्द को
थाम लेती है।
मेरे आंसुओं को
आंचल में पिरोती है,
मां संसार में
सबसे अनमोल होती है।
अब किन शब्दों में बयाँ करूँ,
कि- मां क्या होती है?
4 (मुनव्वर राना)
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई
यहां से जाने वाला लौट कर कोई नहीं आया
मैं रोता रह गया लेकिन न वापस जा के मां आई
अधूरे रास्ते से लौटना अच्छा नहीं होता
बुलाने के लिए दुनिया भी आई तो कहां आई
किसी को गांव से परदेस ले जाएगी फिर शायद
उड़ाती रेल-गाड़ी ढेर सारा फिर धुआं आई
मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूं उर्दू जबा आई
कफस में मौसमों का कोई अंदाज़ा नहीं होता
ख़ुदा जाने बहार आई चमन में या खिजां आई
घरौंदे तो घरौंदे हैं चटानें टूट जाती हैं
उड़ाने के लिए आंधी अगर नाम-ओ-निशां आई
कभी ऐ खुश-नसीबी मेरे घर का रुख भी कर लेती
इधर पहुंची उधर पहुँची यहाँ आई वहां आई