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Mother's day quote in Sanskrit: मदर्स डे पर समर्पित इन संस्कृत श्लोकों के जरिए मां को दें शुभकामनाएं 

Updated May 09, 2021 | 08:02 IST

Sanskrit Shlokas for Mothers day: मदर्स डे 9 मई को है जो मां के लिए सम्मान और प्यार जताने का दिन होता है। आप इन संस्कृत श्लोकों के जरिए मां को शुभकामनाएं दे सकते हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspTimes Now
Mothers day quote wishes in Sanskrit
मुख्य बातें
  • भारत में मदर्स डे हर वर्ष मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है
  • इस साल मदर्स डे 9 मई को मनाया जाएगा
  • आप संस्कृत के संदेशों के जरिए भी शुभकामनाएं दे सकते हैं

नई दिल्ली : भारत में मदर्स डे हर वर्ष मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। इस बार यह 9 मई को मनाया जाएगा। इस दिन मां की ममता, त्याग और उनके लिए सम्मान का दिन होता है जिसे हर व्यक्ति अपने तरीके से अपनी मां के लिए व्यक्ति करता है। 9 मई को मां के प्रति सम्नान जताते हैं और उनका आभार व्यक्ति करते हैं।

मां के बिना हम इस दुनिया में कुछ भी नहीं है क्योंकि हम सभी को जन्म देने वाली मां ही होती है। क्योंकि मां ने हमें जन्म दिया है लिहाजा उनका स्थान जीवन में सर्वोपरि होता है। मां के प्यार, त्याग, सुरक्षा देखरेख, सेवा आदि के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए भारत में हर वर्ष मई के दूसरे रविवार के दिन मातृ दिवस यानी मदर्स डे मनाया जाता है।


Mothers day quote wishes in Sanskrit  (संस्कृत मेें मदर्स डे की शुभकामनाएं)

1. 'यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरितकी।'
(अर्थात, हरीतकी (हरड़) मनुष्यों की माता के समान हित करने वाली होती है।)


2. 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।'
(अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।)

3. 'माता गुरुतरा भूमेरू।'
(अर्थात, माता इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती हैं।)

Sanskrit Shlokas for mother (मां के लिए संस्कृत में श्लोक)

4. 'नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।'
(अर्थात, माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है। माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय चीज नहीं है।)

5. 'मातृ देवो भवः।'
(अर्थात, माता देवताओं से भी बढ़कर होती है।)

6. 'अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः
मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः।'

(भावार्थः जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा।)

7. 'माँ' के गुणों का उल्लेख करते हुए आगे कहा गया है-
'प्रशस्ता धार्मिकी विदुषी माता विद्यते यस्य स मातृमान।'

(अर्थात, धन्य वह माता है जो गर्भावान से लेकर, जब तक पूरी विद्या न हो, तब तक सुशीलता का उपदेश करे।)

8. 'रजतिम ओ गुरु तिय मित्रतियाहू जान।
निज माता और सासु ये, पाँचों मातृ समान।।'

(अर्थात, जिस प्रकार संसार में पाँच प्रकार के पिता होते हैं, उसी प्रकार पाँच प्रकार की माँ होती हैं। जैसे, राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, अपनी स्त्री की माता और अपनी मूल जननी माता।)

9. 'स्त्री ना होती जग म्हं, सृष्टि को रचावै कौण।
ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनों, मन म्हं धारें बैठे मौन।
एक ब्रह्मा नैं शतरूपा रच दी, जबसे लागी सृष्टि हौण।'

(अर्थात, यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने नारी की रचना की, तभी से सृष्टि की शुरूआत हुई।)

10. आपदामापन्तीनां हितोऽप्यायाति हेतुताम् ।
मातृजङ्घा हि वत्सस्य स्तम्भीभवति बन्धने ॥
 
(भावार्थ- जब विपत्तियां आने को होती हैं, तो हितकारी भी उनमें कारण बन जाता है । बछड़े को बांधने मे माँ की जांघ ही खम्भे का काम करती है ।)

11. नास्ति मातृसमा छाया नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा॥
 
(भावार्थ-माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नहीं॥)